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    दिल्ली ने बीते 9 महीने में 11 दिन झेली चरम मौसमी घटनाएं, 15 लोगों की हो गई मौत

    Updated: Fri, 21 Nov 2025 09:05 PM (IST)

    2025 में दिल्ली ने जनवरी से सितंबर तक 11 दिन चरम मौसमी घटनाओं का सामना किया, जिसमें 15 मौतें हुईं। सीएसई की रिपोर्ट के अनुसार, भारी बारिश और बाढ़ से नौ मौतें हुईं। मानसून के दौरान तापमान में उतार-चढ़ाव देखा गया। सुनीता नारायण ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए उत्सर्जन कटौती पर जोर दिया।

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    जनवरी से सितंबर तक नौ महीने के दौरान दिल्ली ने 11 दिन चरम मौसमी घटनाएं झेली हैं। 

    संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। इस साल (2025 में) जनवरी से सितंबर तक नौ महीने के दौरान दिल्ली ने 11 दिन चरम मौसमी घटनाएं (अत्यधिक सर्दी, गर्मी, लू व वर्षा) झेली हैं। हालांकि पिछले सालों के मुकाबले यह आंकड़ा कम है। वर्ष 2022 में 41, 2023 में 46 और 2024 में 24 दिन ऐसी घटनाएं दर्ज की गई थीं। इसी तरह से इसी अवधि के दौरान इस साल 15 मौतें दर्ज की गई हैं। 2022 में इस अवधि में छह, 2023 में 18 और 2024 में 16 मौतें रिकॉर्ड की गई थीं।

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    यह जानकारी सेंटर फार साइंस एंड एन्वायरमेंट (सीएसई) के द्वारा बुधवार को जारी की गई क्लाइमेट इंडिया रिपोर्ट 2025 से सामने आई है। आपदा-वार वितरण से पता चलता है कि भारी वर्षा, बाढ़ और संबंधित घटनाएं केवल तीन दिन (पहले 9 महीनों में) हुईं, फिर भी इनसे नौ मौतें हुईं। बिजली व तेज आंधी के साथ वर्षा, जो पांच दिन तक देखी गई, छह अतिरिक्त मौतों के लिए जिम्मेदार बनी।

    दिलचस्प बात यह है कि दिल्ली में चार दिन लू वाले किए गए, लेकिन इस दौरान लू से किसी भी मौत की सूचना नहीं मिली। मानसून (जून-सितंबर) के दौरान 122 दिनों में से, 46 दिनों में अधिकतम तापमान सामान्य से अधिक रहा, जबकि 21 दिनों में न्यूनतम तापमान सामान्य से अधिक रहा, जो इस मौसम में तापमान में सामान्य उतार-चढ़ाव के बावजूद लगातार गर्म स्थिति को दर्शाता है।

    अधिकतम तापमान के लिए सामान्य से चार डिग्री अधिक से आठ डिग्री कम और न्यूनतम तापमान के लिए सामान्य से छह डिग्री अधिक से आठ डिग्री कम तक की बड़ी विसंगति सीमा, अनियमित तापमान के उतार-चढ़ाव की ओर इशारा करती है।

    यह समय आपदाओं की संख्या को गिनने का नहीं, बल्कि उस पैमाने को समझने का है, जिस पर जलवायु परिवर्तन हो रहा है। वैश्विक स्तर पर उत्सर्जन कटौती की तत्काल जरूरत है क्योंकि आपदाओं के लिए कोई भी अनुकूलन संभव नहीं होगा। मानसून के दौरान तापमान को बढ़ना भी चिंताजनक है, जो अनियमित व चरम मौसमी घटनाओं को ट्रिगर कर सकता है। - सुनीता नारायण, महानिदेशक, सीएसई