"अगर कोई सिर पर बंदूक रखे तो दो ही विकल्प, पहला...", दुनिया छोड़ने से पहले रतन टाटा ने आखिर क्यों कही थी ये बात?
रतन टाटा ने एक बार कहा था कि अगर कोई सिर पर बंदूक रखे तो दो ही विकल्प हैं। या तो ट्रिगर दबा दो या बंदूक हटा लो। क्योंकि मैं सिर नहीं झुकाऊंगा। यह बात उन्होंने यूं ही नहीं कही थी। यह उनके जीवन और काम करने के तरीके को दर्शाती है। रतन टाटा ने अपने पूरे करियर में कभी ईमानदारी और मूल्यों से समझौता नहीं किया।

नई दिल्ली| 9 अक्टूबर 2024... ये सिर्फ तारीख नहीं, बल्कि वो काला दिन है, जब भारत ने एक अनमोल 'रतन' खो दिया। नाम है- रतन टाटा। एक ऐसा नाम, जो बिजनेस जगत का ही नहीं, बल्कि हर भारतीय में आज भी प्रेरणा की तरह बसा हुआ है। उनकी जिंदगी हमें ये सिखाती है कि असली ताकत दौलत या औधे में नहीं, बल्कि अपने सिद्धांतों और खुद्दारी में होती है। रतन टाटा (Ratan Tata) ने हर मुश्किल में ईमानदारी और साहस का रास्ता चुना, भले ही दुनिया उनके खिलाफ ही खड़ी क्यों न हो।
उनकी सादगी, उनके निर्णय, और उनका संघर्ष- सब कुछ हमें बताता है कि सफलता सिर्फ बड़ी इमारतों या कंपनियों में नहीं, बल्कि इंसानियत और अपने मूल्यों को निभाने में छिपी होती है। उन्होंने दिखाया कि सम्मान और आत्मसम्मान के लिए कभी झुकना नहीं चाहिए। उन्होंने एक बार कहा था कि,
"अगर कोई सिर पर बंदूक रखे, तो दो ही विकल्प हैं। या तो ट्रिगर दबा दो, या बंदूक हटा लो। क्योंकि मैं सिर नहीं झुकाऊंगा।"
उनकी ये बात इस बात की बानगी है कि आपके सिद्धांतों से बड़ा कुछ नहीं होता।
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रतन टाटा के सिद्धांत और वो आंदोलन जिसने...
हालांकि, यह बात उन्होंने यूं ही नहीं कही थी। यह उनके जीवन और काम करने के तरीके को दर्शाती है। रतन टाटा ने अपने पूरे करियर में कभी ईमानदारी और मूल्यों से समझौता नहीं किया। टाटा समूह के चेयरमैन रहते हुए उन्हें कई बार ऐसे हालात का सामना करना पड़ा, जब समझौता आसान था, लेकिन सही नहीं।
पश्चिम बंगाल के सिंगूर में नैनो कार फैक्ट्री के लिए जमीन विवाद सामने आया। आंदोलन इतना तेज हुआ कि कंपनी को प्लांट शिफ्ट करना पड़ा। कई लोगों ने सोचा कि रतन टाटा पीछे हट जाएंगे, लेकिन उन्होंने डटकर फैसला लिया और पूरी फैक्ट्री गुजरात ले गए।
यह उनकी उसी सोच का उदाहरण था कि सिर झुकाना विकल्प नहीं है। सही काम के लिए चाहे कितनी भी मुश्किल आए, डटे रहना चाहिए।
वो वजह, जिसने नहीं लगने दिया भ्रष्टाचार का दाग
रतन टाटा का नाम हमेशा ईमानदारी के साथ लिया जाता है। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि उन्होंने कभी राजनीति और सत्ता से करीबी रिश्ते बनाने की कोशिश नहीं की। यही वजह थी कि टाटा समूह पर कभी भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप नहीं लगे। यह आसान नहीं था, क्योंकि कारोबार की दुनिया में अक्सर शॉर्टकट और गलत रास्ते अपनाने का दबाव होता है।
रतन टाटा की वो सीख, जो हर किसी के काम आए
रतन टाटा की यह लाइन सिर्फ बिजनेस तक सीमित नहीं है। यह आम जिंदगी में भी उतनी ही सच लगती है। कई बार इंसान के सामने हालात ऐसे आते हैं कि वह हार मानने या समझौता करने लगता है। लेकिन टाटा का कहना है कि अगर आत्मविश्वास और सच्चाई आपके साथ है, तो डटे रहो।
आज टाटा ग्रुप दुनिया भर में भरोसे का दूसरा नाम है। करोड़ों लोग टाटा का नाम सुनकर बिना सोचे-समझे उस पर विश्वास करते हैं। इसके पीछे सिर्फ कारोबार की ताकत नहीं, बल्कि वही ईमानदारी और साहस है, जिसकी मिसाल खुद रतन टाटा हैं।
उनकी यह बात कि, "मैं सिर नहीं झुकाऊंगा" सिर्फ एक उद्धरण नहीं, बल्कि उनकी पूरी जिंदगी और सोच का सार है। यही वजह है कि लोग उन्हें सिर्फ उद्योगपति नहीं, बल्कि भारत का रतन मानते थे। आज वो भले ही हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके विचार आज भी जिंदा हैं और जिंदा रहेंगे।
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