गिरते बाजार में भी क्यों नहीं बंद करना चाहिए SIP, एक्सपर्ट ने बताया कैसे आगे चलकर मिलेगा जबर फायदा?
बाजार में अस्थिरता आने पर एसआईपी को रोकना एक आम बात है पर यह नुकसानदेह है। SIP का मुख्य उद्देश्य बाजार की चाल को भांपने की बजाय धीरे-धीरे निवेश करना है। गिरावट में एसआईपी रोकने से नुकसान नहीं बचता बल्कि उस प्रक्रिया को त्याग दिया जाता है जो अस्थिरता को अवसर में बदलने के लिए बनी थी।

नई दिल्ली। बाजार जरा सा हिला नहीं कि वाट्सएप मैसेजों की बौछार शुरू हो जाती है और हर बार यही होता है। ट्रंप की नई टैरिफ धमकी के बाद जब सेंसेक्स फिसला तो एक निवेशक ने पूछा, 'क्या मैं अपनी SIP रोक दूं?' इस पर एक सुझाव आया, 'बाजार अनिश्चित है, थोड़ा रुक कर देखना चाहिए?' ये पैटर्न जितना आम है, उतना ही नुकसानदेह भी। जैसे ही बाजार में अस्थिरता आती है, एसआईपी अचानक कुछ लोगों के लिए विकल्प का विषय बन जाती है। इस संबंध में वैल्यू रिसर्च ऑनलाइन डाट काम के धीरेंद्र कुमार ने बताया कि निवेश को क्या करना चाहिए। पढ़िए उनका लेख।
इस हफ्ते अमेरिकी व्यापार नीति को लेकर फैली घबराहट ये समझने के लिए एक आदर्श केस स्टडी है कि कैसे निवेशक अपनी ही बनाई हुई योजनाओं को नुकसान पहुंचा देते हैं। ट्रंप द्वारा भारतीय वस्तुओं पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा और आगे पेनल्टी की धमकी ने निवेशकों में ऐसी अनिश्चितता भर दी जिससे वे सब कुछ 'रोकने' का मन बना लेते हैं। सेंसेक्स हाल के ऊपरी स्तर से काफी गिर चुका है और अचानक ये निवेश गिरावट के और शिकार हो जाने के डर से असुरक्षित लगने लगती है।
लेकिन बाजार की उथल-पुथल के दौरान सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) रोकने की ये प्रवृत्ति दरअसल इस योजना की मूल समझ का अभाव दिखाती है। SIP की पूरी अवधारणा ही इस सोच पर टिकी है कि आप बाजार की चाल नहीं भांप सकते, इसलिए समय के साथ धीरे-धीरे निवेश करते हैं ताकि उतार-चढ़ाव का असर कम हो सके। गिरावट में एसआईपी रोकना आपको नुकसान से नहीं बचाता, बल्कि ये उस प्रक्रिया को ही त्याग देना है जो अस्थिरता को अवसर में बदलने के लिए बनाई गई थी।
SIP रोकने के पीछे की मनोवैज्ञानिक भावना समझ में आती है, लेकिन वो गलत दिशा में ले जाती है। कोई भी ये देखना पसंद नहीं करता कि उसका पोर्टफोलियो घट रहा है, भले ही थोड़े समय के लिए। अनिश्चितता के सामने इंसान का स्वभाव होता है कि कुछ न कुछ किया जाए और एसआईपी रोकना एक 'कंट्रोल' लेने जैसा महसूस होता है। लेकिन हकीकत में ये लंबे समय के लिए समझदारी भरी रणनीति को छोड़ कर तात्कालिक भावनात्मक राहत को चुनने जैसा होता है। जैसा कि मैंने एसआईपी पर पहले भी लिखा है कि इसका असली मूल्य कैलकुलेशन में नहीं, व्यवहार में छिपा होता है।
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मैंने लिखा था कि SIP इसलिए काम करती है क्योंकि ये आपकी आमदनी की प्रकृति से मेल खाती है और एक बार शुरू हो जाने पर इसे रोकने की संभावना कम होती है। विडंबना तब और बढ़ जाती है जब आप देखते हैं कि जो लोग मुश्किल समय में एसआईपी रोकते हैं और आमतौर पर सही समय पर दोबारा शुरू नहीं करते।
वे 'स्पष्टता' या 'बाजार के स्थिर होने' का इंतजार करते हैं, जो आमतौर पर तब होता है जब दाम पहले ही ऊपर जा चुके होते हैं और सस्ते दामों पर निवेश का अवसर निकल चुका होता है। अगली बार जब किसी मार्केट हेडलाइन से आपको अपनी एसआईपी पर शक होने लगे, तो याद रखिए- जब बाकी लोग रुक जाते हैं, तब भी लगातार निवेश करते रहना है। यही वो अनुशासन है जो लंबे समय के सफल निवेशकों को बाकियों से अलग करता है।
ये बातें याद रखें - बाजार की अस्थिरता कोई गड़बड़ी नहीं, फीचर है। गिरावट में एसआईपी रोकना रुपये की औसत लागत को खत्म करता है और भविष्य में महंगी एंट्री की जरूरत पैदा करता है। - मासिक किस्त की तरह सोचिए। SIP को भी मासिक जिम्मेदारी मानिए। - बदलाव करें, पर छोड़े नहीं। घबराहट हो तो रीबैलेंस करें या एसआईपी बढ़ाएं। लेकिन इस कंपाउं¨डग मशीन को बंद न करें।
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