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    दिल्ली HC का बड़ा फैसला: अवैध धन से निवेश कर शेयर मूल्य में उछाल लाना मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल

    Updated: Tue, 04 Nov 2025 11:15 PM (IST)

    दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि अवैध धन से निवेश करके शेयर मूल्यों में उछाल लाना मनी लॉन्ड्रिंग है। अदालत ने स्पष्ट किया कि अवैध धन से शेयरों में निवेश करना, जिससे कीमतें बढ़ें, मनी लॉन्ड्रिंग माना जाएगा। यह फैसला धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत अपराधों की व्याख्या को स्पष्ट करता है और वित्तीय अनियमितताओं पर लगाम लगाने में मदद करेगा।

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    प्रतीकात्मक तस्वीर।

    विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट ने माना है कि अवैध गतिविधि के आधार पर शेयर मूल्य में वृद्धि, मनी लांड्रिंग प्रिवेंशन एक्ट-2002 के तहत अपराध की आय के बराबर है। प्रवर्तन निदेशालय की अपील याचिका को स्वीकार करते हुए अदालत ने कहा कि मनी लांड्रिंग के अपराध में अपराध की आय से जुड़ी कोई भी प्रक्रिया या गतिविधि शामिल है। अदालत ने कहा कि इसलिए इसे प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा कुर्क किया जा सकता है।

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    122 करोड़ रुपये से अधिक मूल्य की संपत्ति कुर्क

    न्यायमूर्ति अनिल क्षेत्रपाल व न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर की पीठ ने यह टिप्पणी जनवरी 2023 के एकल न्यायाधीश के फैसले को रद करते हुए कीं। इसमें ईडी द्वारा प्रकाश इंडस्ट्रीज लिमिटेड (पीआईएल) के खिलाफ जारी अनंतिम कुर्की आदेश (पीएओ) को रद कर दिया गया था। इसके तहत ईडी ने प्रकाश इंडस्ट्रीज लिमिटेड (पीआईएल) और उसकी समूह कंपनी प्रकाश थर्मल पावर लिमिटेड (पीटीपीएल) की 122 करोड़ रुपये से अधिक मूल्य की संपत्ति कुर्क की थी।

    कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग

    पीठ ने एक उदाहरण के तौर पर स्पष्ट किया कि यदि कोई लोक सेवक रिश्वत लेता है और उस धन को ड्रग्स के व्यापार, अचल संपत्ति, शेयरों या किसी अन्य माध्यम में निवेश करता है, तो अवैधता का दाग बना रहेगा। पीठ ने कहा कि पूरी धनराशि अपराध की आय के रूप में कुर्क की जा सकेगी, चाहे वह किसी भी माध्यम से भेजी गई हो या बाद में किसी भी रूप में हो।

    पीठ ने निर्णय सुनाया कि इसी तरह, यदि रिश्वत के रूप में प्राप्त राशि शेयर बाजार में निवेश की जाती है, जो बाद में बाजार की ताकतों या कार्पोरेट कार्रवाइयों के कारण वास्तविक निवेश के मूल्य से बढ़ जाती है या उससे अधिक हो जाती है, तो पूरी बढ़ी हुई राशि अपराध की आय मानी जाएगी। अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अनंतिम कुर्की को चुनौती देने की प्रथा की निंदा करते हुए कहा कि यह कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है।

    शेयर की कीमत में तेजी से वृद्धि हुई

    पीआईएल पर आरोप है कि 2007 में छत्तीसगढ़ के फतेहपुर कोयला ब्लाॅक के आवंटन के लिए आवेदन किया था, लेकिन अपने आवेदन में अपनी निवल संपत्ति को गलत तरीके से प्रस्तुत किया था। औपचारिक आवंटन से पहले, पीआईएल ने बाम्बे स्टाॅक एक्सचेंज (बीएसई) को सूचित किया कि उसके पास कोयला ब्लाक है और इससे उसके शेयर की कीमत में तेजी से वृद्धि हुई। पीआईएल और प्रमोटरों ने शेयर बेचे और इससे अपराध से आय अर्जित हुई। बाद में सीबीआइ और ईडी ने फर्म के खिलाफ जांच शुरू की।

    उक्त आदेश को रद किया

    हालांकि, एकल पीठ ने पीएओ को यह देखते हुए खारिज कर दिया कि सीबीआइ की प्राथमिकी और आरोपपत्र कोयला ब्लाक का आवंटन प्राप्त करने के लिए पीआईएल द्वारा की गई गलत बयानी तक सीमित हैं। दरअसल, शेयर जारी करना सीबीआई की प्राथमिकी, आरोपपत्र या ईसीआईआर का हिस्सा नहीं था, इसलिए ईडी के पास पीएओ जारी करने की शक्ति और अधिकार क्षेत्र नहीं था। ईडी की अपील को दो सदस्यीय पीठ ने स्वीकार करते हुए कहा कि एकल पीठ की टिप्पणी कानूनी निहितार्थों की एक बुनियादी गलत धारणा पर आधारित थी। ऐसे में उक्त आदेश को रद किया जाता है।

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