Delhi Bomb Blast: आखिर कौन था 71 लोगों की बेरहम मौत का जिम्मेदार? आज 20 साल बाद भी इंसाफ का इंतजार
29 अक्टूबर 2005 को दिल्ली में हुए बम धमाकों की 20वीं बरसी है, जिसमें 71 लोगों की जान चली गई थी। पीड़ितों को मुआवजा मिला, पर दोषियों को सजा न मिलने से वे निराश हैं। इंडियन मुजाहिद्दीन ने धमाकों की जिम्मेदारी ली थी, लेकिन कमजोर जांच के चलते आरोपी बरी हो गए। एक बस चालक ने साहस दिखाते हुए कई लोगों की जान बचाई थी।

सरोजिनी नगर बम ब्लास्ट के आरोपी जांच में खाली की वजह से हो गए थे बरी।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। 29 अक्टूबर को 2005 में दिल्ली में हुए आतंकी हमलों की 20वीं बरसी है। तीन जगहों पर हुए सीरियल धमाके में 71 लोगों की मौत हो गई थी और 157 लोग घायल हो गए थे। पहला धमाका शाम 5:45 बजे पहाड़गंज, दूसरा 5:50 बजे सरोजनी नगर मार्केट और तीसरा 6:50 बजे कालकाजी में हुआ था।
बम धमाके में मरने वाले लोगों के स्वजन को चार-चार लाख और घायलों को एक-एक लाख रुपये मुआवजा मिल तो गया लेकिन दिल दहलाने वाली घटना को अंजाम देने वाले आतंकियों को फांसी की सजा न मिल पाने पर उनके दिल में कसक बरकरार है। हमले की कड़ी न जोड़ पाने के कारण लचर जांच का ही नतीजा कहा जाए कि 12 साल तक चली सुनवाई के बाद फरवरी 2017 में पटियाला हाउस कोर्ट ने दो आरोपी मोहम्मद रफीक शाह और हुसैन को बरी कर दिया।
आरोपी तारिक अहमद डार को सजा तो सुनाई गई, लेकिन बम धमाकों में शामिल होने के लिए नहीं बल्कि लश्कर-ए-तैयबा से होने के कारण उसे 10 साल की सजा मिली। तीनों 12 साल से जेल में बंद थे। लिहाजा तारिक अहमद डार को भी जेल से रिहा कर दिया गया। जिस दिन कोर्ट ने यह फैसला सुनाया कोर्ट में मौजूद धमाकों में मारे गए लोगों के व रिश्तेदार सन्न रह गए थे।
अदालत का फैसला सुनकर सन्न रह गए थे लोग
खचाखच भरी अदालत में लोग आपस में एक दूसरे से पूछने लगे कि फिर धमाका किसने किया। कुछ लोग फैसला सुनकर रो थे तो कुछ इतने सदमे में आ गए थे कि मानों पैरों तले जमीन खिसक गई। किसी का मन इस बात को लेकर दुखी हुआ कि उन्हें इंसाफ नहीं मिल पाया। अदालत से बाहर आने के बाद लोगों ने हाईकोर्ट में अपील करने की बात कही, लेकिन इसके लिए स्वजन एकजुट नहीं हो पाए।
कुछ के स्वजन की भी मौत हो गई तो कुछ का दिल्ली से बाहर तबादला हो गया। कई तरह की समस्या आने के कारण स्वजन ने आगे की लड़ाई लड़ने का मन त्याग दिया। स्वजन की तरफ से दबाव न आने पर पुलिस ने भी राहत की सांस ली और हाईकोर्ट में अपील नहीं की। कहा जा रहा है कि दिल्ली का यह पहला हाई प्रोफाइल मामला है जिसमें दिल्ली पुलिस ने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील नहीं की।
इंडियन मुजाहिद्दीन ने दिया था बम धामकों को अंजाम
सूत्रों की मानें तो इस धमाके को इंडियन मुजाहिद्दीन ने अंजाम दिया था। सिमी पर प्रतिबंध के बाद 2004 में ही उसके सभी सक्रिय सदस्यों ने इंडियन मुजाहिद्दीन बना लिया था, लेकिन पुलिस व केंद्रीय एजेंसियां इस बात को लेकर अनभिज्ञ रहे। सिमी पर प्रतिबंध लगाने के बाद इसके सदस्यों ने केरल में जाकर ठिकाना बनाया और वहां हथियार चलाने से लेकर बम बनाने आदि के प्रशिक्षण लेकर देश भर में तबाही मचाने की साजिश रची। इसके लिए सबसे पहले इंडियन मुजाहिद्दीन ने कोलकाता में श्रीलेदर के मालिक का अपहरण किया।
मोटी रकम वसूलने के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया। उस पैसे से हथियार खरीदकर कोलकाता में अमेरिकन सेंटर के बाहर हमला किया और उसके बाद आगरा में एक व्यवसायी को अगवा किया। उक्त घटना के बाद आतंकी आसिफ रजा खान को पुलिस ने गिरफ्तार किया। 2005 में दिल्ली सीरियल ब्लास्ट कोे आजमगढ़ के रहने वाले आसिफ रजा खान, आमीर रजा व साजिद शेख ने कराया था।
इसके बाद इन्होंने 2006 में मुंबई की लोकल ट्रेनों में 11 मिनट के अंदर सात अलग-अलग ब्लास्ट कराए। उस धमाके में 209 लोग मारे गए थे और 700 से ज्यादा घायल हो गए थे। पुलिस अधिकारी का कहना है कि इंडियन मुजाहिद्दीन कई साल तक जयपुर, हैदराबाद, पूणे, अयोध्या, आदि देशभर में एक के बाद कई आतंकी हमले कराता रहा, लेकिन जिम्मेदारी न लेने के कारण न तो केंद्रीय एजेंसियां और न ही राज्यों की पुलिस को कोई जानकारी मिल पाई कि हमले के पीछे किसका हाथ है।
2008 में दिल्ली में फिर से सीरियल ब्लास्ट कराने के बाद इंडियन मुजाहिद्दीन ने जब आगरा से मीडिया को भेल भेज कर पहली बार जिम्मेदारी ली तब सुराग मिलने पर तमाम एजेंसियां लगातार जांच में जुट गईं और उसके बाद आइएम के कारनामे का पता लगता गया। कुछ ही साल में आइएम के 40 आतंकी दबोच संगठन की कमर तोड़ दी गई।
2005 में सरोजनी नगर समेत तीन जगहों पर धमाके में पुलिस कोर्ट में साक्ष्य इसलिए नहीं पेश नहीं कि पाई कि उन्हें इंडियन मुजाहिद्दीन के बारे में कई साल बाद जानकारी मिली थी। मामले में पकड़े गए तीन आरोपितों के खिलाफ पुलिस जब साक्ष्य नहीं जुटा पाई तब दोबारा से केस की जांच करने में फजीहत होती। इसलिए पुलिस ने हाई कोर्ट में अपील नहीं की।
29 अक्टूबर की शाम डीटीसी की आउटर मुद्रिका बस लेकर मैं कालकाजी की तरफ जा रहा था। धनतेरस का दिन होने के कारण बस में 60 से अधिक लोग सवार थे। कालकाजी बस डिपो से पहले यात्रियों की नजर बस में रखे एक काले रंग के लावारिस बैग पर पड़ी। जिससे यात्रियों ने शोर मचाना शुरू कर दिया। मैंने तुरंत किनारे लेजाकर बस रोक दी और यात्रियों को उतारने के बाद बैग को जंगल में एक पेड़ पर रख दिया। बैग रखकर वापस लौटते ही बम ब्लास्ट हो गया था, जिससे मैं बुरी तरह जख्मी हो गया। मुझे एम्स में भर्ती कराया गया। बेहतर इलाज मिलने के कारण मेरी जान तो बच गई, लेकिन आंखों की रोशनी चली गई और कान का पर्दा फट गया। दोनों हाथों की कई उंगलियां भी कट गई। मुझे इस बात की खुशी है कि मैंने समय रहते 60 से अधिक लोगों की जान बचा ली।
कुलदीप सिंह, डीटीसी बस चालक
जिस समय घटना घटी मैं सरोजनी नगर मिनी मार्केट ट्रेडर्स एसोसिएशन का अध्यक्ष था। दीपावली को लेकर पुलिस सरोजिनी नगर मार्केट के अंदर हर साल वाहनों के एंट्री पर रोक लगाती है। धनतेरस का दिन होने के कारण लोगों ने सड़कों पर सामान बेचना शुरू कर दिया था। मार्केट में लाखों की संख्या में भीड़ इकट्ठा हो गई थी। जिसे देखते हुए श्याम जूस कार्नर के मालिक लाल चंद सलूजा ने मुझे यह कहते हुए फोन कर अपने पास बुला लिया कि भीड़ कम करने के लिए कुछ उपाय करने की जरूरत है। नहीं तो घटना घट सकती है। लाल चंद सलूजा मार्केट एसोसिएशन में सचिव थे। उनके बुलावे पर मैं उनकी जूस की दुकान पर आ गया। कुछ देर बात करने के बाद जैसे ही मैं पास स्थित पुलिस चौकी में जा रहा था तभी जूस कार्नर के पास जोरदार धमाका हो गया। धमाके में एक गैस व स्टोव भी फट गया ,जिससे आसपास भीषण आग भी फैल गई। हादसे में 50 लोगों की मौत हुई, 127 घायल हो गए थे और 12 लोग मिसिंग थे। जिनमें नौ लोगों के बारे में डीएनए जांच से पता चला। घटना के बाद न्याय के लिए मैंने साउथ एशियन फोरम पीपल अगेंस्ट टेरर नाम से एनजीओ बनाया। चालक कुलदीप के अपंग हो जाने पर उसे डीटीसी में नौकरी पर रखवाया गया। मारे गए लोगों के स्वजन को सरकारी नौकरी दिलाने के लिए सरकार से अब भी लड़ाई जारी है।
अशोक रंधावा, अध्यक्ष, सरोजनी नगर मिनी मार्केट ट्रेडर्स एसोसिएशन
2005 में दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल (आतंकवाद निरोधक दस्ता) अब की तरह मजबूत नहीं था। समय के साथ सेल को तकनीकी तौर पर मजबूत बनाने के अलावा अत्याधुनिक हथियार मुहैया कराया गया। क्षमता बहुत अधिक बढ़ाई गई। वर्तमान में सेल के पास ट्रैकिंग जैसी आधुनिक मशीनें हैं व डोंगल के एक्सपर्ट हैं उतने किसी भी राज्य की पुलिस व अर्द्धसैनिक बलों व केंद्रीय एजेंसियों के पास भी नहीं है। यही वजह है कि कई राज्यों की पुलिस दिल्ली पुलिस से मदद लेती है। 2008 के बाद सेल व केंद्रीय एजेंसियों के बीच काेऑर्डिनेशन बेहतर बना। जिससे बाद देशभर में आतंकी पकड़ जाने लगे। चौकसी का नतीजा है कि 2011 के बाद से दिल्ली में कोई आतंकी हमला नहीं हो पाया है। हर साल केंद्रीय एजेंसियों की मदद से सेल विभिन्न संगठनों के आतंकियाें कोे देश में ब्लास्ट करने की प्लानिंग के स्तर पर ही दबोच लेती है। बड़ी संख्या में जासूस पकड़े जा रहे हैं।
- संजय त्यागी, दिल्ली पुलिस प्रवक्ता

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