MSME को तेजी से बढ़ रहा डिजिटल लोन, लेकिन एक-तिहाई महिला उद्यमियों को नहीं मिल पाता कर्ज
MSME loan access देश में 7.34 करोड़ एमएसएमई हैं। SIDBI की सर्वे रिपोर्ट के अनुसार MSME को वर्किंग कैपिटल और निवेश के लिए लगभग 123 लाख करोड़ रुपये के कर्ज की जरूरत है। विभिन्न कारणों से इसमें से करीब 30 लाख करोड़ रुपये का कर्ज उन्हें नहीं मिल पाता है। सिडबी ने चुनिंदा सेगमेंट को लोन उपलब्ध कराने के लिए नीतिगत पहल की सिफारिश की है।

लघु, छोटे और मझोले उपक्रमों यानी एमएसएमई (MSME) को कर्ज में वृद्धि हुई है, डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से उन्हें मिलने वाला कर्ज भी बढ़ा है, इसके बावजूद इस सेक्टर को जरूरत से 24 प्रतिशत कम कर्ज मिल रहा है। यह क्रेडिट गैप (MSME credit gap) लगभग 30 लाख करोड़ रुपये का है।
स्मॉल इंडस्टरीज डेवलपमेंट बैंक ऑफ़ इंडिया (सिडबी, SIDBI) ने एक सर्वे रिपोर्ट में यह जानकारी दी है। यह क्रेडिट गैप सर्विस सेक्टर में सबसे ज्यादा 27% है। यही नहीं, महिला उद्यमियों के एमएसएमई में 35% ऐसे हैं जिन्हें कर्ज (women entrepreneurs loan challenges) नहीं मिल पाता है। रिपोर्ट में चुनिंदा सेगमेंट के लिए नीतिगत पहल की सिफारिश की गई है।
18 प्रतिशत ने डिजिटल प्लेटफॉर्म से लिया कर्ज
इस सर्वे में मैन्युफैक्चरिंग, सर्विसेज और ट्रेडिंग के 19 सेक्टर की 2097 एमएसएमई इकाइयों से बात की गई। रिपोर्ट के अनुसार 18 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उन्होंने डिजिटल प्लेटफॉर्म (digital loans for MSME) से कर्ज लिया है। वर्ष 2017 में सिर्फ एक प्रतिशत MSME ने डिजिटल माध्यम से लोन लिया था। एमएसएमई को डिजिटल लोन देने में बड़ा अवसर है क्योंकि 90 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे डिजिटल पेमेंट स्वीकार करते हैं।
रिपोर्ट में बताया गया है कि डिजिटल तरीके से सबसे ज्यादा लोन रक्षा उपकरण, आईटी/आईटीईएस, मशीनरी, ऑटो कंपोनेंट, प्लास्टिक प्रोडक्ट और ट्रांसपोर्ट तथा लॉजिस्टिक्स जैसे सेक्टर में दिए जा रहे हैं। होटल, रेडीमेड गारमेंट्स, फूड प्रोसेसिंग, दवा और फार्मास्यूटिकल, कॉटन टेक्सटाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स, इंडस्ट्रियल मेटल प्रोडक्ट और ग्रॉसरी रिटेलर्स को संभावित क्षेत्र के रूप में बताया गया है।
माइक्रो सेगमेंट में अनौपचारिक स्रोतों से कर्ज अधिक
प्राइवेट कर्ज देने वाले जैसे अनौपचारिक स्रोतों से कर्ज लेने में कमी आई है। तीन प्रतिशत छोटी और दो प्रतिशत मझोली इकाइयों ने अनौपचारिक स्रोतों से कर्ज लिया है। हालांकि माइक्रो उद्यमियों में 12 प्रतिशत ने अनौपचारिक स्रोतों से कर्ज लिया। सेक्टर के हिसाब से देखा जाए तो रेडीमेड गारमेंट, ग्रॉसरी रिटेलर, फूड प्रोसेसिंग और आईटी/आईटीईएस सेक्टर को कर्ज लेने में सबसे ज्यादा परेशानी आती है।
वर्ष 2023-24 के एनुअल सर्वे ऑफ अन-इनकॉरपोरेटेड सेक्टर एंटरप्राइजेज के अनुसार देश में 7.34 करोड़ एमएसएमई हैं। उद्यम असिस्ट प्लेटफॉर्म (Udyam Assist Platform) के जरिए अनेक इनफॉर्मल माइक्रो एंटरप्राइज (IME) को औपचारिक बनाया गया है। फिर भी बड़ी संख्या में उपक्रम पॉलिसी फ्रेमवर्क से बाहर हैं।
इस सेक्टर के सामने सस्ती पूंजी, बाजार तक पहुंचने में कठिनाई, अपर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर, स्किल्ड लेबर की कमी, टेक्नोलॉजी अपनाने में कमी, प्रोडक्टिविटी की चुनौतियां और जलवायु परिवर्तन के जोखिम जैसी परेशानियां हैं।
एमएसएमई के लिए योजनाएं
हाल के वर्षों में एमएसएमई को क्रेडिट बढ़ाने के लिए सरकार ने कई योजनाएं शुरू की हैं। प्रधानमंत्री मुद्रा योजना ने इसमें बड़ी भूमिका निभाई है। इसमें पहले 10 लाख रुपये तक का लोन दिया जाता था। जुलाई 2024 में पेश 2024-25 के बजट में लोन की सीमा बढ़ाकर 20 लाख रुपये कर दी गई। नई सीमा 24 अक्टूबर 2024 से लागू है। वित्त वर्ष 2020-21 से 2024-25 तक प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत 20 लाख करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज दिया गया है।
स्टैंडअप इंडिया स्कीम में महिलाओं और एससी-एसटी वर्ग के उद्यमियों को नई यूनिट खोलने के लिए लोन दिया जाता है। दिसंबर 2024 तक इस स्कीम के तहत 57,466 करोड़ रुपये का कर्ज दिया गया था। पारंपरिक कला के कारीगरों को पीएम विश्वकर्मा स्कीम के तहत 3 लाख रुपये तक का कर्ज दिया जाता है। इनके अलावा एमएसएमई के लिए प्रधानमंत्री रोजगार सृजन योजना, क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी स्कीम तथा कई तरह की डेवलपमेंट स्कीम भी चलाई गई हैं।
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