Hindi Hain Hum: शिक्षाविदों ने हिंदी को राजभाषा से राष्ट्रभाषा बनाने की अपील की
हिंदी महज भाषा नहीं बल्कि देश में अनेकता में एकता का स्वरूप इसी से तय होता है। इसलिए हिंदी को राजभाषा नहीं राष्ट्रभाषा का दर्जा मिलना चाहिए। हिंदी दिवस (Hindi Diwas) पर दैनिक जागरण के अभियान ‘हिंदी हैं हम’ (Hindi Hain Hum) के अंतर्गत दिल्ली संवादी का आयोजन किया गया। अभिव्यक्ति के इस उत्सव में भाषा और साहित्य से जुड़े लेखक शिक्षाविद और संस्कृतिकर्मी अलग अलग सत्र में जुड़े।

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। हिंदी महज भाषा नहीं, बल्कि देश में अनेकता में एकता का स्वरूप इसी से तय होता है। इसलिए हिंदी को राजभाषा नहीं राष्ट्रभाषा का दर्जा मिलना चाहिए। हिंदी दिवस (Hindi Diwas) पर दैनिक जागरण के अभियान ‘हिंदी हैं हम’ (Hindi Hain Hum) के अंतर्गत दिल्ली संवादी का आयोजन किया गया। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के साथ मिलकर अभिव्यक्ति के इस उत्सव में भाषा और साहित्य से जुड़े लेखक, शिक्षाविद और संस्कृतिकर्मी अलग अलग सत्र में जुड़े।
संवादी के सिनेमा, समाज और संस्कृति सत्र में बोलते आइजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ सच्चिदानंद जोशी व संस्कृतिकर्मी संदीप भूतोड़िया (दाएं)।
इस दौरान जागरण हिंदी बेस्टसेलर की घोषणा भी की गई। इसमें कथा, कथेतर, कविता और अनुवाद की चार श्रेणियों में सबसे अधिक बिकने वाली 35 पुस्तकों की सूची जारी की गई। इस सूची को विश्व प्रसिद्ध एजेंसी नील्सन ने तैयार किया है।
हिंदी को राष्ट्राभाषा का दर्जा देने की मांग
नई दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में दीप प्रज्वलन के साथ चार सत्रों में चले जागरण संवादी में तमाम वक्ताओं ने अपने विचार रखे। इस दौरान हिंदी को राजभाषा के बदले राष्ट्रभाषा का दर्जा देने की बात सभी वक्ताओं ने एक स्वर में कहा। उद्घाटन सत्र में भारतीय ज्ञान परंपरा पर चर्चा हुई।
भविष्य और साहित्य सत्र के दौरान साहित्य अकादमी के सचिव ड. के एस राव, लेखिका क्षमा शर्मा, केंद्रीय हिंदी संस्थान के पूर्व उपाध्यक्ष अनिल जोशी। (बाएं से दाएं)।
इसमें दैनिक जागरण के कार्यकारी संपादक विष्णु प्रकाश त्रिपाठी और केंद्रीय हिंदी संस्थान के निदेशक केंद्रीय हिंदी संस्थान के निदेशक सुनील कुलकर्णी ने अपने विचार रखे। पहले सत्र का विषय साहित्य और दिल्ली था। इसमें लेखक व दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व उपकुलपति प्रो. सुधीश पचौरी, लेखक व रेलवे बोर्ड के पुर्व संयुक्त सचिव प्रेमपाल शर्मा और साहित्य अकादमी से सम्मानित बाल साहित्यकार दिविक रमेश वक्ता रहे।
दूसरे सत्र में भारत का भविष्य और साहित्य पर साहित्य अकादमी के सचिव डॉ. केएस राव, लेखिका क्षमा शर्मा और वैश्विक हिंदी परिवार के अध्यक्ष अनिल जोशी ने विस्तृत चर्चा की। तीसरे सत्र में राष्ट्रीय शिक्षा नीति और हिंदी पर चर्चा हुई।
इस सत्र में लालबहादुर शास्त्री संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. मुरली मनोहर पाठक, एनआईईपीए की कुलपति प्रो. शशिकला वंजारी व राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी संस्थान की अध्यक्ष प्रो. सरोज शर्मा से प्रो. रवि प्रकाश टेकचंदाणी ने संवाद किया। चौथे सत्र में सिनेमा, समाज और संस्कृति पर विमर्श किया गया। इसमें इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी, संस्कृतिकर्मी संदीप भूतोड़िया ने अपने विचार रखे।
कार्यक्रम में सभी वक्ताओं समेत आईजीएनसीए की निदेशक (प्रशासन) प्रियंका मिश्रा, इसी केंद्र के राजभाषा निदेशक अजीत कुमार को अंगवस्त्र के साथ पौधा देकर सम्मानित किया गया।
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सिनेमा पर हिंदी में श्रेष्ठ शोधपरक साहित्य की है कमी: सच्चिदानंद जोशी
आइजीएनसीए के सदस्य सचिव सच्चिदानंद जोशी ने सिनेमा पर हिंदी में श्रेष्ठ शोधपरक साहित्य की कमी पर चिंता जताते हुए कहा कि सिनेमा पर अधिकतर अच्छे साहित्य अंग्रेजी में है। यह इसलिए भी कि अभिनेता फिल्में करते तो हिंदी में हैं, लेकिन साक्षात्कार देते अंग्रेजी में हैं। सिनेमा, समाज और संस्कृति विषयक समापन संगोष्ठी में उन्होंने फिल्मों को अकादमिक महत्व दिलवाने पर जोर देते हुए कहा कि इसे कला के रूप में भी प्रतिष्ठा मिलनी चाहिए।
उन्होंने समाज पर फिल्मों के गहरे प्रभाव पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि फिल्मों के साथ दर्शकों में भी प्रौढ़ता आ रही है। एक वक्त था जब मनोरंजन, समानांतर तथा कलात्मक फिल्मों की अलग-अलग धारा निकली। अब कई ऐसी मनोरंजक फिल्में बन रही है, जो ऐसे विषयों को भी छू रही हैं, जिनपर समाज बात करने से हिचकता है।
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