दो खेमों में बंट गया 157 साल पुराना Tata Trusts, नए चेयरमैन के मुकाबले में खड़े हो गए ये 4 लोग; क्या है लड़ाई? जानिए अंदर की बात
टाटा ग्रुप में आंतरिक उथल-पुथल (Tata Group Feud) मची हुई है जहाँ बोर्ड नियुक्तियों और लिस्टिंग योजनाओं को लेकर ट्रस्टियों के बीच मतभेद हैं। सरकार मध्यस्थता करने के लिए आगे आई है क्योंकि यह विवाद ग्रुप के शासन को प्रभावित कर सकता है। नोएल टाटा गुट यथास्थिति बनाए रखने के पक्ष में हैं जबकि कुछ ट्रस्टी कुछ बदलाव चाहते हैं। एन. चंद्रशेखरन इस मामले में तटस्थ बने हुए हैं।

नई दिल्ली। भारत का सबसे प्रतिष्ठित बिजनेस समूह टाटा ग्रुप (Tata Group Feud) एक बहुत दुर्लभ और इंटरनल उथल-पुथल का सामना कर रहा है। टाटा ग्रुप के इतिहास में ऐसा कभी देखा नहीं गया। मगर ये मामला इतना गंभीर है कि भारत सरकार ने मध्यस्थता के लिए कदम उठाया है।
दो केंद्रीय मंत्री टाटा ग्रुप के लीडर्स से मिलने वाले हैं ताकि टाटा संस के अधिकतर हिस्सेदारी के ओनर टाटा ट्रस्ट्स के अंदर तनाव को शांत किया जा सके। इन लीडर्स में नोएल टाटा, वेणु श्रीनिवासन, एन. चंद्रशेखरन और डेरियस खंबाटा शामिल हैं। आइए समझते हैं कि आखिर टाटा ग्रुप में क्या चल रहा है।
क्या है उथल-पुथल की वजह
टाटा ग्रुप में उथल-पुथल की वजह बोर्ड नियुक्तियां, इंफोर्मेशन तक एक्सेस और टाटा संस की लंबे समय से लटकी लिस्टिंग योजना है। इसी को लेकर ट्रस्टियों के बीच अंदरूनी कलह सामने आ रही है। स्थिति ये है कि ग्रुप दो खेमों में बंट गया है।
गुट 1 (जो चाहता है यथास्थिति रहे। इसे नोएल टाटा का गुट माना जा रहा है)
- नोएल टाटा
- वेणु श्रीनिवासन
- विजय सिंह (पूर्व नामित निदेशक)
यह गुट कोई बदलाव करने से पहले निरंतरता और उचित प्रक्रिया चाहता है।
गुट 2 – सुधारवादी (इसमें असहमत ट्रस्टी शामिल हैं)
- मेहली मिस्त्री
- प्रमित झावेरी
- जहाँगीर जहाँगीर
- डेरियस खंबाटा
इन्होंने विजय सिंह को फिर से नियुक्ति करने का विरोध किया और नए नॉमिी डायरेक्टर्स की नियुक्ति पर जो दिया, जिससे ट्रस्टों के अंदर तीन बनाम चार का विभाजन हो गया।
क्या है असल विवाद
टाटा संस को "अपर-लेयर एनबीएफसी" के तौर पर लिस्ट होने के लिए आरबीआई की डेडलाइन का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन कंपनी ने जरूरी लिस्टिंग से बचने के लिए, एनबीएफसी के रूप में रजिस्ट्रेशन कैंसल करने के लिए भी आवेदन किया है।
इस बीच, शापूरजी पलोनजी ग्रुप (18.37% शेयरधारक) लिक्वविडिटी को बढ़ावा देने के लिए लिस्टिंग चाहता है।
सरकार की चिंता
आंतरिक कलह भारत के सबसे महत्वपूर्ण व्यवस्थित बिजनेस समूहों में से एक के शासन को पंगु बना सकती है। यही सरकार की चिंता है।
एन. चंद्रशेखरन का क्या है रुख
रिपोर्ट्स के अनुसार एन. चंद्रशेखरन सावधानी से कदम उठा रहे हैं। उनके पास 5 साल के विस्तार के लिए ट्रस्टियों का समर्थन है। फिर भी वे इस उथल-पुथल के आने पर भी तटस्थ बने हुए हैं।
क्यों मायने रखता है टाटा ग्रुप का विवाद
जब भारत के सबसे प्रतिष्ठित व्यावसायिक घराने में दरारें दिखाई देती हैं, तो रेगुलेटर, निवेशक और बाजार इस पर ध्यान देते हैं। यह सिर्फ बोर्डरूम का झगड़ा नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा गवर्नेंस मौका है जो टाटा संस की लिस्टिंग, स्ट्रक्चर और नेतृत्व उत्तराधिकार के भविष्य को नए सिरे से परिभाषित कर सकता है।
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