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    S&P ने क्यों कहा ट्रंप टैरिफ से बेअसर रहेगी भारत की जीडीपी, रेटिंग घटने का भी जोखिम नहीं

    SP ग्लोबल रेटिंग्स के एक शीर्ष अधिकारी ने Trump Tariff को लेकर महत्वपूर्ण बयान दिया है। डायरेक्टर यीफार्न फुआ का कहना है कि इस टैरिफ का भारत की विकास दर पर कोई खास असर नहीं होगा क्योंकि भारत की जीडीपी में अमेरिका को निर्यात का हिस्सा बहुत कम है। भारत में FDI प्रभावित होने की आशंका को भी उन्होंने गलत बताया।

    By Jagran News Edited By: Sunil Kumar Singh Updated: Wed, 13 Aug 2025 06:14 PM (IST)
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    S&P ने क्यों कहा ट्रंप टैरिफ से बेअसर रहेगी भारत की जीडीपी, रेटिंग घटने का भी जोखिम नहीं

    ऐसे समय जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा की है, एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स के डायरेक्टर यीफार्न फुआ ने कहा है (S&P assessment) कि इसका भारत की ग्रोथ पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। भारत के लिए रेटिंग बदलने का जोखिम भी नहीं है। इस बीच, मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन ((V Anantha Nageswaran) ने भी कहा है कि अमेरिकी टैरिफ से जुड़ी चुनौतियां एक या दो तिमाहियों में कम हो जाएंगी।

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    ट्रंप ने 6 अगस्त को भारत से आयात पर मौजूदा 25 प्रतिशत शुल्क के अतिरिक्त 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा की थी। भारत पर 27 अगस्त से कुल टैरिफ 50 प्रतिशत हो जाएगा। व्हाइट हाउस ने कहा कि यह कदम भारत द्वारा रूसी तेल की खरीद के कारण उठाया गया है।

    अमेरिका को निर्यात भारत की जीडीपी का सिर्फ 2 प्रतिशत

    टैरिफ के कारण भारत के पॉजिटिव आउटलुक पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने के बारे में पूछे गए एक सवाल के जवाब में यीफार्न ने कहा, "मुझे नहीं लगता कि भारत पर लगाए गए टैरिफ का आर्थिक विकास (India growth) पर कोई प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि भारत की अर्थव्यवस्था निर्यात पर अधिक निर्भर नहीं है। अमेरिका को भारत का निर्यात तो इसकी जीडीपी का लगभग 2 प्रतिशत ही है।" एसएंडपी का अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष में भारत की जीडीपी वृद्धि दर 6.5 प्रतिशत रहेगी, जो पिछले वित्त वर्ष के बराबर है।

    यीफार्न ने कहा कि फार्मास्यूटिकल्स और कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे प्रमुख क्षेत्रों को अभी टैरिफ से छूट है। लंबी अवधि में हमें नहीं लगता कि यह उच्च टैरिफ भारत की अर्थव्यवस्था पर कोई बड़ा प्रभाव डालेगा। इसलिए भारत के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण बना हुआ है। पिछले साल मई में एसएंडपी ने मजबूत आर्थिक विकास का हवाला देते हुए भारत की सॉवरेन रेटिंग 'बीबीबी- स्थिर' को बढ़ाकर ‘बीबीबी- पॉजिटिव’ कर दी थी।

    भारत में विदेशी निवेश घरेलू बाजार के कारण

    यह पूछे जाने पर कि क्या अमेरिकी टैरिफ से भारत में निवेश का प्रवाह प्रभावित होगा, उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में बिजनेस के लिए 'चीन प्लस वन' रणनीति काम कर रही है। कंपनियां मुख्य रूप से घरेलू मांग को पूरा करने के लिए भारत में बिजनेस स्थापित कर रही हैं।

    उन्होंने कहा कि अनेक कंपनियां भारत में सिर्फ अमेरिका को निर्यात करने के लिए नहीं जा रही हैं। वे भारत के विशाल घरेलू बाजार के कारण भी जा रही हैं। वहां का उभरता हुआ मध्यम वर्ग बड़ा होता जा रहा है। इसलिए जो लोग भारत में निवेश बढ़ाना चाहते हैं और निर्यात करना चाहते हैं, उनके लिए भी जरूरी नहीं कि वह अमेरिकी बाजार ही हो।

    वर्ष 2021-25 के दौरान अमेरिका, भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार था। भारत के कुल वस्तु निर्यात में अमेरिका का लगभग 18 प्रतिशत और आयात में 6.22 प्रतिशत हिस्सा है। वर्ष 2024-25 में भारत ने 86.5 अरब डॉलर की वस्तुओं का निर्यात किया, जबकि आयात 45.3 अरब डॉलर का रहा। इस तरह भारत 41 अरब डॉलर के ट्रेड सरप्लस में रहा।

    टैरिफ की चुनौतियां दो तिमाही में कम हो जाएंगीः नागेश्वरन

    सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन (V Anantha Nageswaran) ने कहा है कि अमेरिकी टैरिफ से जुड़ी चुनौतियां अगली एक या दो तिमाहियों में कम हो जाएंगी। उन्होंने कहा, मुझे नहीं लगता कि दीर्घकालिक परिदृश्य में भारत पर इसका उतना बड़ा असर होगा, लेकिन अल्पावधि में कुछ असर जरूर होगा। उन्होंने कहा कि कोई भी यह अनुमान नहीं लगा सकता कि राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत पर इतना ज्यादा टैरिफ क्यों लगाया।

    नागेश्वरन ने कहा कि सरकार स्थिति से अवगत है और प्रभावित क्षेत्रों के साथ बातचीत की जा रही है। आने वाले दिनों में नीति निर्माताओं की राय ली जाएगी, लेकिन लोगों को धैर्य रखना होगा। उन्होंने निजी क्षेत्र से आग्रह किया कि जैसे-जैसे देश अन्य दीर्घकालिक चुनौतियों से निपटेगा, निजी क्षेत्र को और अधिक प्रयास करने चाहिए।

    अमेरिकी वित्त मंत्री Bessent का तल्खी बढ़ाने वाला बयान

    अमेरिका के वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट (Scott Bessent) ने व्यापारिक संबंधों में तल्खी बढ़ाने वाला बयान दिया है। उन्होंने ट्रेड वार्ताओं के दौरान भारत के रुख को ‘थोड़ा अड़ियल’ बताया। फॉक्स बिजनेस नेटवर्क से बात करते हुए बेसेंट ने कहा कि स्विट्जरलैंड और भारत सहित कई बड़े व्यापारिक समझौते अभी लंबित हैं, लेकिन नई दिल्ली के साथ बातचीत विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण रही है।

    बेसेंट के इस बयान पर विशेषज्ञों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनीशिएटिव (GTRI) के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा, “अमेरिकी वित्त मंत्री के बयान से लगता है कि अमेरिका खुद को उदार और भारत को बाधा मानता है। सच्चाई इसके ठीक उलट है। हालांकि दोनों पक्षों की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन समझा जाता है कि वार्ताकारों ने समझौते की शर्तों पर मोटे तौर पर सहमति बना ली थी। लेकिन तभी अमेरिकी नेतृत्व की तरफ से अतिरिक्त रियायतों पर जोर दिए जाने से संतुलन बिगड़ गया।”

    उन्होंने कहा, यूरोपियन यूनियन, जापान और दक्षिण कोरिया ने अमेरिका की एकतरफा मांगों को मान लिया, जबकि भारत और चीन ने ऐसा नहीं किया है। अंतर यह है कि अमेरिका को चीन से महत्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति खतरे में पड़ने का डर है, इसलिए वह बीजिंग पर समान रूप से कठोर शुल्क लगाने से बचता है। भारत पर दबाव बनाने की रणनीति के तहत उसने अधिकांश निर्यात पर 50% शुल्क लगा दिया है।

    श्रीवास्तव के अनुसार, भारत की स्थिति स्पष्ट होनी चाहिए- हम गंभीरता से बात करेंगे, लेकिन वह बातचीत एक निष्पक्ष और संतुलित समझौते के लिए हो। यह समझौता कृषि, जेनेरिक दवाओं, डिजिटल नियमों जैसे मुद्दों पर रेड लाइन का सम्मान करता हो।

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