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    India-UK FTA: आईटी को 3 साल तक सामाजिक सुरक्षा योगदान से छूट, जानिए और किस सेक्टर को क्या लाभ मिलेगा

    India UK FTA भारत और इंग्लैंड के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौते से IT sector समेत कई प्रमुख इंडस्ट्री सेक्टर को लाभ मिलेगा। इनमें इंजीनियरिंग गुड्स टेक्सटाइल और गारमेंट दवाएं मेडिकल डिवाइस प्रमुख हैं। इनके अलावा फाइनेंशियल सर्विसेज सेक्टर को भी बूस्ट मिलने की उम्मीद है। भारत में इंग्लैंड से निवेश भी बढ़ेगा।

    By Jagran News Edited By: Sunil Kumar Singh Updated: Thu, 24 Jul 2025 06:48 PM (IST)
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    आईटी को 3 साल तक सामाजिक सुरक्षा योगदान से छूट, जानिए और किस सेक्टर को क्या लाभ मिलेगा

    India-UK FTA: भारत और इंग्लैंड के बीच मुक्त व्यापार समझौते (Free Trade Agreement) में भारत के इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, अपैरल, इंजीनियरिंग गुड्स और फार्मा सेक्टर को काफी लाभ मिलने की उम्मीद की जा रही है। अभी दोनों देशों के बीच 56 अरब डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार होता है। एफटीए से 2030 तक इसे दोगुना करने का लक्ष्य है। इस समझौते पर भारत के वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल तथा ब्रिटेन के वाणिज्य मंत्री जोनाथन रेनॉल्ड ने हस्ताक्षर किए।

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    आईटी सेक्टर को सामाजिक सुरक्षा योगदान से छूट

    वाणिज्य मंत्री गोयल ने बताया कि सामाजिक सुरक्षा में योगदान से 3 साल की छूट का भारत के आईटी कर्मियों और कंपनियों को काफी लाभ मिलेगा। भारतीय सॉफ्टवेयर कंपनियों ( IT sector news) के लिए नए अवसर खुलेंगे। सॉफ्टवेयर ओर आईटी इनेबल्ड सर्विसेज के क्षेत्र में नई नौकरियां सृजित होंगी। यह समझौता भारतीय स्टार्टअप के लिए इंग्लैंड के ग्राहकों, निवेशकों और इन्नोवेशन हब के रास्ते खोलेगा। इससे उन्हें वैश्विक स्तर पर कदम बढ़ाने में मदद मिलेगी। इलेक्ट्रॉनिक प्रोडक्ट्स पर इंग्लैंड में जीरो ड्यूटी से ऑप्टिकल फाइबर केबल और इनवर्टर सेगमेंट को लाभ मिलेगा।

    इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों के संगठन ICEA के चेयरमैन पंकज मोहिंद्रू ने कहा कि इस समझौते से भारत में बनने वाले स्मार्टफोन, इनवर्टर और ऑप्टिकल फाइबर केबल जैसे इलेक्ट्रॉनिक प्रोडक्ट्स को इंग्लैंड के बाजार में जीरो ड्यूटी एक्सेस मिलेगी। इससे दुनिया के लिए मेक इन इंडिया पहल को भी मजबूती मिलेगी। दोनों देशों के बीच व्यापार वर्ष 2030 तक दोगुना करने का लक्ष्य है। साथ ही भारत में इलेक्ट्रॉनिक मैन्युफैक्चरिंग भी 500 अरब डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य रखा गया है। ऐसे में यह साझेदारी दोनों देशों के आर्थिक विकास में काफी मदद करेगी।

    गारमेंट सेक्टर में निवेश और रोजगार बढ़ेगा

    अपैरल एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (AEPC) के चेयरमैन सुधीर सेखरी ने कहा कि इस एफटीए से भारतीय अपैरल प्रोडक्ट को इंग्लैंड के बाजार में बेहतर एक्सेस मिलेगी। ड्यूटी फ्री एक्सेस मिलने से भारत से अपैरल का निर्यात आने वाले वर्षों में बढ़ेगा। इंग्लैंड वैश्विक स्तर पर फैशन हब के तौर पर जाना जाता है। यह दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा गारमेंट आयातक है। पिछले वर्ष इसने 19.7 अरब डॉलर के गारमेंट का आयात किया था। भारत का निर्यात 1.2 अरब डॉलर का था। अभी भारत के ज्यादातर गारमेंट प्रोडक्ट पर इंग्लैंड में 9.6 प्रतिशत ड्यूटी लगती है। भारत मुख्य तौर से टी-शर्ट और महिलाओं तथा बच्चों के कपड़े का निर्यात करता है। गर्म कपड़ों और मैन मेड फाइबर गारमेंट में भारत अभी पीछे है।

    2030 तक इंजीनियरिंग गुड्स निर्यात 7.5 अरब डॉलर होगा

    एफटीए के तहत इंजीनियरिंग गुड्स के निर्यात पर इंग्लैंड में 18% की जगह जीरो ड्यूटी लगेगी। इससे भारत का निर्यात काफी प्रतिस्पर्धी हो जाएगा। 5 वर्षों में भारत से इंजीनियरिंग निर्यात दोगुना होकर लगभग 7.5 अरब डॉलर पहुंचने की उम्मीद है। अभी इंग्लैंड भारत का छठा सबसे बड़ा इंजीनियरिंग एक्सपोर्ट मार्केट है। पिछले वर्ष उसे निर्यात में 11.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी।

    भारत ने पिछले साल कुल 77.79 अरब डॉलर का इंजीनियरिंग निर्यात किया जबकि इंग्लैंड का कुल आयात 193.52 अरब डॉलर का था। भारत ने इंग्लैंड को पिछले वर्ष सिर्फ 4.28 अरब डॉलर के इंजीनियरिंग गुड्स का निर्यात किया। इस समझौते के बाद इलेक्ट्रिक मशीनरी, ऑटो पार्ट्स, इंडस्ट्रियल इक्विपमेंट और कंस्ट्रक्शन मशीनरी जैसे इंजीनियरिंग प्रोडक्ट का निर्यात हर साल 12% से 20% बढ़ने की उम्मीद है।

    इंग्लैंड को जेनरिक दवाओं का निर्यात बढ़ेगा

    न्यूज़ एजेंसी पीटीआई ने वाणिज्य मंत्रालय के एक अधिकारी के हवाले से बताया है कि इस समझौते से सर्जिकल इंस्ट्रूमेंट, डायग्नोस्टिक इक्विपमेंट, ईसीजी मशीन, एक्स-रे सिस्टम के निर्यात पर कोई ड्यूटी नहीं लगेगी। भारत में बने ये प्रोडक्ट इंग्लैंड के बाजार में अब कम कीमत पर मिलेंगे। ब्रेक्जिट और कोविड 19 महामारी के बाद इंग्लैंड ने चीन से आयात पर निर्भरता कम की है। इस समझौते से भारतीय निर्यातकों को लाभ मिलने की उम्मीद है।

    वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार जीरो टैरिफ प्रावधान से भारतीय जेनरिक दवाएं अब इंग्लैंड के बाजार में सस्ती मिलेंगी। यूरोप में भारत की जेनरिक दवाओं का सबसे बड़ा खरीदार इंग्लैंड ही है। भारत ने पिछले साल लगभग 23.31 अरब डॉलर की जेनरिक दवाओं का निर्यात किया, जबकि इंग्लैंड ने 30 अरब डॉलर का आयात किया। इंग्लैंड के आयात में भारत की हिस्सेदारी एक अरब डॉलर से भी कम है। इससे पता चलता है कि इसमें पर्याप्त गुंजाइश है।

    वर्ष 2024-25 में भारत ने कुल 30.5 अरब डॉलर का फार्मा निर्यात किया था। भारत जेनरिक दवाओं का सबसे बड़ा सप्लायर है। वैश्विक सप्लाई में इसकी हिस्सेदारी 20% है। यहां करीब 60,000 विभिन्न जेनरिक ब्रांड की दवाएं बनती हैं। यहां से दुनिया के लगभग सभी देशों को इनका निर्यात होता है। भारत के खरीदारों में जापान, ऑस्ट्रेलिया, पश्चिमी यूरोप और अमेरिका प्रमुख देश हैं।

    जहां तक मेडिकल डिवाइस की बात है तो भारत में यह सेक्टर करीब 11 अरब डॉलर का है और वर्ष 2030 तक इसके 50 अरब डालर तक पहुंच जाने की उम्मीद है। मेडिकल डिवाइस बनाने वाली कंपनियों के संगठन AiMeD के फोरम कोऑर्डिनेटर राजीव नाथ ने बताया, “इंग्लैंड में मेडिकल डिवाइस आयात पर कोई शुल्क नहीं लगता है, इसलिए टैरिफ की कोई बाधा नहीं थी। लेकिन समस्या रेगुलेटरी अप्रूवल की है। हम चाहते थे कि भारत के सीडीएससीओ रेगुलेटरी अप्रूवल को इंग्लैंड का एमएचआरए भी स्वीकृति दे और भारत के निर्यातकों की नॉन-टैरिफ बाधाओं को दूर करे। जहां तक भारत में आयात की बात है तो रूल्स आफ ओरिजन पर कड़ी निगरानी रखी जानी चाहिए ताकि इस FTA का दुरुपयोग कर कोई तीसरा देश भारत में अपने प्रोडक्ट ना बेचे।”

    राजीव नाथ के अनुसार, पिछले साल भारत से इंग्लैंड को 1015 करोड़ रुपये की मेडिकल डिवाइस का निर्यात हुआ था। इसमें एक साल पहले की तुलना में 13% की वृद्धि हुई थी। इंग्लैंड से इनका आयात 36% बढ़कर 2295 करोड़ रुपये हो गया था। भारत से इंग्लैंड को मुख्य रूप से कॉन्टैक्ट लेंस, डायग्नॉस्टिक रीएजेंट, सर्जिकल इंस्ट्रूमेंट और पीपीई किट का निर्यात किया गया। वहां से आयात में वेंटिलेटर, एक्स-रे उपकरण, डायग्नॉस्टिक टेस्टिंग रीएजेंट और आईवीडी एनालिसिस इंस्ट्रूमेंट शामिल हैं। भारत में ज्यादातर आयात पर 7.5% शुल्क लगता है। एफटीए के बाद उम्मीद है कि इसमें धीरे-धीरे कमी आएगी।

    फाइनेंशियल कंपनियों को इंग्लैंड में विस्तार का मौका 

    कॉम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक एंड ट्रेड एग्रीमेंट (CETA) से भारत की फाइनेंशियल सर्विसेज कंपनियों को इंग्लैंड में अपनी सेवाओं का विस्तार करने तथा वहां मौजूद भारतीय डायस्पोरा और बिजनेस को सर्विसेज मुहैया कराने में मदद मिलेगी। नॉन-डिस्क्रिमिनेशन यानी बिना भेदभाव वाले नियम से भारतीय कंपनियों को इंग्लैंड में अपनी सेवाएं उपलब्ध कराने में समान अवसर मिलने की उम्मीद है। इलेक्ट्रॉनिक पेमेंट, फाइनेंशियल टेक्नोलॉजी, फाइनेंशियल डाइवर्सिटी, स्टेबिलिटी और मार्केट इंटीग्रेशन को मजबूती मिलने की संभावना है। इस समझौते से तेजी से बढ़ते भारतीय बाजार में इंग्लैंड से निवेश भी बढ़ेगा। मैरिटाइम शिपिंग, इंश्योरेंस तथा नॉन-लाइफ इंश्योरेंस जैसे सेगमेंट में इंग्लैंड की कंपनियों को भारत में विस्तार का मौका मिलेगा।