जिस 'रेयर अर्थ मैग्नेट' से दुनिया को ब्लैकमेल करता है चीन, भारत में होगा उसका उत्पादन, 7350 करोड़ का प्लान
केंद्र सरकार 'सिंटर्ड रेयर अर्थ परमानेंट मैग्नेट' (REPMs) के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने और आयात पर निर्भरता कम करने के लिए लगातार काम कर रही है, और अब 7,350 करोड़ रुपये की योजना को शुरू करने के अंतिम चरण में है। इस योजना के तहत, सरकार 5 इंटीग्रेटेड आरईपीएम मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स के निर्माण में सहयोग करेगी।

सरकार 'सिंटर्ड रेयर अर्थ परमानेंट मैग्नेट' के प्रोडक्शन के लिए नई योजना लॉन्च करने की तैयारी में
नई दिल्ली। रेयर अर्थ मेटल से मिलने वाले रेयर अर्थ मैग्नेट (Rare-Earth Magnets), मॉडर्न टेक्नोलॉजी, ट्रेड और नेशनल सिक्योरिटी के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण है, इसलिए सरकार 'सिंटर्ड रेयर अर्थ परमानेंट मैग्नेट' (REPMs) के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने और आयात पर निर्भरता कम करने के लिए जिस 'रेयर अर्थ मैग्नेट' के लिए दुनिया को ब्लैकमेल करता है चीन, सरकार भारत में कर रही इसके प्रोडक्शन की तैयारी करोड़ रुपये की योजना को शुरू करने के अंतिम चरण में है। बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट में यह दावा किया गया है। दरअसल, सरकार द्वारा यह कदम चीन की ओर से अप्रैल में आरईपीएम के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के कुछ महीने बाद उठाया है, जिससे भारत के ऑटोमोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योगों को रेयर अर्थ मैग्नेट की सप्लाई कम हो गई।
रेयर अर्थ मैग्नेट की उपयोगिता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसका इस्तेमाल इलेक्ट्रिकवाहनों, स्मार्टफोन, लैपटॉप समेत अन्य इलेक्ट्रॉनिक्स गैजेट्स और मेडिकल डिवाइस के निर्माण में होता है। रेयर अर्थ मैग्नेट, अपने यूनिक मैग्नेटिक, इलेक्ट्रॉनिक और केमिकल प्रॉपर्टीज के कारण एडवांस टेक्नोलॉजी में अहम भूमिका निभाते हैं इसलिए कई देशों के लिए आर्थिक व रणनीतिक रूप से यह बहुत महत्व रखते हैं।
क्या है सरकार का प्लान
सरकार की यह पहल जिसे संभवतः भारत में 'सिंटर्ड रेयर अर्थ परमानेंट मैग्नेट मैन्युफैक्चरिंग' को बढ़ावा देने की योजना कहा जाएगा, इसका उद्देश्य 6,000 टन तक की वार्षिक उत्पादन क्षमता वाला एक पूर्णतः स्वदेशी मैन्युफैक्चरिंग इकोसिस्टम स्थापित करना है। आधिकारिक दस्तावेजों के अनुसार, यह योजना 7 वर्षों तक चलने की उम्मीद है।
इसका लक्ष्य एनडीपीआर (नियोडिमियम-प्रेजोडिमियम) ऑक्साइड को सिंटर किए गए एनडीफेबी (नियोडिमियम-आयरन-बोरॉन) चुम्बकों में परिवर्तित करने वाली एक डॉमेस्टिक प्राइस चैन का निर्माण करना है। ये ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स, विंड एनर्जी और डिफेंस सेक्टर जैसे क्षेत्रों के लिए महत्वपूर्ण हैं। आरईपीएम उत्पादन में खनन, प्रसंस्करण, निष्कर्षण, रेयर अर्थ ऑक्साइड रिफाइनिंग, मेटल और एलॉय में कंवर्जन, और मैग्नेट प्रोडक्शन शामिल है।
मैन्यफैक्चरिंग यूनिट्स को सरकार देगी सहायता
प्रस्तावित योजना उन सुविधाओं को प्रोत्साहित करेगी जो अंतिम तीन चरणों को पूरा करने में सक्षम हैं: रेयर अर्थ ऑक्साइड को मेटल में, मेटल को एलॉय में और एलॉय को मैग्नेट में परिवर्तित करती हों। वर्तमान में, भारत में इन चरणों को पूरा करने के लिए तकनीक और बुनियादी ढाँचे का अभाव है।
इस योजना के तहत, सरकार 5 इंटीग्रेटेड आरईपीएम मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स के निर्माण में सहयोग करेगी, जिनमें से प्रत्येक की क्षमता 1,200 टन प्रति वर्ष तक होगी। आवेदक न्यूनतम 600 टन प्रति वर्ष और अधिकतम 1,200 टन प्रति वर्ष, 100 टन प्रति वर्ष की वृद्धि के साथ बोली लगा सकते हैं।
भारत वर्तमान में अपनी लगभग सभी आरईपीएम ज़रूरतें आयात करता है। सरकारी अनुमान के अनुसार, घरेलू मांग लगभग 4,010 टन प्रति वर्ष है, जिसके 2030 तक लगभग दोगुनी होकर 8,220 टन हो जाने की उम्मीद है।
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