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    Tata Trust के सामने नई मुसीबत, गले की फांस बन सकता है महाराष्ट्र सरकार का ये नियम; समझें क्या है पूरा मामला?

    Updated: Tue, 11 Nov 2025 07:27 PM (IST)

    Tata Trust New Challenge: टाटा ट्रस्ट के सामने महाराष्ट्र सरकार का एक नया नियम मुसीबत बन सकता है। इस नियम का उद्देश्य ट्रस्ट के संचालन में पारदर्शिता लाना है, जिससे ट्रस्ट की निर्णय लेने की प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है। अब ट्रस्ट को सरकार के साथ मिलकर काम करना होगा ताकि नियमों का पालन करते हुए अपने उद्देश्यों को पूरा किया जा सके।

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    Tata Trust के सामने नई मुसीबत, गले की फांस बन सकता है महाराष्ट्र सरकार का ये नियम।

    नई दिल्ली| महाराष्ट्र सरकार के एक नए नियम से टाटा ट्रस्ट्स की कामकाज प्रणाली पर सीधा असर पड़ने वाला है। सरकार ने Maharashtra Public Trusts (Amendment) Ordinance, 2025 (Ord. 7 of 2025) के तहत एक बड़ा बदलाव किया है, जिसके अनुसार अब किसी भी ट्रस्ट में आजीवन ट्रस्टियों की संख्या कुल ट्रस्टियों की संख्या के एक-चौथाई से ज्यादा नहीं हो सकेगी।

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    सितंबर में लागू हुए इस ऑर्डिनेंस से टाटा ट्रस्ट (Tata Trust)  की उस योजना पर रोक लग सकती है, जिसके तहत पिछले साल अक्टूबर 2024 में यह फैसला हुआ था कि ट्रस्टियों का कार्यकाल खत्म होने के बाद उन्हें आजीवन ट्रस्टी के रूप में दोबारा नियुक्त किया जाएगा।

    हर ट्रस्ट में होंगे सिर्फ दो तरह के ट्रस्टी

    अब नए नियम के बाद हर ट्रस्ट में दो तरह के ट्रस्टी होंगे- आजीवन ट्रस्टी और निश्चित अवधि वाले ट्रस्टी। यानी, अगर किसी ट्रस्ट में दो आजीवन ट्रस्टी रखने हैं, तो उसमें कुल आठ ट्रस्टी होने जरूरी होंगे। फिलहाल, टाटा समूह के दो प्रमुख ट्रस्ट हैं। पहला- सर रतन टाटा ट्रस्ट (SRTT) और दूसरा सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट (SDTT), दोनों में छह-छह ट्रस्टी हैं। बता दें कि टाटा ट्रस्ट में पिछले दिनों बढ़े विवाद के बाद मेहली मिस्त्री (Mehli Mistry) को दोबारा नियुक्त नहीं किया गया है।

    यह भी पढ़ें- रतन टाटा कौन सी कसम देकर गए, जो मेहली मिस्त्री को छोड़ना पड़ा टाटा ट्रस्ट? नोएल टाटा को लिखे पत्र ने कर दिया भावुक

    5 साल के लिए ही होगी ट्रस्टी की नियुक्ति

    नए कानून में यह भी तय किया गया है कि जहां ट्रस्ट डीड में कार्यकाल का जिक्र नहीं है, वहां ट्रस्टी की नियुक्ति अधिकतम पांच साल के लिए ही की जा सकेगी। इसके बाद उन्हें दोबारा नियुक्त करना होगा। माना जा रहा है कि यह कदम रतन टाटा के निधन के बाद टाटा ट्रस्ट द्वारा लिए गए उस फैसले की प्रतिक्रिया है, जिसमें मौजूदा ट्रस्टियों को आजीवन कार्यकाल देने का निर्णय लिया गया था।

    इकॉनोमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, अब सबसे बड़ी चुनौती वेनु श्रीनिवासन की पुनर्नियुक्ति को लेकर है। उन्हें 20 अक्टूबर को SDTT का आजीवन ट्रस्टी बनाया गया था, लेकिन उस समय ट्रस्टियों को इस नए नियम की जानकारी नहीं थी। नोएल टाटा को इससे पहले आजीवन कार्यकाल के लिए दोबारा नियुक्त किया जा चुका है।

    कैसे चलता है सर रतन टाटा ट्रस्ट? (How is Sir Ratna Trust Trust?)

    जहां सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट अपने डीड के तहत चलता है, वहीं सर रतन टाटा ट्रस्ट एक वसीयत (Will) के अनुसार संचालित होता है। अब तय हुआ है कि जिन ट्रस्टियों का कार्यकाल तय अवधि का है, उन्हें समय पूरा होने पर पद छोड़ना होगा, जब तक उन्हें औपचारिक रूप से दोबारा नियुक्त न किया जाए। इस बदलाव से भविष्य में बड़े पब्लिक ट्रस्ट, खासकर टाटा ट्रस्ट्स, को अपने बोर्ड की संरचना में बड़े बदलाव करने पड़ सकते हैं।

    टाटा सन्स में टाटा ट्रस्ट की 66% हिस्सेदारी

    टाटा सन्स, जो टाटा समूह की होल्डिंग कंपनी है, उसमें 66% हिस्सेदारी टाटा ट्रस्ट्स की है। इनमें से 51% हिस्सेदारी SRTT और SDTT के पास है। वर्तमान में SDTT के बोर्ड में नोएल टाटा, वेनु श्रीनिवासन, विजय सिंह, प्रमित झावेरी और डेरियस खंबाटा शामिल हैं।

    नोएल टाटा (Noel Tata) का कार्यकाल भी जनवरी में आजीवन के लिए बढ़ाया गया था। उसी समय यह प्रस्ताव पास हुआ था कि ट्रस्ट के सभी मौजूदा ट्रस्टी, कार्यकाल खत्म होने के बाद लाइफटाइम ट्रस्टी बनाए जाएंगे। वहीं, अब महाराष्ट्र सरकार का नया नियम इस पूरी व्यवस्था को फिर से परिभाषित कर सकता है, जो टाटा ट्रस्ट के लिए नई चुनौती बन गया है।

     

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