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    दिल्ली में बढ़ता प्रदूषण और स्क्रीन टाइम घटा रहा आंखों की रोशनी, विशेषज्ञों ने दी चेतावनी

    Updated: Sat, 22 Nov 2025 11:05 PM (IST)

    दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण और अत्यधिक स्क्रीन टाइम के कारण लोगों की आंखों की रोशनी पर बुरा असर पड़ रहा है। विशेषज्ञ इस बारे में चेतावनी दे रहे हैं कि कैसे प्रदूषण और नीली रोशनी आंखों को नुकसान पहुंचा सकती है। लोगों को सलाह दी जाती है कि वे अपनी आंखों की सुरक्षा के लिए मास्क पहनें, स्क्रीन टाइम कम करें और नियमित रूप से जांच कराएं।

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    दिल्ली के लोगों में बढ़ रही आंख संबंधित बीमारी।

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी में बढ़ते प्रदूषण, डिजिटल लाइफस्टाइल और बढ़ता स्क्रीन टाइम यहां के लोगों की आंखों की रोशनी कम कर रहा है। वृद्ध के साथ बच्चे भी इसका शिकार बन रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इनके अत्यधिक उपयोग और अनियमित जीवनशैली ने दिल्ली के लोगों में आंखों से संबंधित बीमारियों में वृद्धि कर दी है।

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    स्थिति यह है कि बच्चों में नजदीकी दृष्टि दोष तेजी से बढ़ रहा है। नेत्र विशेषज्ञों का मानना है कि राजधानी में ड्राई आइ डिजीज, मायोपिया, डिजिटल आइ स्ट्रेन और एलर्जिक कंजंक्टिवाइटिस तेजी से बढ़ रहे हैं। खासतौर पर बच्चों और युवाओं में मायोपिया का प्रतिशत पिछले दस वर्षों में लगभग दोगुना हुआ है, विशेषज्ञ इसे ‘नेक्स्ट महामारी’ बता रहे हैं।

    लंबे समय तक प्रदूषण में रहने से बढ़ रही समस्या

    इंट्राआक्युलर इम्प्लांट एंड रिफ्रेक्टिव सोसाइटी आफ इंडिया-2025 (आइआइआरएसआइ) साइंटिफिक कमेटी के अध्यक्ष प्रो. डा. महिपाल सिंह सचदेव ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि दिल्ली जैसे प्रदूषण-प्रधान महानगरों में आंखों के स्वास्थ्य पर सबसे बड़ा खतरा पार्टिकुलेट मैटर (पीएम2.5), धूल, धुआं, वाहन उत्सर्जन और औद्योगिक कचरे से पैदा होने वाली एलर्जी है।

    उन्होंने बताया कि लंबे समय तक प्रदूषण में रहने से कार्नियल इन्फ्लेमेशन, एलर्जिक ब्लेफेराइटिस, आइ रेडनेस, सूजन और समय से पहले मोतियाबिंद बनने का खतरा बढ़ जाता है। बताया कि बच्चों में बढ़ता स्क्रीन टाइम मायोपिया, युवाओं में ड्राई आइ सिंड्रोम तथा बुजुर्गों में एज-रिलेटेड मैक्यूलर डिजेनरेशन तेजी से बढ़ा है।

    5 साल दोगुनी होगी मरीजों की संख्या

    डा. महिपाल सिंह सचदेव ने चेतावनी दी कि डिजिटल उपकरणों मोबाइल, लैपटाप, स्मार्ट टीवीप के लगातार उपयोग से रेटिना पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ रहा है। कई अध्ययन इस ओर संकेत करते हैं कि यदि स्क्रीन टाइम और प्रदूषण का स्तर इसी तरह बढ़ता रहा, तो अगले पांच से दस वर्षों में राजधानी में नेत्र रोगियों की संख्या दोगुना हो जाएगी। सकता है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार दिल्ली में वर्तमान में पांच लाख से अधिक नेत्र रोगी हैं। जबकि आंखों की रोशनी की कमी वालों की संख्या 25 लाख से अधिक है।