दिल्ली HC का अहम फैसला: हिंदू रीति-रिवाजों से होने वाले बंजारा विवाह अब हिंदू विवाह अधिनियम के दायरे में
दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि हिंदू रीति-रिवाजों से होने वाले बंजारा समुदाय के विवाह अब हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत आएंगे। यह फैसला बंजारा समुदाय के अधिकारों और कानूनी सुरक्षा को सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे उन्हें विवाह से जुड़े कानूनी अधिकार मिलेंगे।
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प्रतीकात्मक तस्वीर।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट ने माना है कि एक अनुसूचित जनजाति में आने वाले बंजारा समुदाय काफी हद तक 'हिंदूकृत' हो गया है और हिंदू रीति-रिवाजों से किए गए बंजारा विवाह हिंदू विवाह अधिनियम (एचएमए) के दायरे में आते हैं।
न्यायमूर्ति अनिल क्षेत्रपाल व न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर की पीठ ने कहा कि पवित्र अग्नि का आह्वान, मंगलसूत्र और बिछिया पहनना स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि बंजारा विवाह में हिंदू संस्कार के सभी लक्षण मौजूद हैं। इसलिए दोनों पक्षों के हिंदू नहीं होने के अपीलकर्ता का तर्क उचित नहीं है।
अदालत ने उक्त टिप्पणी करते हुए पारिवारिक अदालत के निर्णय को चुनौती देने वाली पति की याचिका को खारिज करते हुए की। पति ने आपत्ति की थी कि एचएमए के तहत तलाक की याचिका विचारणीय नहीं है क्योंकि दंपति एक अनुसूचित जनजाति से संबंधित हैं। साथ ही, पारिवारिक अदालत के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें कहा गया था कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत एक बंजारा (लंबाडा) महिला द्वारा दायर तलाक की याचिका विचारणीय है।
पीठ ने कहा कि समुदाय के विवाह समारोहों में हिंदू रीति-रिवाजों के तत्व समाहित हो गए हैं और यह स्पष्ट है कि वर्तमान व्यवस्था बंजारा और हिंदू प्रणालियों का मिश्रण है। मामले पर विचार करने के बाद पीठ ने कहा कि एमएचए की धारा 7 वैध विवाह के लिए किसी विशेष प्रकार के समारोह को अनिवार्य नहीं मानती, बल्कि हिंदू वैवाहिक रीति-रिवाजों की विविधता को कानूनी मान्यता प्रदान करती है।

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