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    ये भारतीय कंपनी है दुनिया की सबसे बड़ी टूटी फ्रूटी निर्माता, आपने भी खाया होगा इसका अचार

    Updated: Thu, 28 Aug 2025 02:57 PM (IST)

    निलॉन्स (Nilon Success Story) एक छोटे गाँव से शुरू होकर आज 500 करोड़ रुपये का FMCG ब्रांड है। 1962 में नींबू की खेती से शुरुआत हुई फिर अचार और टूटी-फ्रूटी जैसे उत्पादों ने इसे पहचान दिलाई। 1970 में सेना से बड़ा ऑर्डर मिलने के बाद कंपनी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

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    छोटे से गाँव में अचार बेचने से शुरू हुई यह कंपनी आज ₹500 करोड़ का FMCG ब्रांड बन चुकी है।

    नई दिल्ली| कहते हैं, सही सोच और लगातार मेहनत किसी भी छोटे आइडिया को बड़ी कहानी बना सकती है। इसका जीता-जागता उदाहरण निलॉन्स (Nilon Success Story) हैं। एक छोटे से गाँव में अचार बेचने से शुरू हुई यह कंपनी आज ₹500 करोड़ का FMCG ब्रांड बन चुकी है, जिसकी मौजूदगी पूरे भारत में है और जो दुनिया की सबसे बड़ी टूटी-फ्रूटी बनाने वाली कंपनी है।

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    निलॉन्स की संघर्ष से शुरुआत

    निलॉन्स के वर्तमान CEO दीपक संघवी हैं। निलॉन्स की शुरुआत 1962 में हुई थी, तब दीपक संघवी के पिता और चाचा नींबू की खेती करते थे। वर्ल्ड वार के समय नींबू की मांग बहुत बढ़ी थी। जिसकी वजह सैनिक जब थकान जाते थे तो नींबू उनके बड़े काम आता था।

    ऐसे में उन्होंने नींबू से जुड़ी चीजों को वैल्यू-एडेड फूड प्रोडक्ट्स के रूप में बेचने का फैसला किया। शुरुआत नींबू का लाइम कॉर्डियल बनाकर की गई। 1967 में अचार लॉन्च हुआ, लेकिन लगातार सात साल तक मुनाफा नहीं हुआ।

    बड़ा मोड़ 1970 में आया, जब कंपनी को भारतीय सेना से इतना बड़ा ऑर्डर मिला जो उनके पूरे साल के प्रोडक्शन के बराबर था। जिस उन्हें सिर्फ दो महीने में सप्लाई करना था। यह चैलेंज पूरा करना निलॉन्स के लिए गेम-चेंजर साबित हुआ और वहीं से कंपनी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

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    टूटी-फ्रूटी से बनी पहचान

    1971 में निलॉन्स ने टूटी-फ्रूटी लॉन्च की, जो आज लगभग ₹60 करोड़ का बिजनेस है। यह इंग्रेडिएंट पान, आइसक्रीम, बिस्किट और केक में इस्तेमाल होता है। वॉल्स, वाडीलाल, कराची बेकरी जैसे बड़े ब्रांड्स से लेकर यूरोप तक की कंपनियाँ निलॉन्स की टूटी-फ्रूटी इस्तेमाल करती हैं।

    दीपक संघवी के बिजनेस लेसन

    हाल ही में एक पॉडकास्ट में निलॉन्स के एमडी दीपक संघवी ने FMCG बिजनेस पर कई अहम बातें साझा कीं जिसमें उन्होंने बताया कि किसी भी FMCG ब्रांड की ग्रोथ तीन चरणों में बंटी होती है।

    1. ₹0 से ₹10 करोड़: सबसे कठिन, पूंजी और मेहनत की भारी जरूरत।

    2. ₹10 से ₹100 करोड़: अपेक्षाकृत आसान।

    3. ₹100 करोड़ से आगे: फिर से चुनौती भरा।

    डिस्ट्रीब्यूशन ही असली ताकत

    FMCG में वही जीतता है जिसका प्रोडक्ट सबसे ज्यादा दुकानों तक पहुँचे। चाहे किराना स्टोर (जनरल ट्रेड) हो, मॉडर्न रिटेल जैसे बिग बाजार/डीमार्ट हों, होटल-रेस्टोरेंट (HoReCa) या फिर ई-कॉमर्स व क्विक कॉमर्स प्लेटफॉर्म।

    मार्केट की जरूरत समझो

    सिर्फ वही मत बनाओ जो आप बना सकते हो, बल्कि वही बनाओ जिसकी मार्केट में डिमांड हो। ग्राहक की आदत बदलना बहुत महँगा और समय लेने वाला काम है।

    किराना स्टोर सबसे मुश्किल चैनल

    यहाँ ग्राहक और कंपनी के बीच दुकानदार खड़ा होता है। अगर ब्रांड की पहचान नहीं है तो दुकानदार नया प्रोडक्ट कस्टमर को नहीं दिखाएगा। इसलिए यहाँ मार्केटिंग और पूंजी की भारी जरूरत होती है।

    गाँव से पैन-इंडिया तक

    निलॉन्स की सबसे अनोखी बात यह है कि इसका हेडक्वार्टर आज भी उत्तरान गाँव (जलगांव के पास) में है, जिसकी आबादी आज भी मात्र 20,000 के आसपास है। 1970 के दशक में ही निलॉन्स ने असम से लेकर कश्मीर और बिहार तक डिस्ट्रीब्यूशन खड़ा कर लिया था।

    आज निलॉन्स के अचार, चटनी, मसाले और कंडिमेंट्स देशभर में बिकते हैं। टूटी-फ्रूटी और पिकल्स जैसे प्रोडक्ट्स ने इसे हर भारतीय रसोई का हिस्सा बना दिया है।