Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck

    त्योहारों पर मिठास में जहर: दिल्ली-एनसीआर में मिलावटखोरी बेकाबू, खाद्य सुरक्षा व्यवस्था सवालों के घेरे में

    Updated: Thu, 16 Oct 2025 06:57 PM (IST)

    दिल्ली-एनसीआर में त्योहारों के दौरान मिलावटखोरी चरम पर है, जिससे खाद्य सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल उठ रहे हैं। मिलावटखोर नकली और मिलावटी खाद्य पदार्थों की बिक्री कर रहे हैं, जिससे लोगों के स्वास्थ्य पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है। खाद्य सुरक्षा विभाग की निष्क्रियता के कारण मिलावटखोरों के हौसले बुलंद हैं।

    Hero Image

    प्रतीकात्मक तस्वीर।

    खाद्य पदार्थों के नमूने लेने के प्रति गंभीरता और सजगता का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि कभी कोई मामला सजा तक नहीं पहुंचता। पूरे दिल्ली-एनसीआर में ही बीते दो-तीन साल में खाने के सामान में मिलावट को लेकर जेल नहीं हुई है। महज छिटपुट जुर्माना लगाकर छोड़ दिया जाता है। चेतावनी कर इतिश्री कर ली जाती है। जांच की प्रक्रिया से लेकर उसकी रिपोर्ट आने तक में हीलाहवाली का रवैया रहता है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    46 लाख तक वसूला जुर्माना, दूध उत्पादों में सर्वाधिक मिलावट

    त्योहारों के दौरान दूध और उससे बनने वाले उत्पादों जैसे मावा, पनीर, घी या इनसे तैयार मिठाइयों की मांग सबसे अधिक होती है। मांग के अनुरूप आपूर्ति और मुनाफा कमाने के चक्कर में मिलावट भी सबसे ज्यादा होती है मिलावट के लिए इनमें पानी, सिंथेटिक पदार्थ, यूरिया, स्टार्च, और घटिया तेल मिलाए जाते हैं। इसके अलावा मसालों में ईंट का चूरा, रेत या रंगीन रेशे और तेल में खनिज तेल जैसी चीजें मिलाई जाती हैं।

    क्या-क्या मिलाते हैं?

    मिलावट: दूध और दूग्ध उत्पादों मेंपानी, सिंथेटिक पदार्थ, यूरिया, स्टार्च, कास्टिक सोडा, और घटिया तेल।

    कारण: लागत कम करना और मात्रा बढ़ाना।

    मसाले (मिर्च, जीरा, हल्दी): मिलावट: ईंट का चूरा, रेत, चाक पाउडर, या अन्य रंगीन रेशे।

    कारण: रंग और वजन बढ़ाना।

    तेल (खासकर सरसों का तेल)

    मिलावट: खनिज तेल या आर्जीमोन तेल।

    कारण: लागत कम करना, जो गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर सकता है।

    कृत्रिम रंग

    मिलावट: कई मिठाइयों और पेय पदार्थों में हानिकारक कृत्रिम रंग।

    कारण: आकर्षक दिखने के लिए, जिनमें से कुछ प्रतिबंधित हैं।

    कितने नमूने लिए गए

    वर्ष नमूने
    2025-26 2694
    2024-25 1012
    2022-23 289

    वसूला गया जुर्माना

    वर्ष     जुर्माना
    2025-26  46,26,700
    2024-25  61,05,700
    2022-23  24,13,000

    (सोर्स : भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण)

    जिला इस वर्ष लिए गए सैंपल फेल मिले
    गुरुग्राम 205 15
    फरीदाबाद 95 12
    गाजियाबाद 1298 518
    गौतमबुद्ध नगर 495 215

    छापेमारी भी की जा रही

    ‘खाद्य सुरक्षा अधिनियम के मुताबिक रिपोर्ट 14 दिन बाद आती है। नमूना फेल होता है तो दुकानदार या अधिष्ठाता को एक मौका और दिया जाता है। वह अपने खर्चे पर शेष तीन नमूनों में से एक को किसी अन्य लैब में भेज सकता है। दूसरी रिपोर्ट ही फाइनल मानी जाता है, यह भी 14 दिन बाद आती है। नमूना फेल होने पर अधिनियम के मुताबिक प्रक्रिया होती है। त्योहार के मद्देनजर 11 जिलों के लिए 11 टीमें बनाई गई हैं। आबादी के हिसाब से टीम में सदस्यों की संख्या रखी गई है। मिलावट रोकने के लिए टीम 24 घंटे मुस्तैद है। लगातार दुकान, होटल, ढाबा, रेस्तरां आदि से सैंपल लिए जा रहे हैं और जांच के लिए भेजे जा रहे हैं। इतना ही नहीं पुलिस की क्राइम ब्रांच के साथ मिलकर छापेमारी भी की जा रही है।’

    -जितेन्द्र कुमार जैन, कमिश्नर, खाद्य सुरक्षा-दिल्ली

    ------------------------------------------------

    जहरीली मिठास, मिलावटी जांच

    त्योहार पर जिस तरह से बाजार में मिठाइयों की उपलब्धता और खपत दिखती है, उससे एक सवाल बेचैनी पैदा करता है कि आखिर इतनी तादाद में खोया, मावा एकाएक आता कहां से है। आखिर दूध का ऐसा कौन सा उत्पादन एकदम से बढ़ जाता है? क्योंकि दूध के बने इसे खोया, मावा की बहुत छोटी मियाद होती है। अब जो मावा अधिकतम सप्ताह भर में खराब हो जाता है, हालांकी उसकी श्रेष्ठ गुणवत्ता तो दो-तीन तक ही रहती है, उसी की बनाई कुंतलों मिठाई बाजार से घरों तक में बीमारी के रूप में घूमती हैं।

    निश्चित ही उसमें कुछ ऐसी मिलावट है जो उसकी मियाद को खराब होने से बचाए हुए है, या खराब भी है तो भी पकड़ में नहीं आ रही है। और यही जहरीली चोरी उपभोक्ताओं की सेहत से खिलवाड़ कर रही है। और इसमें खाद्य सुरक्षा विभागों की अनदेखी सबसे बड़ी लापरवाही के रूप में सामने आती है क्योंकि जिस समय बाजार में मिठाई पहुंच जाती है तब इसके नमूने लिए जाते हैं और उसकी जांच रिपोर्ट आना तो रामभरोसे ही है क्योंकि वो तो त्योहार बीत जाने के एक महीने बाद ही आती है।

    अब ऐसे में खाद्य सुरक्षा विभाग और उसकी कार्य प्रणाली की सक्रियता से अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिसके ऊपर लोगों को स्वस्थ और स्वच्छ खिलाने का जिम्मा है वो कितना जिम्मेदार है। और ये बात भी सर्वविदित है कि त्योहार के समय होने वाली खाद्य सुरक्षा विभाग की जांच प्रक्रिया महज खानापूरी ही होती है, लेनदेन की मिलीभगत में मिलावट बाजार में खुलेआम बिकती है।

    यहां तक की मिलावट के लिए कभी किसी को कड़ी सजा तक नहीं हुई। ऐसे में सवाल यही उठता है कि आखिर त्योहारों से पहले दिल्ली समेत एनसीआर में सक्रिय होने वाले मिलावटखोरों पर क्यों नहीं लगाई जा पाती प्रभावी रूप से लगाम?  नमूनों की जांच के साथ ही नियम-कानून में कहां है खामी, जिसका इन्हें मिलता है लाभ। साथ ही लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने वालों पर नकेल कसने के लिए क्या किए जाने चाहिए ठोस उपाय, कैसे सुधारी जाए व्यवस्था?  इसी की पड़ताल हमारा आज का मुद्दा है :

    सवाल : क्या दिल्ली समेत एनसीआर में खाद्य पदार्थों में मिलावट पर प्रभावी रोक न लग पाने के पीछे मुख्य वजह खाद्य सुरक्षा विभाग की व्यवस्था में खामी है?

    हां : 97

    नहीं : 3

    सवाल : क्या दिल्ली समेत एनसीआर में मिलावटखोरी पर प्रभावी नकेल कसने के लिए नियम-कानूनों में आमूलचूल बदलाव किए जाने की आवश्यकता है?

    हां : 82

    नहीं : 18

    ------------------------------------------------ 

    त्योहारी सीजन में ही नहीं, प्रशासनिक अमला सालभर सक्रिय रहे

    ----------------

    -अजय शंकर पांडेय, पूर्व जिलाधिकारी गाजियाबाद

    ---------------

    मिलावटखोरी को रोकने के लिए नियमों को और सख्त करना होगा मिलावटखोरी दिल्ली एनसीआर सहित देश के सभी हिस्सों में एक लाइलाज बीमारी के रूप में फैली हुई है। जहां पर इसे लेकर संवेदनशीलता है, जागरूकता है और प्रशासनिक अमला सजग है, वहां पर यह नियंत्रित है।

    ऐसा भी नहीं है कि मिलावटखोरी की शिकायतें सामान्य रूप से न आती हों और इसका दुष्परिणाम भी देखने को न मिलता हो। सामान्य दिनों में यह सबकुछ व्यवस्था का अंग मान लिया गया है।

    हल्की-फुल्की मिलावटखोरी कोई तात्कालिक संकट पैदा नहीं करती, इसलिए इसको स्वीकार कर आंखें मूंद ली जाती हैं। रही दिल्ली और एनसीआर क्षेत्र की बात तो यहां पर उपभोक्तावाद इस कदर हावी है कि मिलावटखोरी से नफा कमाने में सारी नैतिकता को ताख पर रख दिया जाता है।

    त्योहार के समय खाद्य पदार्थों की मांग तेजी से बढ़ती है। बाजार में दूध, घी और मावे से बनी मिठाइयों की बहुतायत में बिक्री होती है। इनकी बढ़ती मांग की वजह से मिलावट में और तेजी से होने लगी है।

    मिलावटखोरी को रोकने का जिम्मा जिन अधिकारियों पर होता है, वे भी सामान्य दिनों में उनके हिस्सेदार बनकर अनुचित लाभ कमाते रहते हैं। कहीं कोई घटना हो भी जाती है तो जिम्मेदारी अधिकारी तुरत-फुरत खानापूरी कर मामले को शांत कर देते हैं। यह भी सही है कि स्टाफ की बहुत बड़ी कमी एनसीआर में है।

    इस कदर खाद्य पदार्थों का व्यवसाय है, उसकी तुलना में उन्हें रेगुलेट करने वाले अधिकारियों की संख्या नगण्य सी है। दूसरे खाद्य पदार्थों की जांच करने और उसे स्थापित करने की प्रक्रिया काफी समय साध्य है। नमूनों की जांच में बहुतेरा विलंब होता है। खाद्य पदार्थों के नमूने फेल होने पर खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के तहत कार्यवाही करने और दोष सिद्ध कर दंड देने में काफी जटिलताएं होती हैं और काफी समय भी लग जाता है।

    इन्हीं विसंगतियों के चलते सामान्य दिनों में मिलावटी खाद्य पदार्थों के नमूनों के संग्रह, उनकी जांच और उन्हें दोष सिद्धि तक पहुंचाने में महज खानापूर्ति ही होती है। त्योहारी सीजन में स्थिति बिल्कुल इसके उलट हो जाती है।

    बड़े पैमाने पर खाद्य पदार्थों की बिक्री चल निकलती है। उसी अनुपात में उपभोक्ताओं में भी उसके उपयोग को लेकर मारामारी बढ़ जाती है, साथ ही मिलावटखोरी भी। प्रशासन भी अलर्ट रहता है कि ऐसे अवसरों पर मिलावटी खाद्य पदार्थों की बिक्री एवं उपभोग एक बड़ी घटना का रूप न ले सके, इसलिए साल भर सोया हुआ प्रशासनिक अमला भी केवल मात्र इसी अवधि में जागने, अपने कर्तव्यों के निर्वहन के लिए और सरकार की आंख में किरकिरी बन जाने की आशंकाओं के चलते भागदौड़ करता देखा जाता है।

    यदि यही प्रशासनिक अमला सालभर सक्रिय रहे, समय-समय पर अभियान चलाए, खाद्य पदार्थों के नमूनों की जांच करे, मिलावट पाए जाने पर सख्त से सख्त कार्यवाही करे तो त्योहारी सीजन में मिलावटखोरी न तो गंभीर समस्या के रूप में खड़ी हो सकती है और नियंत्रित भी बनी रहेगी।

    जरूरत इस बात की है कि एनसीआर क्षेत्र में इस काम में लगे अधिकारियों और कर्मचारियों की संख्या बढ़ाई जाए। दूसरे खाद्य नमूनों की जांच करने वाली नई-नई प्रयोगशालाएं नई तकनीकों के साथ स्थापित होनी चाहिए।

    इसके अलावा सामान्य जांच पड़ताल के टूल किट हर खाद्य सामग्री बेचने वाले प्रतिष्ठानों पर उपलब्ध करवाई जानी चाहिए ताकि कोई भी ग्राहक कम से कम प्रारंभिक जांच कर मुतमईन हो सके।

    सरकार को इस बात पर भी विचार करना चाहिए कि खाद्य पदार्थों से संबंधित हर उत्पादों पर उसकी मिलावट की जांच करने और उसे मिलावटी पाए जाने का कम से कम नितांत आधारभूत और प्रारंभिक नुस्खा बिक्री सामग्री के साथ उपभोक्ताओं को उपलब्ध करवाने की कानूनी व्यवस्था करें।

    हर छह माह में अपने उत्पादों का लैब टेस्ट खाद्य व्यवसायियों को करवाना अनिवार्य होता है, इसका भी कड़ाई से पालन करवाया जाना चाहिए। साथ ही साथ अधिकतम जुर्माना, कड़ी सजा के साथ-साथ लोगों को जागरूक करना जरूरी है।

    ब्रांडेड और डिब्बा बंद (सील पैक) खाद्य सामग्री की भी नियमित जांच होनी चाहिए कि ये खाद्य सुरक्षा मानकों के अनरूप है अथवा नहीं। किसी खाद्य पदार्थ में मिलावट पाई जाती है तो हेल्पलाइन नंबर पर तुरंत शिकायत करने के लिए जनमानस को जागरूक करना चाहिए और उस शिकायत पर त्वरित कार्रवाई भी होनी चाहिए।

    वर्तमान में जो खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम है उसमें परिवर्तन कर और अधिक कठोर बनाया जाए। सरकार के साथ-साथ जन मानस को मिलावट से बचने और उसकी जांच-परख के लिए जागरूक होना ही होगा, तब ही मिलावट पर अंकुश लगाया जा सकता है।

    (जैसा बातचीत में आदित्य त्रिपाठी को बताया)