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    Fixed vs Floating Rate: Home Loan लेने से पहले समझें दोनों के अंतर, फायदे-नुकसान जानने के बाद लें फैसला

    Updated: Wed, 28 Aug 2024 05:04 PM (IST)

    Home Loan लेते समय हमें फिक्स्ड रेट (Fixed Rate) और फ्लोटिंग रेट (Floating Rate) में से कोई एक ऑप्शन सेलेक्ट करना होता है। यह दोनों ऑप्शन का कनेक्शन भले ही ब्याज दर (Interest Rate) से है पर इनके बीच काफी अंतर है। ऐसे में इस आर्टिकल में हम आपको इन दोनों ऑप्शन के अंतर के साथ इनके फायदे व नुकसान के बारे में बताएंगे।

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    Fixed vs Floating Rate: दोनों में क्या है अंतर

    बिजनेस डेस्क, नई दिल्ली। अपना घर का सपना हर कोई देखता है। इस सपने को साकार करने में होम लोन (Home Loan) अहम भूमिका निभाता है। होम लोन के जरिये आप अपने इस सपने को पूरा कर सकते हैं। जब भी बैंक या वित्तीय संस्थान में आप लोन लेने जाते हैं तो आपको फिक्स्ड रेट (Fixed Rate) और फ्लोटिंग रेट (Floating Rate) में से कोई एक ऑप्शन सेलेक्ट करना होता है।

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    होम लोन में इंटरेस्ट चुकाने के लिए दिए जाने वाले इस ऑप्शन में से हमें कौन-सा सेलेक्ट करना चाहिए। इन दोनों के फायदे नुकसान को जान लेने के बाद ही हमको कोई फैसला लेना चाहिए। हम आपको इस लेख में इन दोनों के अंतर (Fixed vs Floating Rate) के साथ फायदे-नुकसान के बारे में बताएंगे।

    फिक्स्ड रेट (Fixed Rate)

    फिक्स्ड रेट ही समझ आता है कि लोन की पूरे टेन्योर तक ब्याज दर (Interest Rate) एक समान रहेगी। ब्याज दर में कोई बदलाव नहीं होगा। इसके अलावा ईएमआई (EMI) भी नहीं बदलेगी।

    इसे ऐसे समझिए कि अगर आपने कोई होम लोन 8.20 फीसदी की दर से 30 साल के लिए लिया है जिसमें मासिक ईएमआई 22,000 रुपये बन रही है। ऐसे में 30 साल तक आपको मासिक 22,000 रुपये की ईएमआई देनी होगी, यानी ईएमआई में 30 साल तक कोई बदलाव नहीं होगा।

    आपको एक बात का ध्यान रखना होगा कि कई बैंक कुछ समय के बाद फिक्स्ड रेट को फ्लोटिंग रेट में कन्वर्ट कर देते हैं। आपको होम लोन लेने से पहले इससे जुड़ी बातों को पहले कन्फर्म कर लेना चाहिए।

    फ्लोटिंग रेट (Floating Rate)

    फ्लोटिंग रेट में ब्याज दर में बदलाव होता रहता है। इसमें ब्याज दर बैंक के बेंचमार्क की दरों के साथ अलाइन होती है। ऐसे में जब भी भारती रिजर्व बैंक (RBI) रेपो रेट (Repo Rate) में कोई बदलाव करता है तो होम लोन की ब्याज दरों में बदलाव होता है। ब्याज दरों में बदलाव के साथ ही ईएमआई भी बदल जाती है। अगर ब्याज दर में बढ़ोतरी होती है पर आप ईएमआई नहीं बढ़वाना चाहते हैं तो लोन की अवधि बढ़ जाती है।

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    क्या है फायदे और नुकसान

    • फिक्स्ड रेट में लोन की ईएमआई तय रहती है, जिससे लंबे समय तक आपके मनी फ्लो पर कोई असर नहीं पड़ता है।
    • फ्लोटिंग रेट में ब्याज दर के बढ़ जाने से लोन की ईएमआई भी बढ़ सकती है। इसका असर आपके सेविंग और बजट पर पड़ता है।

    फ्लोटिंग रेट में लोन की अवधि बढ़ जाने की वजह से या फिर ईएमआई बढ़ने से परेशानी हो सकती है। वहीं फिक्स्ड रेट में इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। हालांकि, अगर बेंचमार्क रेट में गिरावट होती है तब भी इसका लाभ नहीं मिलता है।

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