भारत का हर सातवां व्यक्ति मानसिक विकार का शिकार, 92 प्रतिशत लोगों को नहीं मिल पाता इलाज
नई दिल्ली में 'ग्लोबल समिट ऑन एआइ फॉर मेंटल हेल्थ' में विशेषज्ञों ने बताया कि भारत में हर सातवां व्यक्ति मानसिक विकार से जूझ रहा है, जिनमें से अधिकांश को उपचार नहीं मिल पाता। कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) शुरुआती पहचान और व्यक्तिगत सहायता में मददगार हो सकती है। सम्मेलन में एआइ आधारित समाधानों पर नीति बनाने पर विचार किया गया।

भारत का हर सातवां व्यक्ति किसी न किसी मानसिक विकार से जूझ रहा है।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। भारत का हर सातवां व्यक्ति किसी न किसी मानसिक विकार से जूझ रहा है, इसमें 70 से 92 प्रतिशत लोगों को उपचार नहीं मिल पाता। ऐसे में एआइ आधारित शुरुआती पहचान, व्यक्तिगत सहारा और व्यापक स्तर पर पहुंच एक महत्वपूर्ण समाधान बनकर उभर रहे हैं।
यह जानकारी शनिवार को मानसिक स्वास्थ्य में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआइ) के उपयोग को लेकर आयोजित ‘ग्लोबल समिट आन एआइ फार मेंटल हेल्थ’ में विशेषज्ञों ने दी। भारत में मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में एआइ के भविष्य, मानव केंद्रित नवाचार का आधार तैयार करने तथा राष्ट्रीय बहस को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से किया गया। सम्मेलन में भाग ले रहे नीति निर्माताओं, तकनीक विशेषज्ञों, मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों और शोधकर्ताओं ने एक मंच पर इसे लेकर चर्चा की।
विशेषज्ञों ने एआई आधारित समाधान पर एक नीति बनाने को लेकर मंथन किया। शुभारंभ मौके पर आयोजक सचिव बलविंदर कुमार आइएएस (सेवानिवृत्त) ने कहा कि तकनीक को संवेदना से जोड़ना ही भविष्य की असली दिशा है। कहाकि कार्यक्रम का एजेंडा राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन, आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन और राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम से सीधे जुड़ता है। सम्मेलन में ‘एथिकल गवर्नेंस इन एआइ’ पहल की घोषणा की गई, कहा गया कि इसे आइसी सेंटर फार गवर्नेंस के अंतर्गत शुरू किया जाएगा।

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