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    कैसे कराई जाती है कृत्रिम बारिश, बादलों में कैसे छिड़का जाता है केमिकल? जानिए सबकुछ

    Updated: Tue, 28 Oct 2025 09:42 AM (IST)

    दिल्ली में प्रदूषण के बढ़ते स्तर को देखते हुए सरकार कृत्रिम बारिश कराने जा रही है। क्लाउड सीडिंग के द्वारा बादलों की भौतिक अवस्था में बदलाव किया जाता है। इस प्रक्रिया में रसायनों का उपयोग करके बादलों का घनत्व बढ़ाया जाता है, फिर सिल्वर आयोडाइड का छिड़काव किया जाता है।

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    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। Cloud Seeding दिल्ली में प्रदूषण के बढ़ते स्तर को देखते हुए मौजूदा सरकार ने कृत्रिम बारिश कराने का निर्णय लिया है। कृत्रिम बारिश का पहला परीक्षण भी आज संभव माना जा रहा है। क्योंकि मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने इसको लेकर ताजा जानकारी दी है।

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    उन्होंने बताया कि जैसे ही कानपुर में मौसम साफ होगा, हमारा एयरक्राफ्ट आज वहां से उड़ान भरेगा। अगर यह वहां से उड़ान भरने में सफल होता है, तो आज दिल्ली में क्लाउड सीडिंग की जाएगी। उस क्लाउड सीडिंग के जरिए दिल्ली में बारिश होगी।

    आखिर कैसे कराई जाती कृत्रिम वर्षा?

    कृत्रिम वर्षा या आर्टिफिशियल रेन से मतलब एक विशेष प्रक्रिया द्वारा बादलों की भौतिक अवस्था में कृत्रिम तरीके से बदलाव लाना होता है, जो वातावरण को बारिश के अनुकूल बनाता है। बादलों के बदलाव की यह प्रक्रिया क्लाउड सीडिंग कहलाती है।

    कृत्रिम बारिश की प्रक्रिया तीन चरणों में होती है पूरी

    पहले चरण में रसायनों का इस्तेमाल करके वांछित इलाके के ऊपर वायु के द्रव्यमान को ऊपर की तरफ भेजा जाता है, जिससे वे बादल बना सके। इस प्रक्रिया में कैल्शियम क्लोराइड, कैल्शियम कार्बाइड, कैल्शियम ऑक्साइड, नमक और यूरिया के यौगिक और यूरिया और अमोनियम नाइट्रेट के यौगिक का प्रयोग किया जाता है। यौगिक हवा से जलवाष्प को सोख लेते हैं और संघनन की प्रक्रिया शुरू कर देते हैं।

    वहीं, दूसरे चरण में बादलों के द्रव्यमान को नमक, यूरिया, अमोनियम नाइट्रेट, सूखी बर्फ और कैल्शियम क्लोराइड का प्रयोग करके बढ़ाया जाता है।

     
     
     
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    बादलों में कैसे छिड़का जाता है केमिकल?

    तीसरे चरण की प्रक्रिया तब की जाती है, जब या तो बादल पहले से बने हुए हों या मनुष्य द्वारा बनाए गए हों। इस चरण में सिल्वर आयोडाइड और सूखी बर्फ जैसे ठंडा करने वाले रसायनों का बादलों में छिड़काव किया जाता है। इससे बादलों का घनत्व बढ़ जाता है और सम्पूर्ण बादल बर्फीले स्वरुप में बदल जाते हैं और वे इतने भारी हो जाते हैं कि और कुछ देर तक आसमान में लटके नही रह सकते हैं तो बारिश के रूप में बरसने लगते हैं। सिल्वर आयोडाइड को निर्धारित बादलों में प्रत्यारोपित करने के लिए हवाई जहाज, विस्फोटक रौकेट्स या गुब्बारे का प्रयोग किया जाता है। कृत्रिम वर्षा कराने के लिए इसी प्रक्रिया का सबसे अधिक प्रयोग किया जाता है।

    दरअसल, कृत्रिम बारिश कराने के पीछे का उद्देश्य प्रदूषण को कम करना या फसल की अच्छी पैदावार कराना होता था। कई बार ऐसा होता है कि फसलों को पानी की जरूरत होती है, लेकिन बारिश नहीं होती। ऐसे में बारिश की समस्या से निपटने के लिए वैज्ञानिकों ने इस पर विचार किया था। कृत्रिम वर्षा करने के लिए कृत्रिम बादल बनाए जाते हैं, जिन पर सिल्वर आयोडाइड और सूखी बर्फ जैसे ठंडा करने वाले रसायनों का प्रयोग किया जाता है जिससे कृत्रिम वर्षा होती है।

    क्या होती है क्लाउड सीडिंग?

    क्लाउड सीडिंग एक वैज्ञानिक तकनीक है, जिसमें बादलों में सिल्वर आयोडाइड, नमक या अन्य रसायनिक कणों का छिड़काव किया जाता है। इससे बादलों में मौजूद नमी बूंदों या बर्फ के कणों के रूप में एकत्रित हो जाती है और जब ये कण भारी हो जाते हैं, तो बारिश के रूप में जमीन पर गिरते हैं। इस प्रक्रिया से वायु प्रदूषण के स्तर में अस्थायी रूप से कमी लाई जा सकती है, क्योंकि बारिश के साथ खतरनाक प्रदूषक जमीन पर बैठ जाते हैं।

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    क्या है सामान्य वर्षा

    साधारणतः वर्षा तब होती है, जब सूरज की गर्मी से हवा गर्म होकर हल्की हो जाती है और ऊपर की ओर उठती है। ऊपर उठी हुई हवा का दबाव कम हो जाता है और आसमान में एक ऊंचाई पर पहुंचने के बाद वह ठंडी हो जाती है। जब इस हवा में और सघनता बढ़ जाती है तो वर्षा की बूंदे इतनी बड़ी हो जाती है कि वे अब और देर तक हवा में लटकी नही रह सकती है। वे बारिश के रूप में नीचे गिरने लगती हैं। इसे ही सामान्य वर्षा कहते हैं।