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    अवैध निर्माणों के खिलाफ याचिका लगाने वालों पर दिल्ली HC की सख्त टिप्पणी, लगाया 50 हजार का जुर्माना

    Updated: Wed, 08 Oct 2025 10:43 PM (IST)

    दिल्ली हाई कोर्ट ने अनधिकृत निर्माण की याचिका पर सख्त रुख अपनाते हुए याचिकाकर्ता पर 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाया। अदालत ने कहा कि ऐसी याचिकाएं केवल वही लोग दायर कर सकते हैं, जो सीधे तौर पर प्रभावित हों। अदालत ने यह भी कहा कि कुछ लोग अवैध लाभ के लिए अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग कर रहे हैं, जिसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

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    याचिकाकर्ता पर 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाकर खारिज की याचिका।

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। अनधिकृत निर्माण का आरोप लगाने वाली याचिकाओं पर दिल्ली हाई कोर्ट ने एक बार फिर सख्त टिप्पणी की है। न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा की पीठ ने इस तरह से याचिका लगाने वाले व्यक्तियों को चेतावनी देते हुए इस बात पर जोर दिया कि केवल सीधे प्रभावित होने वाले आसपास या पड़ोस में रहने वाले लोग ही ऐसी याचिकाएं दायर कर सकते हैं।

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    अदालत ने एक वादी पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया क्योंकि उसने जामिया नगर इलाके में स्थित जिस संपत्ति पर अनधिकृत निर्माण का आरोप लगाया था, उस पर कब्जा पाने के लिए कोई कदम नहीं उठाया। अदालत ने वादी को उक्त धनराशि दिल्ली हाई कोर्ट बार क्लर्क एसोसिएशन के पास जमा करने का निर्देश दिया।

    पीठ ने कहा कि अदालत पहले ही कई आदेश पारित कर चुका है कि केवल वे व्यक्ति, जो अनधिकृत निर्माण से सीधे प्रभावित हैं और जो संबंधित संपत्ति के आसपास रहने वाले निकटतम पड़ोसी हैं, उन्हें ही अनधिकृत निर्माण के खिलाफ याचिका दायर करने के हक है।

    पीठ ने कहा कि विभिन्न पक्ष नई रणनीति अपना रहे हैं और अनधिकृत निर्माण के खिलाफ याचिकाएं परिसर का स्वामित्व उनके पास होने के आधार पर दायर की जा रही हैं।

    पीठ ने कहा कि ऐसे ऐसे बेईमान व्यक्तियों को ऐसी चालें और हथकंडे अपनाने की अनुमति नहीं दी जा सकती, जो अपने लिए अवैध लाभ प्राप्त करने के लिए इस अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने का प्रयास करते हैं।

    याचिकाकर्ता बलबीर सिंह ने संपत्ति के मालिक होने का दावा करते हुए संपत्ति को ध्वस्त करने की मांग की। उन्होंने वर्ष 1967-1968 का राजस्व रिकार्ड दाखिल किया। उन्होंने संपत्ति पर कब्जे के लिए कोई मुकदमा दायर नहीं किया था।

    याचिका को खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि यह दावा करने के बावजूद कि विचाराधीन संपत्ति याची की है, उनकी ओर से कब्जे के लिए कोई मुकदमा दायर नहीं किया गया। इससे उनके मामले की वास्तविकता और प्रामाणिकता पर संदेह पैदा होता है।

    पीठ ने कहा कि अदालत को ऐसे लोगों से सख्ती से निपटना होगा जो इसकी प्रक्रिया का इस्तेमाल बेईमानी से करने की कोशिश करते हैं।

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