मंडोली जेल में हिंसा और जबरन वसूली के आरोप गंभीर, दिल्ली HC ने कहा-कैदियों की सुरक्षा में बड़ी चूक
दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंडोली जेल में हिंसा और जबरन वसूली के आरोपों पर चिंता जताई है। अदालत ने कैदियों की सुरक्षा में गंभीर चूक मानते हुए इस मामले को गंभीरता से लिया है। यह मामला जेल के अंदर कैदियों के बीच मारपीट और जबरन वसूली की शिकायतों से संबंधित है।

प्रतीकात्मक तस्वीर।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। मंडोली जेल में एक विचाराधीन कैदी द्वारा हिरासत में मारपीट और जबरन वसूली के आरोपों पर दिल्ली हाई कोर्ट ने गंभीर चिंता जताई है। न्यायमूर्ति संजीव नरुला की पीठ ने कहा कि कैदियों की सुरक्षा व उपचार से संबंधित जेल परिसर की प्रशासनिक व्यवस्था व पर्यवेक्षण में चूक गंभीर चिंता का विषय हैं। हिरासत में बंद व्यक्तियों के जीवन और कल्याण को खतरा उत्पन्न करने वाली चूक की निष्पक्ष जांच की आवश्यकता है।
आरोपों को नहीं कर सकते अनदेखा
अदालत ने आदेश दिया कि कैदी की याचिका को इसी तरह के आरोपों पर शुरू की गई अदालत की निगरानी वाली सीबीआई जांच में जांच अधिकारी द्वारा की गई शिकायत के रूप में माना जाए। अदालत ने कहा कि विचाराधीन कैदी फरमान द्वारा लगाए गए आरोपों की गंभीरता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
अदालत ने उक्त टिप्पणी व आदेश आर्म्स एक्ट के एक मामले में आरोपित फरमान की याचिका पर दिया। याचिका में आरोप लगाया गया है कि जेल अधिकारियों के इशारे पर मंडोली जेल के अंदर अन्य कैदियों के साथ पैसे वसूलने के लिए उन पर हमला और उत्पीड़न किया जा रहा था।
जबरन वसूली के एक बड़े पैटर्न का हिस्सा
यह भी आरोप है कि सात जून 2024 को जेल अधिकारियों के निर्देश पर कुछ कैदियों ने उस पर हमला किया और यह घटना सीसीटीवी कैमरे में कैद हो गई। फरमान ने तर्क दिया कि ये कृत्य जेल के भीतर जबरन वसूली के एक बड़े पैटर्न का हिस्सा हैं।
इसमें कैदियों को हिंसा की धमकी देकर पेटीएम जैसे डिजिटल प्लेटफार्म के माध्यम से पैसे देने के लिए मजबूर किया जाता था। हालांकि, उन्होंने कहा कि धमकी के तहत बड़ी रकम का भुगतान करने के बावजूद दुर्व्यवहार बंद नहीं हुआ, बल्कि और बढ़ गया।
जांच अधिकारी नियुक्त किया
वहीं, आरोपों को बेबुनियाद बताते हुए जेल प्रशासन ने कहा कि 28 अक्टूबर को एक पीठ द्वारा पारित आदेश के अनुसार सीबीआइ ने इसी तरह के आरोपों के संबंध में भारतीय दंड संहिता की धारा 386 और 120बी, भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 61(2) सहपठित धारा 308(5) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 7 के तहत एक प्राथमिकी की थी। यह भी कहा कि दिल्ली सरकार के सतर्कता निदेशालय ने भी संभावित प्रशासनिक चूकों की जांच के लिए एक जांच अधिकारी नियुक्त किया है।
कोर्ट ने जांच संबंधी दिए कई निर्देश
याचिका का निपटारा करते हुए पीठ ने निर्देश दिया कि इस याचिका को रिकाॅर्ड में रखी गई सामग्री के साथ सीबीआई मामले के जांच अधिकारी को भेजी जाए, जो इसे एक शिकायत के रूप में मानेंगे। यह भी कहा कि प्रारंभिक जांच के बाद जांच अधिकारी यह तय कर सकेंगे कि आरोपों के लिए अलग से मामला दर्ज करना जरूरी है या कानून के अनुसार चल रही जांच के एक हिस्से के रूप में उनकी उचित जांच की जा सकती है।

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