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    Delhi Pollution: दिल्ली में सीओपीडी की स्थिति गंभीर, राष्ट्रीय औसत से हैं ज्यादा मामले; क्या हैं बीमारी के शुरुआती लक्षण?

    Updated: Wed, 19 Nov 2025 09:15 AM (IST)

    दिल्ली में सीओपीडी की स्थिति गंभीर है, और यहां राष्ट्रीय औसत से ज्यादा मामले हैं। प्रदूषण के कारण यह बीमारी और बढ़ रही है। इसके शुरुआती लक्षणों में लगातार खांसी और सांस लेने में तकलीफ शामिल हैं। समय पर पहचान और उचित इलाज से लक्षणों को कम किया जा सकता है और जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाया जा सकता है।

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    जंतर मंतर पर मास्क पहने मां और पुत्र। जागरण

    अनूप कुमार सिंह, नई दिल्ली। बढ़ते वायु प्रदूषण और देरी से पहचान ने राष्ट्रीय राजधानी क्रानिक आब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) को बढ़ा दिया है। स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सीओपीडी बीमारी के मामले में दिल्ली का औसत (10.1), राष्ट्रीय औसत (7.4) से ज्यादा है। श्वसन से जुड़ी इस बीमारी को दिल्ली में सबसे तेजी से बढ़ती बीमारियों में गिना जा रहा है।

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    पहले इसे सिर्फ धूमपान से जुड़ा रोग माना जाता था, मगर बदलते पर्यावरण, घरेलू ईंधन, शहरी प्रदूषण और जीवनशैली में आए बदलाव और देरी से पहचान ने अब इसका दायरा बेहद बड़ा कर दिया है। यह बच्चों से लेकर वृद्ध हर उम्र के लोगों को प्रभावित कर रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में लकड़ी, फसल अवशेष और गोबर जैसे बायोमास ईंधन से उठने वाला लगातार धुआं फेफड़ों पर गहरा असर डालता है, जबकि शहरों में वाहनों का धुआं, उद्योगों के उत्सर्जन, निर्माण कार्य और कूड़ा जलाने से हवा में मौजूद महीन कण आम स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रहे हैं।

    हर वर्ष इस बीमारी से कितने लोग मरते हैं?

     

    ग्लोबल बर्डन आफ डिजीज (जीबीडी) अध्ययन के अनुसार भारत में हर वर्ष होने वाली करीब एक करोड़ कुल मृत्यु में सात प्रतिशत सीओपीडी के कारण होती हैं। बड़ी बात यह कि रोग की रोकथाम के महत्वपूर्ण स्पाइरोमेट्री, जो सीओपीडी की मुख्य जांच है, अभी भी अधिकांश जगहों पर नियमित जांच का हिस्सा नहीं है। इसी वजह से कई मरीजों में बीमारी तब पकड़ में आती है, जब फेफड़ों का लाइलाज नुकसान हो चुका होता है।

    अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के प्रो. डा. अनंत मोहन बताते हैं कि दिल्ली की स्थिति इससे भी अधिक चिंताजनक है। दक्षिण दिल्ली के मेहरौली क्षेत्र में किए गए स्पाइरोमेट्री-आधारित अध्ययन में यह 10.1 प्रतिशतपाई गई, जो राष्ट्रीय औसत से काफी अधिक है।

    सीनियर कंसल्टेंट रेस्पिरेटरी मेडिसिन एवं इंटरवेंशनल पल्मोनोलाजिस्ट डा. हरीश भाटिया बताते हैं कि बड़ी संख्या में युवा भी हल्की गतिविधि में सांस फूलने की शिकायत लेकर पहुंच रहे हैं। यह सभी कहीं न कहीं काम कर रहे हैं, बताया कि सर्दियों और स्माग के समय ओपीडी में ऐसे मामलों की संख्या 25–30 प्रतिशत तक बढ़ जाती हैं।

    क्या हैं शुरुआती लक्षण?

    आरंभिक लक्षण जैसे हल्की खांसी, सांस फूलना और थकान को अक्सर लोग अनदेखा कर देते हैं। यही देरी इस बीमारी को जानलेवा बना रही है। देश के आंकड़ों पर नजर डालें तो भारत में 30 वर्ष से ऊपर के लोगों में सीओपीडी का औसत 7.4 प्रतिशत से अधिक है।

    देश में करीबन 5.5 करोड़ लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं, अकेले दिल्ली में पांच लाख से अधिक इससे पीड़ित हैं। बताते हैं कि स्वच्छ ईंधन, प्रदूषण नियंत्रण, आरंभिक स्पाइरोमेट्री जांच, टीकाकरण, धूम्रपान से दूरी और जनजागरूकता से ही बढ़ते सीओपीडी को कम कर सकते हैं।