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    महंगी हो सकती हैं दालें, CACP ने की अरहर, उड़द और मसूर पर आयात शुल्क बढ़ाने की सिफारिश, जानिए डिटेल्स

    Updated: Thu, 29 May 2025 01:29 PM (IST)

    इस साल किसानों को दलहन के न्यूनतम समर्थन मूल्य में अच्छा इजाफा करने के बाद सरकार दालों को लेकर एक और बड़ा कदम जल्द उठा सकती है। दरअसल कृषि लागत एवं मूल्य आयोग ने दालों पर आयात शुल्क बढ़ाने की सिफारिश की है। यदि सरकार ने इस सिफारिश को स्वीकार कर लिया तो इसका सीधा असर दाल की कीमतों पर पड़ेगा। आइए इस खबर को विस्तार से जानते हैं।

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    मटर के आयात पर लग सकती है रोक, दालों पर आयात शुल्क बढ़ाने की सिफारिश!

    नई दिल्ली। देश में सूखी मटर के आयात पर जल्द ही प्रतिबंध लग सकता है। कृषि उत्पादों पर सरकार को सलाह देने वाली संस्था कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) ने केंद्र सरकार को मटर के आयात पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की है। इसके अलावा सीएसीपी ने अन्य दालों जैसे कि अरहर, मसूर और उड़द दाल पर भी आयात शुल्क लगाने की सिफारिश की है।

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    सीएसीपी ने अपनी सिफारिश में कहा है कि बिना रोक-टोक के आयात होने वाली सस्ती दालों से घरेलू कीमतों पर असर पड़ता है और इसका खामियाजा किसानों को उठाना पड़ता है। सीएसीपी ने सुझाव दिया कि अरहर, मसूर और उड़द जैसी दालों पर आयात शुल्क बढ़ाया जाए, ताकि खरीफ विपणन सीजन 2025-26 के दौरान किसानों को बेहतर कीमत मिल सके।

    सीएसीपी ने कहा कि हमने पाया है कि दालों और खाद्य तेलों का बिना रोक-टोक आयात होने से सोयाबीन, मूंगफली, उड़द, मूंग और तूर की घरेलू कीमतें पिछले साल एमएसपी से नीचे चली गई थीं। आयोग के मुताबिक, कृषि उपजों पर आयात शुल्क की संरचना को एमएसपी के साथ जोड़ने से ही किसानों को अच्छी कीमत सुनिश्चित होगी। और किसान तिलहन और दालों की खेती करने के लिए प्रोत्साहित होंगे।

    बता दें, केंद्र सरकार ने देश में दालों की आपूर्ति बढ़ाने के लिए दिसंबर 2023 में पीले मटर के शुल्क मुक्त आयात की अनुमति दी थी। तब से अप्रैल 2025 तक भारत ने 33 लाख टन से अधिक पीले मटर का आयात किया है। पीले मटर का शुल्क-मुक्त आयात 31 मई, 2025 तक खुला है। सरकार ने अरहर और उड़द जैसी अन्य दालों का भी मार्च 2026 तक शुल्क-मुक्त आयात करने की अनुमति दी है।

    क्या होगा आप पर असर?

    यदि सूखी मटर के शुल्क मुक्त आयात पर प्रतिबंध लगा और अन्य दालों पर आयात शुल्क बढ़ा तो इसका असर सीधे तौर पर दालों की कीमतों पर पड़ेगा। हालांकि, इसका दूसरा पहलू भी है। इससे किसानों को उनकी उपज का बेहतर मूल्य भी सुनिश्चित होगा।