टीम इंडिया की जर्सी में अब जिस नई कंपनी का छपेगा नाम, सिर्फ ₹1 में थी बिकने वाली; आज ₹30 हजार करोड़ का साम्राज्य
अपोलो टायर्स (Apollo Tyres Team India’s Jersey Sponsor) के मालिक ओंकार सिंह कंवर ने विभाजन के बाद शून्य से शुरुआत की। एक समय कंपनी को 1 रुपये में बेचने की बात हो रही थी लेकिन ओंकार सिंह कंवर ने कंपनी की कमान संभाली। आज अपोलो टायर्स 30916 करोड़ रुपये की कंपनी है और टीम इंडिया की जर्सी स्पांसर भी बन गई है।

नई दिल्ली। किसी दिन आपका सबकुछ छिन जाए घर, जमीन, कारोबार और पहचान भी तो क्या आप फिर से शून्य से शुरुआत कर पाएंगे? यही हकीकत थी उस परिवार की, जिसने बंटवारे में अपना वजूद पाकिस्तान में छोड़ दिया और खाली हाथ हिंदुस्तान आ पहुंचा।
लेकिन किस्मत पर भरोसा करने के बजाय उन्होंने (Apollo Tyres growth story) अपने हाथों से मुकद्दर लिखा। इसी परिवार के बेटे बने भारतीय टायर उद्योग के बेताज बादशाह। जिनका नाम ओंकार सिंह कंवर (Onkar Singh Kanwar entrepreneur journey) है।
कभी हालात ऐसे थे कि उनकी कंपनी को सिर्फ 1 रुपये में बेचने की बात हो रही थी और आज वही कंपनी 30,916 करोड़ रुपये की दिग्गज मल्टीनेशनल के रूप में दुनिया भर में अपनी पहचान बना चुकी है।
हम यहां जिस कंपनी की बात कर रहे हैं वह कोई और नहीं बल्कि टीम इंडिया की नई जर्सी स्पांसर अपोलो टायर्स है। अब अगले तीन साल तक विराट कोहली, रजत पाटीदार से लेकर Abhishek Porel तक की जर्सी में Apollo Tyres का नाम छपा हुआ दिखाई देगा।
तो चलिए अपोलो टायर्स के 1 रुपये पर बिकने वाली कहाने से लेकर टीम इंडिया की जर्सी स्पांसर (BCCI jersey sponsorship deal) तक के कंपनी के और ओंकार सिंह कंवर के सफर को जानते हैं।
ओंकार सिंह कंवर कौन है?
ओंकार सिंह कंवर, अपोलो टायर्स के चेयमैन हैं। ओंकार सिंह का जन्म पाकिस्तान के सियालकोट में हुआ था। विभाजन के दौरान परिवार सबकुछ छोड़कर भारत आ गया।
नई शुरुआत आसान नहीं थी, लेकिन उनके पिता रौनक सिंह ने भारत में पाइप मैन्युफैक्चरिंग का कारोबार शुरू किया।
पढ़ाई पूरी करने के बाद ओंकार अमेरिका चले गए, जहां उच्च शिक्षा पूरी करने और नौकरी का अनुभव लेने के बाद 1964 में भारत लौटकर उन्होंने पारिवारिक व्यापार में हाथ बंटाना शुरू किया।
अपोलो टायर्स की नींव और संकट का दौर
परिवार ने आगे बढ़ने के लिए टायर निर्माण के क्षेत्र में कदम रखा और अपोलो टायर्स की स्थापना हुई। शुरुआत उत्साहजनक रही, लेकिन 1975 की इमरजेंसी ने बिजनेस को झकझोर दिया।
हालात इतने बिगड़े कि उनके पिता इस कंपनी को लगभग औने-पौने दाम पर छोड़ने को तैयार हो गए। उस समय ओंकार सिंह कंवर ने कमान संभाली और कंपनी को बचाने का बीड़ा उठाया।
मेहनत का नतीजा आज टीम इंडिया की जर्सी स्पांसर
लगातार संघर्ष और दूरदर्शी फैसलों की बदौलत अपोलो टायर्स ने धीरे-धीरे न सिर्फ भारतीय बाजार में अपनी जगह बनाई। साथ ही वैश्विक स्तर पर भी मजबूत पहचान बनाई।
भारत के गुड़गांव में हेडक्वॉर्टर वाली इस कंपनी का कुल कारोबार 2.3 अरब अमेरिकी डॉलर का है।
यह दुनिया की टॉप 20 टायर निर्माताओं में शुमार है। आज कंपनी के पास दुनिया भर में 7 अत्याधुनिक मैन्युफैक्चरिंग प्लांट हैं और यह भारतीय टायर उद्योग की सबसे बड़ी कंपनियों में गिनी जाती है।
अपोलो टायर्स को हाल ही में एशिया और यूरोप, दोनों में 'काम करने के लिए सर्वश्रेष्ठ कंपनी' के रूप में मान्यता मिली है।
नवंबर 2015 में, अपोलो टायर्स ने जर्मनी के सबसे बड़े टायर वितरकों में से एक, रीफेनकॉम जीएमबीएच का अधिग्रहण किया, जिसकी ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह की उपस्थिति है।
मई 2009 में, कंपनी ने नीदरलैंड में अपोलो व्रेडेस्टीन बीवी (मूल रूप से व्रेडेस्टीन बैंडेन बीवी) का अधिग्रहण किया, जो उच्च-स्तरीय यात्री कार और विशेष टायरों का उत्पादन करती है और जिसका पूरे यूरोप में व्यापक वितरण नेटवर्क है।
स्वास्थ्य क्षेत्र में भी कदम
व्यवसाय को टायर इंडस्ट्री तक सीमित न रखते हुए, ओंकार सिंह कंवर ने हेल्थकेयर सेक्टर में भी निवेश किया। वे आर्टेमिस हॉस्पिटल्स के मालिक हैं, जो उत्तरी भारत के प्रमुख स्पेशियालिटी अस्पतालों में गिने जाते हैं।
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