JNU चुनाव में टकराए दो एजेंडे: एबीवीपी के विकास मॉडल बनाम वाम की आजादी की राजनीति पर बोले विकास पटेल और अदिति मिश्र
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के आगामी चुनावों में एबीवीपी का विकास मॉडल और वामपंथी दलों की आजादी की राजनीति के बीच मुकाबला है। विकास पटेल ने एबीवीपी के विकास केंद्रित दृष्टिकोण पर जोर दिया, जबकि अदिति मिश्र ने वामपंथी दलों की आजादी की विचारधारा का समर्थन किया। छात्रों को इन दो विचारधाराओं में से एक को चुनना है।

जेएनयू छात्र संगठन चुनाव में वाम संगठनों की प्रत्याशी अदिति मिश्रा एवं एबीवीपी के अध्यक्ष पद के प्रत्याशी विकास पटेल।
जेएनयू छात्रसंघ चुनावों का माहौल अब पूरी तरह गरमाने लगा है। इस बार अध्यक्ष पद पर एक ओर वामपंथी उम्मीदवार हैं जो बराबरी, लोकतंत्र और छात्रों के अधिकारों की राजनीति को आगे बढ़ाने का दावा कर रहे हैं, तो दूसरी ओर एबीवीपी प्रत्याशी हैं जो विकास, पारदर्शिता और जवाबदेही को अपना एजेंडा बता रहे हैं। दोनों पक्ष विश्वविद्यालय में घटते संसाधनों, हास्टल और लाइब्रेरी की समस्याओं तथा प्रशासनिक नियंत्रण के मुद्दों को अपने-अपने नजरिए से उठा रहे हैं।जहां वाम उम्मीदवार शिक्षा के निजीकरण और लोकतांत्रिक स्पेस के सिकुड़ने को सबसे बड़ी चुनौती मानती हैं, वहीं एबीवीपी प्रत्याशी छात्रों की बुनियादी सुविधाओं, डिजिटल कनेक्टिविटी और पारदर्शी छात्र राजनीति को प्राथमिकता दे रहे हैं। विचारधारा बनाम विकास के इस मुकाबले में जेएनयू के छात्र तय करेंगे कि कैंपस की राजनीति किस दिशा में आगे बढ़ेगी। एबीवीपी के अध्यक्ष पद के प्रत्याशी 'विकास पटेल' और वाम संगठनों की प्रत्याशी 'अदिति मिश्रा' से उनके मुद्दों पर बातचीत की 'लोकेश शर्मा' ने। प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश...
विकास पटेल से बातचीत...
आपके लिए सबसे बड़ा मुद्दा क्या है? बराक छात्रावास शुरू हो चुका है, लेकिन उसमें मेस और वाई-फाई की सुविधा नहीं है। उसके लिए आप क्या कदम उठाएंगे?
जेएनयू में रहने वाले छात्रों के लिए बुनियादी सुविधाएं ही सबसे बड़ी प्राथमिकता हैं। बराक हाॅस्टल जैसे नए छात्रावास का शुरू होना स्वागतयोग्य है, लेकिन बिना मेस और वाई-फाई के वह अधूरा है। यह केवल सुविधा का नहीं, बल्कि समान अवसर का सवाल है, क्योंकि डिजिटल कनेक्टिविटी और पौष्टिक भोजन आज के समय में अकादमिक प्रगति की बुनियाद हैं। अभाविप की मांग होगी कि विश्वविद्यालय प्रशासन तुरंत एक समय-सीमा तय करे जिसमें मेस चालू किया जाए और हाई-स्पीड इंटरनेट की सुविधा प्रदान की जाए। हम इस विषय पर औपचारिक ज्ञापन सौंपेंगे, छात्रों के प्रतिनिधिमंडल के साथ बातचीत करेंगे और ज़रूरत पड़ने पर चरणबद्ध आंदोलन भी चलाएँगे ताकि छात्रों को उनका अधिकार मिल सके।
पिछले चुनाव में 10 वर्ष बाद एबीवीपी एक संयुक्त सचिव का पद जीत सकी। उसके लिए भी वाम संगठनों की टूट को एबीवीपी की मजबूती का कारण माना जाता है। इस साल गठबंधन फिर हो गया है। आपको जीत की कितनी उम्मीद है?
हमारी जीत किसी की टूट से नहीं, हमारे काम और छात्रों के विश्वास से तय होती है। पिछले कार्यकाल में एबीवीपी ने जेएनयू में कई ठोस काम किए। रेलवे रिजर्वेशन सेंटर को पुनः शुरू करवाना, बस सुविधा बढ़वाना, खेल सुविधाओं का विस्तार करवाना और कई हाॅस्टलों में पानी व स्वच्छता की समस्याओं को सुलझाना। छात्रों ने देखा है कि हम केवल नारे नहीं लगाते, बल्कि परिणाम देते हैं। इस बार गठबंधन चाहे जो भी हो, एबीवीपी का एजेंडा साफ़ है, विकास, पारदर्शिता और जवाबदेही। जेएनयू के छात्र अब वैचारिक विभाजन नहीं, रचनात्मक राजनीति चाहते हैं, और यही हमारी जीत की सबसे बड़ी उम्मीद है।
आप पर वाम संगठन हिंसा करने के आरोप लगा रहे हैं, इस पर क्या कहना चाहेंगे?
यह आरोप पूरी तरह बेबुनियाद है। एबीवीपी विचार, संवाद और लोकतांत्रिक परंपराओं में विश्वास रखती है। जिन संगठनों के पास अब कोई ठोस मुद्दा नहीं बचा, वे ध्यान भटकाने के लिए ऐसे झूठे आरोप लगाते हैं। जेएनयू की पहचान बहस और विविध विचारों की रही है, और एबीवीपी ने हमेशा इस परंपरा का सम्मान किया है। हम हिंसा या डर की राजनीति नहीं करते, हम संवाद, विकास और जिम्मेदारी की राजनीति करते हैं।
चुनाव जीतने के लिए आपकी रणनीति क्या है?
हमारी रणनीति साफ और पारदर्शी है, हर छात्र तक पहुंचना, हर मुद्दे पर बात करना और हर समस्या के समाधान का रोडमैप देना। हमारा चुनाव अभियान केवल पोस्टर या नारेबाज़ी तक सीमित नहीं है; हम हॉस्टल स्तर पर, स्कूल स्तर पर और व्यक्तिगत बातचीत के ज़रिए छात्रों की ज़रूरतों को समझ रहे हैं। हमारे प्रत्याशी जमीनी हैं और उनकी प्राथमिकता यही है कि छात्र राजनीति केवल भाषण तक नहीं, बल्कि ठोस कार्य तक पहुंचे।
अगर आप जीतते हैं, तो जेएनयू को किस तरह बेहतर बनाएंगे?
जेएनयू को बेहतर बनाना केवल एक वादा नहीं, बल्कि एक दृष्टि है। हम विश्वविद्यालय को ऐसे स्थान के रूप में देखना चाहते हैं जहां शिक्षा, अनुसंधान और राष्ट्रीय चेतना साथ-साथ विकसित हों। हमारी प्राथमिकताएं होंगी। लाइब्रेरी और लैब सुविधाओं का आधुनिकीकरण, छात्रावासों में मेस और इंटरनेट व्यवस्था को दुरुस्त करना, खेल और सांस्कृतिक गतिविधियों को प्रोत्साहन देना, तथा छात्रों के लिए रोजगार उन्मुख प्रशिक्षण और इंटर्नशिप कार्यक्रम शुरू करना। स्वास्थ्य सेवाओं और मानसिक स्वास्थ्य सहायता को भी मज़बूत किया जाएगा।
अदिति मिश्रा से बातचीत...
पिछले दो बार से पुरुष कैंडिडेट अध्यक्ष पद पर खड़े हो रहे थे। इस बार आप आई हैं, इस पर क्या कहना चाहेंगी?
वाम आंदोलन हमेशा से मानता आया है कि नेतृत्व की कमान महिलाओं, दलितों, बहुजनों, अल्पसंख्यकों और हाशिए पर रहे वर्गों के हाथ में होनी चाहिए। मैं उसी विरासत का हिस्सा हूं, जहां नेतृत्व बराबरी, लोकतंत्र और छात्रों के अधिकारों की प्रतिबद्धता से तय होता है।
आपकी चुनावी रणनीति क्या है?
हम हर छात्र तक, हर हास्टल और हर स्कूल तक पहुंच रहे हैं, उम्मीद और प्रतिरोध की राजनीति के साथ। हास्टल की कमी, लाइब्रेरी संसाधनों की घटती उपलब्धता और ढांचागत समस्याओं को हम व्यापक शिक्षा के निजीकरण और प्रशासनिक नियंत्रण के खिलाफ बड़ी लड़ाई से जोड़कर देख रहे हैं। हमारा अभियान मुद्दों पर आधारित है, न कि पैसे या ताकत पर।
लंबे वक्त से वाम छात्र संगठनों का जेएनयूएसयू पर कब्जा है लेकिन लाइब्रेरी की समस्या, छात्रावास की समस्या सुलझ नहीं सकी है। इस पर क्या कहना चाहेंगी?
जेएनयूएसयू ने हमेशा छात्रों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया है, भले ही प्रशासन और सरकार ने आवाज़ दबाने की कोशिश की हो। आज की समस्याएं भाजपा-आरएसएस के सार्वजनिक शिक्षा पर हमले का परिणाम हैं। एआइएसए के नेतृत्व में बराक हास्टल शुरू हुआ और साइबर लाइब्रेरी को फिर से छात्रों के लिए खोला गया। समान और न्यायपूर्ण कैंपस के लिए यह संघर्ष निरंतर जारी रहेगा।
एबीवीपी से जीतने के लिए क्या रणनीति अपना रहे हैं?
यह चुनाव दो विचारधाराओं के बीच है एक ओर एबीवीपी है जो घृणा और अधिनायकवाद की राजनीति करती है, और दूसरी ओर हम हैं जो समानता, लोकतंत्र और आज़ादी की आवाज़ उठाते हैं। हमारी कोशिश है कि छात्र असली मुद्दों शिक्षा, गरिमा और अधिकारों पर एकजुट हों।
चुनाव जीतने पर सबसे पहले आप क्या कार्य करेंगी?
हम सबसे पहले लाइब्रेरी एक्सेस, हाॅस्टल की कमी, ढहते बुनियादी ढांचे और एमसीएम व नान-नेट फेलोशिप बढ़ाने के मुद्दों को प्राथमिकता देंगे। साथ ही प्रशासन के किसी भी दमनकारी कदम, जैसे सीपीओ मैनुअल, का विरोध करेंगे।
आपके लिए चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा क्या है?
आज सबसे बड़ी चुनौती लोकतांत्रिक स्पेस का सिकुड़ना है चाहे जेएनयू में हो या देशभर में। प्रशासनिक रोक और निगरानी से छात्रों की अभिव्यक्ति को दबाने की कोशिश की जा रही है। हमारा संघर्ष विश्वविद्यालय को विचारों की आज़ादी और निडर आवाज़ों का स्थान बनाए रखने का है। शिक्षा और लोकतंत्र एक-दूसरे से जुड़ी अवधारणाएं हैं।
महिला सुरक्षा के लिए जेएनयू कई कदम उठा रहा है। हर जगह एंट्री प्वाइंट को आटोमेटिक करने की योजना है। इससे महिला सुरक्षा कितनी मजबूती होगी?
महिलाओं की सुरक्षा निगरानी या प्रतिबंधों से नहीं आती, बल्कि बराबरी, जवाबदेही और सम्मान की संस्कृति से आती है। सीसीटीवी और आटोमेटिक गेट केवल महिलाओं पर नियंत्रण का तरीका हैं, सुरक्षा का नहीं। एआईएसए हमेशा कहता है कि सुरक्षा का मतलब है आज़ादी और इसके लिए जेएनयू में जीएसकैश की बहाली बेहद ज़रूरी है। वाम छात्र राजनीति का उद्देश्य डरमुक्त, समान और लोकतांत्रिक परिसर बनाना है । जहां हर छात्र बिना भय और भेदभाव के अपनी आवाज़ उठा सके।

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