'शादीशुदा से संबंध रखने वाली पढ़ी-लिखी महिला नहीं कर सकी शोषण का दावा' दिल्ली हाई कोर्ट ने रद की एफआईआर
दिल्ली उच्च न्यायालय ने दुष्कर्म के एक मामले में अहम टिप्पणी करते हुए एक व्यक्ति के खिलाफ प्राथमिकी रद्द कर दी। अदालत ने कहा कि एक विवाहित पुरुष के साथ सहमति से संबंध रखने वाली शिक्षित महिला शोषण का दावा नहीं कर सकती। अदालत ने यह भी कहा कि शादी के झूठे वादे पर दुष्कर्म के आरोप लगाना आपराधिक न्याय प्रणाली पर बोझ है।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दुष्कर्म के मामले में एक व्यक्ति के खिलाफ हुई प्राथमिकी को रद करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है।
न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा की पीठ ने कहा कि स्वेच्छा से किसी विवाहित पुरुष के साथ संबंध जारी रखने वाली एक शिक्षित और स्वतंत्र महिला गुमराह किए जाने या शोषण होने का दावा नहीं कर सकती।
अदालत ने कहा कि आपराधिक न्याय प्रणाली ऐसे दुष्कर्म के अपराधों से संबंधित प्राथमिकी के बोझ तले दबी जा रही है, जहां यौन शोषण के आरोप अक्सर लंबे समय तक सहमति से बने संबंधों के बाद शादी के झूठे वादे के आधार पर लगाए जाते हैं।
ये टिप्पणी करते हुए अदालत ने शादी का झांसा देने, धोखाधड़ी से यौन उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए एक व्यक्ति के खिलाफ की गई प्राथमिकी को रद कर दिया।
अदालत ने कहा कि इस तरह के असफल रिश्ते को दुष्कर्म के लिए आपराधिक मुकदमे में बदलने की अनुमति देना न केवल न्याय की संवैधानिक दृष्टि के विपरीत होगा, बल्कि यौन अपराधों से संबंधित कानून की मूल भावना और उद्देश्य के भी विपरीत होगा।
शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि अपीलकर्ता ने उसके साथ दुष्कर्म किया और उससे शादी करने का वादा करके बाद में दूसरी महिला से शादी कर ली।
हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया कि सहमति से बनाया गया रिश्ता केवल इसलिए दुष्कर्म के आरोप से नहीं ढका जा सकता क्योंकि एक रिश्ता नहीं बन सका।
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता की वैवाहिक स्थिति की जानकारी होने के बावजूद एक शिक्षित और स्वतंत्र महिला स्वेच्छा से ऐसे रिश्ते में बनी रही। ऐसे में न तो उसे कानून में गुमराह किया गया या उसका शोषण किया गया।
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