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    दहेज उत्पीड़न में रिश्तेदारों को घसीटने पर दिल्ली HC ने जताई चिंता, कलह को क्रूरता मानने से इनकार

    Updated: Tue, 04 Nov 2025 08:00 PM (IST)

    दिल्ली हाई कोर्ट ने दहेज हत्या से जुड़े एक मामले में कहा कि वैवाहिक कलह में दूर के रिश्तेदारों को घसीटने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। अदालत ने सामान्य पारिवारिक कलह को क्रूरता का अपराध मानने से इनकार किया। कोर्ट ने एक महिला द्वारा पति की मौसी और बेटी के खिलाफ दर्ज कराई गई प्राथमिकी को रद कर दिया, क्योंकि उनके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं थे। अदालत ने कहा कि धारा 498ए का दुरुपयोग हो रहा है।

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    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। वैवाहिक कलह में पुरुष के स्वजन ही नहीं दूर के रिश्तेदारों को दहेज उत्पीड़न सहित अन्य गंभीर अपराधों में घसीटने की बढ़ती प्रवृत्ति पर दिल्ली हाई कोर्ट ने गंभीर चिंता व्यक्त की है। अदालत ने कहा कि वैवाहिक जीवन में सामान्य उतार-चढ़ाव के दौरान होने वाले ताने और सामान्य पारिवारिक कलह मात्र क्रूरता का अपराध बनाने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।

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    न्यायमूर्ति अमित महाजन की पीठ ने कहा कि यह दोहराने की जरूरत नहीं है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए को वर्ष 1983 में दहेज की मांग से जुड़े अपराधों की प्रवृत्ति को देखते हुए जोड़ा गया था, ताकि महिलाओं को उनके पति या उनके रिश्तेदारों के हाथों क्रूरता से बचाया जा सके।

    हालांकि, बीते कई फैसलों में देखा गया है कि सुबूतों के अभाव में भी चाचा, चाची, मौसी से लेकर पति के परिवार के अन्य सदस्यों को भी दहेज में शामिल करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। जबकि वे उस में रहते भी नहीं हैं।

    पीठ ने तर्क दिया कि ऐसा केवल क्रूरता के कृत्यों में उनकी सक्रिय संलिप्तता को उजागर करने के लिए किया जाता है, क्योंकि ऐसे रिश्तेदार पक्षकारों के वैवाहिक कटुता से अवगत हो सकते हैं। अदालत ने उक्त टिप्पणी व्यक्ति की मासी व उसकी बेटी के खिलाफ शिकायतकर्ता महिला द्वारा कराई गई प्राथमिकी को रद कर दिया।

    आरोप लगाया गया था कि उन्होंने शिकायतकर्ता से दहेज की मांग की थी। व्यक्ति की माैसी व उसकी बेटी की तरफ से दायर की याचिका को स्वीकार करते हुए अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता शिकायतकर्ता के साथ उसके वैवाहिक घर में नहीं रहते थे।

    आरोप चाहे कितने भी गंभीर क्यों न हों, उनके द्वारा की गई कुछ टिप्पणियों या शिकायतकर्ता के वैवाहिक जीवन में हस्तक्षेप से संबंधित हैं। हालांकि, वैवाहिक जीवन में सामान्य पारिवारिक कलह धारा 498ए के तहत क्रूरता की परिभाषा के अंतर्गत आने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।

    अदालत ने कहा कि जांच या आरोपपत्र में ऐसा कुछ भी ठोस नहीं पाया गया जिससे याचिकाकर्ताओं के विरुद्ध प्राथमिकी से उत्पन्न कार्यवाही जारी रखने की अनुमति मिल सके। उक्त प्राथमिकी को रद करते हुए अदालत ने कहा कि अगर ट्रायल कोर्ट को याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए सुबूत मिलते हैं, तो वह सीआरपीसी के अनुसार उचित कदम उठाने के लिए स्वतंत्र होगा।

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