मोहम्मद सिराज: जिद, जज्बा और जुनून... टीम इंडिया का सिकंदर जिसके आगे ढेर हो गया हर तूफान
मोहम्मद सिराज टीम इंडिया के एक ऐसे योद्धा हैं जो विपरीत परिस्थितियों में भी हार नहीं मानते। इंग्लैंड के खिलाफ सीरीज में उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से टीम को जीत दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी गेंदबाजी में वह धार है जो टीम को जीत की ओर ले जाती है। उनकी ऊर्जा और आत्मविश्वास ने दूसरे गेंदबाजों को भी प्रेरित किया।

अभिषेक उपाध्याय, स्पोर्ट्स डेस्क, नई दिल्ली। योद्धा कौन? जांबाज कौन? वही जो हवा के विपरीत तैरते हुए अपनी तलवार से विजय पताका फहरा दे।
वो गाना सुना है। रोते हुए आते हैं सब हंसता हुआ जो जाएगा। वो मुकद्दर का सिकंदर जानेमन कहलाएगा।
बात सिर्फ इतनी है कि स्थिति चाहे जैसी हो, सामने वाला विरोधी चाहे जितना बड़ा हो। आप अकेले ही क्यों न हो। योद्धा, जांबाज, सिकंदर वही जो हर स्थिति में लड़े। पीछे मुड़कर न देखे और बस लड़ता जाए।
टीम इंडिया का वो योद्धा वो सिकंदर है मोहम्मद सिराज। जो इंग्लैंड के खिलाफ सीरीज में टीम इंडिया की विजय पताका फहराते हुए भारत लौटेंगे।
सिराज की कहानी आसान नहीं है। वो इस सीरीज के हीरो बने अपनी मेहनत से। किस्मत से लड़ते हुए। लॉर्ड्स में जब रवींद्र जडेजा ने सिराज को हर गेंद को डिफेंस करने की जिम्मेदारी दी तो सिराज ने इसे बखूबी निभाया, लेकिन किस्मत से मात खा गए। द ओवल टेस्ट के चौथे दिन हैरी ब्रूक का कैच तो लपका लेकिन पैर बाउंड्री लाइन से छू गया। मियां भाई विलेन बन गए थे।
एक कहावत है। भगवान उनका साथ देता है जो खुद की मदद करते हैं। भगवान भी देख रहे थे। सिराज हर गेंद में अपनी जान झोंक रहे हैं। हर गेंद पर इंग्लैंड के बल्लेबाजों का विकेट उड़ाने के लिए तूफानी की रफ्तार से आते हैं और गेंद फेंकते हैं। जरूरत पड़ने पर बल्लेबाज को कमजोर करने के लिए उसकी आंख में आंख डालकर देखते हैं। ऐसे खिलाड़ी को हीरो बनाना वो कैसे भूल सकता था।
इन सभी से ज्यादा सिराज के अंदर की आग ने उन्हें आगे लाकर खड़ा किया। इस गेंदबाज की एनर्जी बताती है कि वह किस शिद्दत से जीत के लिए लड़ाई लड़ते हैं। किस शिद्दत से विकेट लेकर अपनी टीम को जीत दिलाने के लिए उतारू रहते हैं। जब टीम इंडिया हार की तरफ बढ़ रही थी तब भी सिराज के अंदर विश्वास था कि वह भारत को जीत के मुहाने पर खड़ा कर सकते हैं। पांचवें दिन वह उतरे और 1000 प्रतिशत एनर्जी के साथ जुट गए। काम था सही एरिया में गेंद डाल विकेट निकालना। उनकी गेंदबाजी में वो धार दिखी। गस एटकिंसन के डंडे उखाड़ सिराज ने भारत की जीत पक्की की वैसे ही दुनिया को समझ में आ गया कि ये सिराज ही कर सकते थे।
उनकी एनर्जी ने दूसरे गेंदबाजों में आग भरी और प्रसिद्ध कृष्णा पहले से कहीं बेहतर लय में नजर आए। सिराज की आंखों में वो आग दिखती है जो उनके अंदर है। उन्हें किसी बात की परवाह नहीं। न शरीर की, न चोट की और न ही वर्कलोड मैनजमेंट की।
सिराज ने पांच मैचों की इस सीरीज में 1113 गेंदें फेंकी। यानी कुल 185.3 ओवर जो बताता है कि वह किस इंटेनसिटी के साथ गेंदबाजी कर रहे थे और वर्कलोड की चिंता किए बिना टीम इंडिया को जीत दिलाने में जुट गए थे।
सिराज की गेंदों की धार में क्या खासियत है, क्या कमी है इस बात पर कई बार चर्चा हो सकती है। कमी होगी इसमें कोई शक नहीं है, लेकिन सिराज वो लड़ाका है जो अपनी मेहनत, अपने भरोसे और लड़ने के जज्बे के दम पर सारी कमियों को ढक देता है। नहीं इसका मतलब ये बिल्कुल नहीं है कि वह अपनी कमियों पर काम नहीं करते।
सिराज को अगर उनके शुरुआती दौर से देखा जाए तो वह ज्यादा प्रभावी नहीं दिखते थे। आईपील में जब वह सनराइजर्स हैदराबाद के लिए खेलते थे तब ज्यादा प्रभावी नजर नहीं आते थे। कुछ गेंदबाज होते हैं जो शुरू से ही बता देते हैं कि वह लंबी रेस के घोड़े हैं, जसप्रीत बुमराह। सिराज वैसे नहीं थे। लेकिन उन्होंने अपनी गेंदबाजी पर मेहनत की। इतनी मेहनत की जिसने उन्हें आज भारत के मुख्य गेंदबाजों में लाकर खड़ा क दिया।
अपनी सीम पोजिशन से लेकर टप्पे और स्विंग तक पर उन्होंने काम किया। बल्लेबाज को पढ़ने से लेकर उसके लिए जाल बिछाने और फिर उसे लागू करने के मामले में सिराज दिन ब दिन बेहतर होते जा रहे हैं। थकान उनके चेहरे पर दिखती नहीं है।
एग्रेशन के मामले में भी सिराज पीछे नहीं हटते। देखा जाए तो ये सिराज की ताकत रही है। जिस तरह विराट कोहली की ताकत उनका एग्रेशन था ठीक वैसे ही सिराज की ताकत भी यही है। ऑस्ट्रेलिया दौरे पर ट्रेविस हेड को आंख दिखाना आसान नहीं था। ये आंखें उन्होंने सिर्फ हेड को नहीं बल्कि पूरे ऑस्ट्रेलिया को दिखाई थीं। इसके बाद तो ऑस्ट्रेलियाई टीम, फैंस और मीडिया ने सिराज को हूट करने का मौका नहीं छोड़ा। सिराज में ऑस्ट्रेलिया में पंगा लेने की हिम्मत थी और उन्होंने लिया।
सिराज रुके नहीं। वह अपना काम करते गए और अपनी गेंदबाजी से जवाब देते रहे। ऑस्ट्रेलिया में वह ज्यादा सफल नहीं रहे, लेकिन उनके प्रयास, उनकी आग, जुनून में कोई कमी नहीं दिखी।
इंग्लैंड में तो सिराज मानो ठानकर आए थे कि ये दौरा उनका ही होगा और उनका ही रहा। ये सीरीज सिराज के लिए जानी जाएगी क्योंकि इस सीरीज में सिराज बुमराह की छांव से बाहर निकले हैं। न मोहम्मद शमी थे और न बुमराह। बुमराह ने तीन मैच खेले, लेकिन वो काम नहीं कर पाए जिसकी उम्मीद थी।
सिराज ने बुमराह की गैरमौजूदगी में और शानदार प्रदर्शन किया है जो बताता है कि इस गेंदबाज पर जब जिम्मेदारी आती है तो वह और निखरकर आते हैं।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।