जकरबर्ग नहीं इस महिला ने Facebook को बनाया अरबों डॉलर का साम्राज्य, भारत से है ये नाता
मार्क जकरबर्ग ने 2004 में फेसबुक लॉन्च (Facebook Launch Date) किया। जबकि शेरिल सैंडबर्ग (Sheryl Sandberg) 2008 में COO के रूप में फेसबुक से जुड़ीं और उन्होंने फेसबुक को एक कैश-बर्निंग स्टार्टअप से अरबों डॉलर के साम्राज्य में बदल दिया। सैंडबर्ग ने एक मजबूत सेल्स टीम बनाई और एडवरटाइजिंग स्ट्रेटेजी पर फोकस किया। 2008 में फेसबुक का रेवेन्यू 272 मिलियन डॉलर था जो 2024 में 164.5 बिलियन डॉलर हो गया।

नई दिल्ली। मार्क जकरबर्ग (Mark Zuckerberg) ने 2004 में अपने हार्वर्ड हॉस्टल के कमरे से फेसबुक को लॉन्च (Facebook Launch Date) किया था। इसके बाद यह दुनिया भर के लोगों को जोड़ने वाला एक रेवोल्यूशनरी प्लेटफॉर्म बन गया। हालाँकि तेजी से बढ़ती यूजर्स की संख्या के बावजूद, फेसबुक को एक बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा और वो था अपनी लोकप्रियता को प्रॉफिट कमाने की स्ट्रैटेजी में बदलना।
फिर साल 2008 में शेरिल सैंडबर्ग (Sheryl Sandberg) फेसबुक से बतौर चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर (सीओओ) जुड़ीं। कहा जाता है कि उन्हीं के विजन ने फेसबुक को एक कैश-बर्निंग स्टार्टअप से अरबों डॉलर के साम्राज्य में बदल दिया। कैसे हुआ ये मुमकिन, आइए जानते हैं।
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क्या थी सैंडबर्ग की खास रणनीति
मार्च 2008 में फेसबुक में सीओओ के रूप में शामिल होने वाली सैंडबर्ग के पास गूगल में काम करने का खास एक्सपीरियंस था, जहाँ उन्होंने ऑनलाइन सेल्स और ऑपरेशंस की जिम्मेदारी संभाली थी। उन्होंने फेसबुक के विशाल यूजर डेटा की क्षमता को पहचानते हुए, एक ऐसी एडवरटाइजिंग स्ट्रैटेजी के डेवलपमेंट पर फोकस किया, जिससे बिजनेसों को बेहतरीन सटीकता के साथ यूजर्स को टार्गेट करने में मदद मिली।
यह अप्रोच केवल विज्ञापन लगाने तक ही सीमित नहीं थी; बल्कि यह एक ऐसा सिस्टम बनाने को लेकर, जहाँ विज्ञापन यूजर्स के लिए जरूरी और आकर्षक लगें, जिससे उनकी प्रभावशीलता बढ़े। यहीं से फेसबुक को रेवेन्यू भी मिलता।
सैंडबर्ग ने बनाई एक स्पेशल टीम
सैंडबर्ग की स्ट्रैटेजी में एक मजबूत सेल्स टीम बनाना शामिल था, जो उस समय खास तौर से टेक कंपनियों के लिए एक नया कदम था। उनका मानना था कि एड देने वालों के साथ व्यक्तिगत संबंध उनकी जरूरतों को समझने और उनके अनुसार Facebook की पेशकशों को तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएँगे। इसी ह्यूमन-सेंट्रिक नजरिए ने एक स्थायी रेवेन्यू मॉडल की नींव रखी।
कहां से कहां पहुंचा फेसबुक की कमाई
सैंडबर्ग की पहल के नतीजे असाधारण रहे। 2008 में, जिस साल वह फेसबुक से जुड़ीं, फेसबुक का रेवेन्यू 272 मिलियन डॉलर (आज के हिसाब से 2382 करोड़ रु) था। 2021 में, कंपनी ने 118 बिलियन डॉलर (10.33 लाख करोड़ रु) का रेवेन्यू दर्ज किया—जो 43,000% से ज़्यादा की वृद्धि है। 2024 में इसका रेवेन्यू 164.5 बिलियन डॉलर (14.40 लाख करोड़ रु) रहा।
इस शानदार ग्रोथ का श्रेय सैंडबर्ग द्वारा लागू किए गए एड मॉडल को दिया जाता है, जिनकी स्ट्रैटेजी फेसबुक की फाइनेंशियल सफलता का आधार बनी।
भारत में शुरुआत
सैंडबर्ग के सीओओ रहते ही 2010 में फेसबुक ने भारत में अपना पहला ऑफिस लॉन्च किया था। इसका पहला ऑफिस हैदराबाद में खोला गया था।
और क्या जरूरी कदम उठाए
सैंडबर्ग का असर सिर्फ फाइनेंशियल तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने फेसबुक के कॉरपोरेट कल्चर और ऑपरेशनल एफिशिएंसी को दिशा देने में अहम भूमिका निभाई। वर्क-लाइफ बैलेंस और एम्प्लॉई वेल-बीइंग को बढ़ावा देने वाली नीतियों, जैसे फ्लेक्सिबल वर्क टाइम, को लागू करके सैंडबर्ग ने एक ऐसा माहौल तैयार किया, जहाँ कर्मचारी खुद को अहम और प्रेरित महसूस करे। इससे कंपनी की ग्रोथ को और रफ्तार मिली।
जून 2022 में, सैंडबर्ग ने सीओओ के पद से इस्तीफा देने का ऐलान कर दिया, जिससे फेसबुक में एक युग का अंत हो गया।
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