बहन से दुष्कर्म के दोषी भाई की याचिका खारिज, हाई कोर्ट ने कहा 'बच्ची की गरिमा की रक्षा करना कानून का कर्तव्य'
दिल्ली हाई कोर्ट ने नाबालिग से दुष्कर्म के दोषी बड़े भाई की अपील खारिज कर दी। अदालत ने कहा कि पारिवारिक दुर्व्यवहार अक्सर चुप्पी में छिप जाता है क्योंकि परिवार अपनी बची इज्जत बचाने की कोशिश करता है। अदालत ने डीएसएलएसए को पीड़िता और परिवार को परामर्श देने का निर्देश दिया साथ ही मुआवजे के वितरण में सहायता करने को कहा।

विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली। परिवार में ही यौन शोषण का शिकार हुई नाबालिग के मामले में मार्मिक टिप्पणी करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने दोषी बड़े भाई की अपील याचिका खारिज कर दी।
अदालत ने कहा कि पीड़ा में डूबे परिवार के प्रति करुणा, पीड़ित बच्ची को हुए नुकसान के लिए दंड से मुक्ति में तब्दील नहीं हो सकती। कानून का सबसे बड़ा कर्तव्य बच्ची की गरिमा और सुरक्षा की रक्षा करना है और यह कर्तव्य केवल दंड के माध्यम से आंशिक रूप से ही पूरा होता है।
अपील याचिका खारिज करते हुए न्यायमूर्ति संजीव नरूला की पीठ ने टिप्पणी की कि अभियोक्ता, उसकी बहन और उनके माता-पिता आरोप लगाने के लिए नहीं, बल्कि दोषी की रिहाई की मांग करने के लिए एक साथ आए थे।
अदालत ने यहां तक टिप्पणी की कि दुख की बात है कि पारिवारिक दुर्व्यवहार अक्सर चुप्पी में लिपटा रहता है और यह डर बना रहता है कि अगर सच बोल दिया गया, तो परिवार का बची-खुची इज्जत बिखर जाएगी।
इस तरह का दुर्व्यवहार शायद ही कभी कानून की चौखट पर खत्म होता है, क्योंकि यह उसी आवाज को दबा सकता है जिसकी रक्षा के लिए कानून बनाया गया है।
पीठ ने यह भी कहा कि अदालतें घर में टूटी हुई चीजों को ठीक नहीं कर सकतीं, लेकिन यह संदेश स्पष्ट रहना चाहिए कि बच्चे की गरिमा से समझौता नहीं हो सकता।
उक्त टिप्पणियों के साथ अदलात ने दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (डीएसएलएसए) को एक परामर्शदाता नियुक्त कर पाक्सो पीड़िता और उसके परिवार को परामर्श देने का निर्देश दिया है।
अदालत ने कहा कि परामर्शदाता पीड़िता को शैक्षिक व कानूनी सहायता के बारे में सलाह देगा। याचिका के अनुसार, 15 वर्षीय पीड़िता के साथ उसके बड़े भाई ने बार-बार दुष्कर्म किया था और इसके कारण वह गर्भवती हो गई थी, बाद में उसका गर्भपात हो गया था।
अदालत ने साथ ही डीएसएलएसए को ट्रायल कोर्ट द्वारा अभियोक्ता को दी गई 13.50 लाख रुपये की मुआवजा राशि के वितरण में सहायता करने का भी निर्देश दिया।
अपीलकर्ता ने ट्रायल कोर्ट द्वारा दोषसिद्धि और 20 साल के कठोर कारावास व 50 हजार रुपये जुर्माना लगाने के ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी। पूरा मामला तब सामने आया था जब 2020 में एक अस्पताल से सूचना मिली कि एक मां अपनी नाबालिग बेटी को गर्भपात के लिए लाई थी।
अपनी बहन और पिता की उपस्थिति में पीड़िता ने एक लिखित शिकायत में आरोप लगाया था उसके बड़े भाई ने होली के तुरंत बाद दो-तीन मौकों पर उसका यौन उत्पीड़न किया था।
अदालत ने कहा कि फॉरेंसिक रिपोर्ट से इसमें कोई संदेह नहीं है कि दोषी ही उस भ्रूण का जैविक पिता था, जिसका अभियोक्ता ने गर्भपात कराया था।
दोषी की डीएनए प्रोफाइल अभियोक्ता और अपीलकर्ता के साथ 50 प्रतिशत मेल खाती है। ऐसे में अपील याचिका खारिज की जाती है।
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