आंख के कैंसर से जूझ रहे बच्चों को नहीं पड़ेगी सर्जरी की जरूरत, AIIMS में नई तकनीक से शुरू किया गया उपचार
AIIMS ने बच्चों में आंख के कैंसर (Retinoblastoma) के इलाज के लिए गामा नाइफ रेडिएशन तकनीक शुरू की है। यह तकनीक बिना सर्जरी के एक दिन में असरदार इलाज देती है। शुरुआती नतीजे उत्साहजनक हैं। बीमारी आनुवंशिक होती है इसलिए जागरूकता और गर्भावस्था काउंसलिंग बेहद जरूरी मानी जा रही है।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली: अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) ने आंख के कैंसर (Retinoblastoma) से जूझ रहे बच्चों के उपचार में एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है।
अब यहां गामा नाइफ रेडिएशन तकनीक से इलाज शुरू कर दिया गया है, जो कि बिना सर्जरी और कम समय में असरदार परिणाम देने वाली आधुनिक रेडियोथेरेपी तकनीक है।
एम्स नेत्र रोग विभाग की प्रो. भावना चावला ने बताया कि यह कैंसर मुख्यतः पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में होता है और इसका समय रहते इलाज न होने पर आंख की रोशनी ही नहीं, बल्कि मस्तिष्क तक खतरा पहुंच सकता है।
हर वर्ष 350 से 400 बच्चे Retinoblastoma के उपचार को आते हैं
देश में दुनियाभर के मुकाबले रेटिनोब्लास्टोमा के लगभग 25 प्रतिशत मामले सामने आते हैं। एम्स में हर साल 350 से 400 बच्चे उपचार के लिए पहुंचते हैं।
अब तक रेटिनोब्लास्टोमा के उपचार में कीमोथेरेपी और सर्जरी ही प्रमुख विकल्प थे, जिससे कई बार बच्चों की आंख निकालनी पड़ती थी।
प्रो. चावला बताती हैं, "यह तकनीक ट्यूमर को टारगेट कर सटीकता से रेडिएशन देती है। इससे स्वस्थ ऊतकों को नुकसान नहीं होता और बच्चे को एक ही दिन में छुट्टी मिल जाती है। एक से 17 मई तक एम्स में विश्व रेटिनोब्लास्टोमा जागरूकता सप्ताह मनाया जा रहा है।
गामा नाइफ रेडिएशन के शुरुआत परिणाम उत्साहजनक
पिछले हफ्ते दो बच्चों को गामा नाइफ रेडिएशन से उपचार दिया गया। एम्स न्यूरोसर्जरी विभाग के प्रो. दीपक अग्रवाल ने बताया कि इस तकनीक के शुरुआती परिणाम उत्साहजनक हैं।
अगर परिणाम सकारात्मक रहे, तो बच्चों को कीमोथेरेपी व सर्जरी की जरूरत नहीं पड़ेगी और उनकी आंख भी सुरक्षित रह सकेगी।
बीमारी का आनुवंशिक पहलू और जागरूकता की जरूरत
एम्स मीडिया सेल और एनाटामी विभाग की प्रमुख प्रो. रीमा दादा ने बताया कि यह बीमारी आनुवंशिक होती है।विशेषकर 35 वर्ष से अधिक उम्र के पुरुषों में जो धूम्रपान या शराब का सेवन करते हैं, तो अगली पीढ़ी में यह बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है। ऐसे में गर्भावस्था के दौरान काउंसलिंग और जागरूकता बेहद जरूरी है।
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