Indian Rupee Exchange Rate: डॉलर और यूरो को बराबर की टक्कर दे रहा है रुपया, लेकिन ये चीजें बिगाड़ सकती हैं खेल
दुनिया भर में डॉलर को सबसे मजबूत और सुरक्षित मुद्रा माना जाता है और बाकी के देश की करेंसी की तुलना डॉलर से होती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा की भारतीय करेंसी रुपया की वैल्यू डॉलर के मुकाबले किन कारणों से प्रभावित होती है।

नई दिल्ली,बिजनेस डेस्क: अकसर आपने रुपये के वैल्यू की तुलना अमेरिका डॉलर से करते हुए देखा होगा और सुना होगा। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) नियमित रूप से रुपये बनाम डॉलर, यूके पाउंड, यूरो, स्विस फ्रैंक, ऑस्ट्रेलियाई डॉलर और जापानी येन की विनिमय दर प्रकाशित करता है।
दुनिया भर में डॉलर को ही बेंचमार्क सेट किया गया है और डॉलर से ही वैश्विक लेनदेन होती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा की हमारी भारतीय करेंसी की वैल्यू डॉलर के मुकाबले कम और ज्यादा क्यों होती है। आज हम आपको इन्हीं सवालों का जवाब देंगें।
फेड रेट
भारत में जैसे रिजर्व बैंक आरबीआई है वैसे ही अमेरिका में फेडरल बैंक है और इसी बैंक के फैसलों से अमेरिका की करेंसी डॉलर के साथ-साथ दुनिया की करेंसी पर प्रभाव पड़ता है। दरअसल फेडरल बैंक भारत में आरबीआई की रेपो रेट की तरह ही वहां फेड रेट तय करता है।
फेड या फेडरल बैंक का मौद्रिक रुख वास्तव में फेड दरों की भविष्य की दिशा तय करता है। फेड दरें वह आधार हैं जिस पर यूएस बॉन्ड यील्ड निर्धारित होते हैं। उच्च फेड दरों का अर्थ है अमेरिकी बांडों पर उच्च यील्ड। कोई भी निवेशक अपना नुकसान नहीं करवाना चाहता, इसलिए वह निवेश की उन जगहों को तलाश करता है जो निवेश के लिए सुरक्षित हो और ज्यादा मुनाफा दे।
जैसे ही फेड रेट अधिक होता है वैसे ही वैश्विक निवेशक हाई रिटर्न पाने के लिए बाकी के देशों से पैसे निकाल कर अमेरिका में डालते हैं जिसकी वजह से डॉलर और अधिक मजबूत होता है और इसकी वजह से रुपया कमजोर होता है।
डॉलर इंडेक्स
विश्व स्तर पर, रुपये के मूल्य को प्रभावित करने वाले सबसे महत्वपूर्ण कारणों में से एक डॉलर इंडेक्स भी है। डॉलर इंडेक्स (DXY) हार्ड करेंसी के बास्केट के मुकाबले डॉलर की मजबूती का इंडेक्स है। इसलिए डॉलर इंडेक्स न केवल डॉलर की मजबूती के बारे में है, बल्कि डॉलर की तुलना में अन्य कठिन मुद्राओं की कमजोरी भी है।
कैपिटल फ्लो
कैपिटल फ्लो दो तरह से होते हैं, फॉरेंन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट (एफडीआई) और फॉरेन पोर्टफोलियों इन्वेस्टमेंट (एफपीआई)। एफडीआई का मतलब किसी देश का कोई फर्म या व्यक्ति दूसरे देश में स्थित व्यावसायिक गतिविधियों में किया गया निवेश होता है। एफडीआई किसी निवेशक को एक बाहरी देश में डायरेक्ट व्यावसायिक खरीद की सुविधा देता है।
फॉरेन पोर्टफोलियो निवेश या एफपीआई वैसे निवेश को कहते हैं जिसमें निवेशक अपने देश के बाहर की संपत्ति और प्रतिभूतियों को खरीदता है। इन निवेशों में स्टॉक, बॉन्ड, एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ईटीएफ) या म्यूचुअल फंड शामिल हो सकते हैं। इन दोनों ही स्थिति में निवेशक तब निवेश करते हैं जब वहां की करेंसी मजबूत और सुरक्षित होती है।
क्रूड ऑयल
दुनिया भर में कच्चे तेल की कीमत हर रोज तय होती है। आपने भी समाचार में अकसर सुना होगा की आज कच्चे के भाव में गिरावट आई या बढ़त हुई। रुपये की वैल्यू कच्चे तेल के भाव पर इसलिए निर्भर करती है क्योंकि भारत कच्चे तेल जिन देशों से खरीदता है उन्हें या तो डॉलर या फिर सोने के माध्यम से पेमेंट करता है।
डॉलर से पेमेंट करने के लिए भारत को अपने रुपये के बदले डॉलर लेना पड़ता है जिससे पेमेंट होती है। और कुछ ऐसा ही पूरी दुनिया भी अपने मुद्रा के साथ करती है। जब डॉलर की मांग इतनी ज्यादा होगी तो डॉलर अपने आप मजबूत होगा और रुपया कमजोर।
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