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    AQI आंकड़ों के बाद अब दिल्ली में प्रदूषकों की हिस्सेदारी पर उठे सवाल, गलत साबित हो रहे DSS के पूर्वानुमान 

    Updated: Wed, 19 Nov 2025 10:23 AM (IST)

    दिल्ली में प्रदूषण के स्तर को लेकर सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि डिसीजन सपोर्ट सिस्टम (डीएसएस) के पूर्वानुमान गलत साबित हो रहे हैं। इससे प्रदूषण नियंत्रण के प्रयासों पर सवालिया निशान लग गया है, क्योंकि डीएसएस का उद्देश्य प्रदूषण के स्रोतों की पहचान करना था, लेकिन इसके पूर्वानुमान वास्तविकता से मेल नहीं खा रहे हैं।

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    राजधानी के प्रमुख स्थानों पर पानी का छिड़काव कराया जा रहा है।

    संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। इस समय दिल्ली के प्रदूषण में प्रदूषकों की हिस्सेदारी जानने का एक ही माध्यम है आइआइटीएम पुणे का डिसीजन सपोर्ट सिस्टम (डीएसएस)। लेकिन एक्यूआई आंकड़ों के बाद अब इस पर भी सवाल उठ गए हैं। प्रदूषण के इस चरम सीजन में भी यह सिस्टम दगा देता नजर आ रहा है। आलम यह है कि डीएसएस पर पूर्वानुमान तक सही साबित नहीं हो रहे हैं।

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    बीते साल भी इस सिस्टम पर विवाद हुआ था। वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) इसके पूरी तरह से अपग्रेड नहीं होने तक इसके डेटा को मानने से इनकार कर दिया था। हाल के दिनों में डीएसएस पूर्वानुमान में राजधानी में पराली प्रदूषण की हिस्सेदारी 25 से 30 प्रतिशत तक दिखाई गई है। जबकि हकीकत में महज एक ही दिन पराली प्रदूषण 20 प्रतिशत से ऊपर गया है।

    Delhi AQI (4)

    12 नवंबर को पराली प्रदूषण 22.47 प्रतिशत रहा था। जबकि छह नवंबर को पूर्वानुमान किया गया था कि पराली प्रदूषण 38 प्रतिशत, आठ नवंबर को 25 और 9 नवंबर को 31 प्रतिशत के आसपास रहना था। लेकिन इन सभी दिन पराली की प्रदूषण में हिस्सेदारी 15 प्रतिशत से भी कम रही। यही स्थिति वाहनों के धुएं से होने वाले प्रदूषण की है। पूर्वानुमान दिया जाता कुछ और अगले दिन डेटा सामने आता है कुछ। इनके अलावा अन्य प्रदूषक तत्वों की हिस्सेदारी के आंकड़े में भी दिन बदलने पर कुछ ज्यादा बदलाव देखने को नहीं मिलता।

    डीएसएस केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अधीन काम करता है और इस सिस्टम का संचालन आइआइटीएम पुणे करता है। अधिकारी के अनुसार इस साल पराली जलाने के पैटर्न में पिछले साल की तुलना में काफी बदलाव रहा है। इसी वजह से सिस्टम के माडल प्रोजक्शन में गड़बड़ी आ रही है। अधिकारी के अनुसार पराली से होने वाले प्रदूषण का पूर्वानुमान उस दिन दोपहर में सेटेलाइट से मिले पराली जलाने के आंकड़ों पर निर्भर करता है।

    पराली जलाने के मामलों को डीएसएस माडल में धुंए के लोड में बदला जाता है। इसमें सबसे बड़ी खामी यह है कि ढाई बजे के बाद यदि पराली जलती है तो यह डेटा सेटेलाइट नहीं देती। सीएक्यूएम ने बीते साल डीएसएस सिस्टम को अस्थाई तौर के लिए रोक दिया था और निर्देश दिए थे कि वह अपनी सटीकता सुधारने के लिए कुछ बदलाव करे। इसी वजह से 2024 में डीएसएस के आंकड़े 29 नवंबर तक मिले थे। इसके बाद यह सिस्टम नौ दिसंबर को दोबारा से शुरू किया गया। हालांकि इस सीजन में सीएक्यूएम ने डीएसएस के काम करने पर अभी तक कोई निर्देश नहीं दिए हैं।