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    'नकली ORS लेबल स्वास्थ्य के लिए खतरनाक, बाजार में बिकने नहीं दिया जा सकता', दिल्ली हाई कोर्ट के सख्त आदेश

    Updated: Sat, 01 Nov 2025 11:04 AM (IST)

    दिल्ली हाई कोर्ट ने नकली ओआरएस लेबल वाले पेय पदार्थों की बिक्री पर रोक लगाने के एफएसएसएआई के आदेश में दखल देने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि नकली ओआरएस लेबल स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हैं और इन्हें बाजार में नहीं बेचा जा सकता। अदालत ने यह भी कहा कि जन स्वास्थ्य के लिए खतरा बने रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती है और ऐसे उत्पादों के निर्माण और बिक्री पर प्रतिबंध जारी रहेगा।

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    दिल्ली हाईकोर्ट ने एक कंपनी की याचिका पर राहत देने से किया इनकार।

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। नकली ओआरएस लेबल वाले पेय पदार्थाें की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने के भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआइ) के निर्देश में हस्तक्षेप करने से दिल्ली हाई कोर्ट ने इन्कार कर दिया है। शुक्रवार को न्यायमूर्ति सचिन दत्ता की पीठ ने कहा कि नकली ओआरएस लेबल स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है और इसे बाजार में बिकने नहीं दिया जा सकता।

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    अदालत ने रिकॉर्ड पर लिया कि एफएसएसएआई ने एक अधिसूचना जारी कर कहा था कि ट्रेडमार्क नामों में उपसर्ग या प्रत्यय के साथ भी ओआरएस का उपयोग भ्रामक है और उत्पाद के विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लयूएचओ) के मानकों के अनुरूप न होने तक खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम 2006 का उल्लंघन है।

    न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने कहा कि जन स्वास्थ्य के लिए खतरा बने रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती और ऐसे उत्पादों के निर्माण और बिक्री पर लगाया गया प्रतिबंध जारी रहेगा।

    अदालत ने उक्त टिप्पणी डा. रेड्डीज लैबोरेटरीज द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए की। इसमें एफएसएसएआइ के 14 और 15 अक्टूबर के आदेशों को चुनौती दी गई थी। इन आदेशों में इलेक्ट्रोलाइट और पेय उत्पादों के पंजीकृत ट्रेडमार्क में उपसर्ग या प्रत्यय के साथ ओआरएस शब्द के इस्तेमाल की अनुमति देने वाली पूर्व स्वीकृतियों को वापस ले लिया गया था।

    कंपनी ने तर्क दिया कि कंपनी ने नए बैचों का निर्माण पहले ही बंद कर दिया है और नाम बदलने के लिए तैयार है। हालांकि, अनुरोध किया कि उत्पाद, जो पहले से ही बाजार में है, को रीबलांज विटर्स चिह्न के साथ बेचने की अनुमति दी जाए।

    हालांकि, कंपनी के तर्कों का एफएसएसएआई की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सालिसिटर जनरल (एएसजी) चेतन शर्मा और केंद्र सरकार के स्थायी वकील आशीष दीक्षित ने विरोध किया।