BIS Certification केस में सुप्रीम कोर्ट पहुंचा स्टील मंत्रालय, MSME के लिए बेहद महत्वपूर्ण है मामला
BIS Certification Case News स्टील उत्पाद बनाने में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल के BIS Certification के लिए स्टील मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। सर्टिफिकेशन के उसके आदेश पर मद्रास हाई कोर्ट ने पिछले दिनों अंतरिम रोक लगा दी थी। हालांकि MSME की शिकायत है कि मंत्रालय के आदेश से उनका कामकाज प्रभावित हुआ है।

BIS Certification Case News: स्टील मंत्रालय ने बीआईएस सर्टिफिकेशन से संबंधित मद्रास हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। मंत्रालय ने 13 जून 2025 को एक आदेश जारी किया था, जिसमें बीआईएस-प्रमाणित स्टील प्रोडक्ट की मैन्युफैक्चरिंग में इस्तेमाल होने वाले हॉट-रोल्ड कॉइल, बिलेट, स्लैब और ब्लूम जैसे कच्चे माल के लिए भी बीआईएस प्रमाणन अनिवार्य किया गया था। मद्रास हाई कोर्ट ने 18 जुलाई को इस पर रोक लगा दी थी।
मंत्रालय का आदेश जारी होने के बाद कंपनियों को अनुपालन के लिए सिर्फ एक कार्यदिवस का समय दिया गया। इसका सबसे अधिक असर एमएसएमई पर दिखा, खास कर ऑटो पार्ट्स, प्रिसीजन ट्यूबिंग और फास्टनर्स बनाने वाली इकाइयों को। उनके सामने शिपमेंट में देरी, विलंब शुल्क और कॉन्ट्रैक्ट रद्द करने जैसी समस्याएं आ गईं।
इससे पहले, विदेशी निर्माता प्रमाणन योजना (FMCS) के तहत फिनिश्ड या सेमी-फिनिश्ड आयातित स्टील उत्पादों को फैक्टरी स्तर पर ऑडिट के बाद बीआईएस-प्रमाणित किया जाता रहा है। विदेश स्थित कच्चा माल सप्लाई करने वाले बीआईएस सर्टिफिकेशन नंबर ले सकें, इसके लिए इस्पात मंत्रालय ने सिम्स (SIMS) पोर्टल को अपडेट किया है।
अनेक एमएसएमई के सामने इनपुट का संकट
इन सप्लायरों में अनेक छोटी मिलें हैं, जिनके बीआईएस प्रमाणन प्राप्त करने के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं है। प्रमाणन प्रक्रिया में 6 से 18 महीने लगते हैं। इसके लिए शुल्क के साथ परफॉरमेंस की गारंटी और कागजी कार्रवाई भी शामिल होती है। इंडस्ट्री सूत्रों का कहना है कि ऐसे इनपुट पर निर्भर एमएसएमई की सप्लाई चेन रुकने से उनकी फैक्टरी बंद होने की नौबत आ गई है।
श्री रामदेव मेटलैक्स एलएलपी और अन्य प्रभावित फर्मों की याचिका पर सुनवाई करते हुए मद्रास हाई कोर्ट ने 18 जुलाई को मंत्रालय के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी। कोर्ट ने कहा कि इस नीति को पर्याप्त समय, परामर्श या स्पष्टता के बिना लागू किया गया था, जो संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) और 19(1)(जी) (व्यापार करने की स्वतंत्रता) का उल्लंघन है। मंत्रालय ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट (BIS Certification Case in SC) में विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर की है।
क्या है स्टील मंत्रालय का तर्क
मंत्रालय का तर्क है कि घरेलू स्टील उत्पादकों और आयातकों के बीच समानता के लिए यह आदेश आवश्यक है। मंत्रालय के अनुसार, भारतीय निर्माताओं के लिए इनपुट सामग्री में बीआईएस मानदंडों का पालन करना जरूरी है। मंत्रालय ने भारतीय बाजार में घटिया स्टील की डंपिंग रोकने के लिए भी इस नियम को जरूरी बताया है।
उद्योग विशेषज्ञों और ट्रेड एसोसिएशन ने इस्पात मंत्रालय के तर्कों का कड़ा विरोध किया है। छोटी-मझोली कंपनियों के संगठन फिस्मे (FISME) के सेक्रेटरी जनरल अनिल भारद्वाज ने बताया कि मंत्रालय का यह आदेश अनेक इकाइयों के लिए संकट बन गया है। अनेक तरह के स्टील की भारत में मैन्युफैक्चरिंग नहीं होती या यहां वे उपलब्ध नहीं हैं। उनका आयात करना मुश्किल हो गया है।
विशेषज्ञों ने दावे को भ्रामक बताया
थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के संस्थापक अजय श्रीवास्तव का कहना है कि घरेलू और विदेशी उत्पादकों के बीच समानता सुनिश्चित करने का दावा भ्रामक है। FMCS के तहत BIS पहले से ही विदेशी कारखानों की ऑडिटिंग करता है और यह सत्यापित करता है कि कच्चे माल भारतीय मानकों को पूरा करते हैं। कच्चे माल के सप्लायरों के लिए अलग से BIS लाइसेंस की मांग विदेशी स्टील फैक्टरियों के लिए एक नया कंप्लायंस बोझ पैदा करता है।
श्रीवास्तव ने घटिया स्टील की डंपिंग की चिंता को भी निराधार बताया है। उनका कहना है कि भारत में पहले से ही मजबूत क्वालिटी कंट्रोल के उपाय मौजूद हैं। इनमें मिल टेस्ट सर्टिफिकेट, बंदरगाहों पर और सीमा शुल्क निरीक्षण के माध्यम से प्रत्येक स्टील आयात शिपमेंट का अनिवार्य पॉजिटिव मैटेरियल आइडेंटिफिकेशन (PMI) परीक्षण शामिल हैं। मंत्रालय ने मौजूदा व्यवस्था नाकाम होने का कोई सबूत भी नहीं दिया है।
दूसरे देशों में क्या हैं नियम
अमेरिका, यूरोपियन यूनियन और जापान जैसे देश कच्चे माल के लिए अलग सर्टिफिकेशन की मांग नहीं करते, लेकिन अंतिम उत्पाद का रेगुलेटरी मानकों पर खरा उतरना जरूरी है। वहां ट्रेसेबिलिटी और मिल टेस्ट सर्टिफिकेट जैसे मानक पर्याप्त माने जाते हैं।
श्रीवास्तव के मुताबिक सर्टिफिकेशन यूजर तक पहुंचने वाले अंतिम उत्पाद के लिए महत्वपूर्ण है, न कि उत्पादन प्रक्रिया के हर चरण में। इसलिए भारत के कदम को नॉन-टैरिफ बाधा के रूप में देखा जा सकता है। उनका कहना है कि अंतर-मंत्रालयी समिति की समीक्षा आने तक 13 जून के आदेश को निलंबित किया जाना चाहिए। भविष्य में ऐसे किसी भी बदलाव के लिए कम से कम 90 दिनों का समय भी दिया जाना चाहिए। उन्होंने प्रतिस्पर्धा आयोग के माध्यम से कार्टेलाइजेशन के आरोपों की जांच का भी आग्रह किया है।
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