दिल्ली हाई कोर्ट ने पीएफआई की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा, यूएपीए ट्रिब्यूनल के आदेश को दी थी चुनौती
दिल्ली हाई कोर्ट ने पीएफआई को गैरकानूनी घोषित करने के आदेश के खिलाफ याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा। मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने पीएफआई और केंद्र सरकार की दलीलें सुनीं। केंद्र सरकार ने याचिका की विचारणीयता पर आपत्ति जताई जबकि पीएफआई ने ट्रिब्यूनल के अधिकार क्षेत्र को चुनौती दी। अदालत ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद निर्णय सुरक्षित रख लिया है।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) ट्रिब्यूनल द्वारा पापुलर फ्रंट आफ इंडिया (पीएफआई) को गैरकानूनी संगठन घोषित करने के आदेश के खिलाफ पीएफआई की याचिका की विचारणीयता पर दिल्ली हाई कोर्ट ने निर्णय सुरक्षित रख लिया है।
फैसले की पुष्टि की
मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय व न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने पीएफआई व केंद्र सरकार का तर्क सुनने के बाद कहा कि याचिका की विचारणीयता पर निर्णय पारित किया जाएगा। पीएफआई ने यूएपीए ट्रिब्यूनल के 21 मार्च 2024 के आदेश को चुनौती दी। न्यायमूर्ति सचिन दत्ता की अध्यक्षता वाले ट्रिब्यूनल ने पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने के केंद्र सरकार के 27 सितंबर 2022 के फैसले की पुष्टि की गई थी।
चुनौती नहीं दी जा सकती
केंद्र सरकार की तरफ से पेश हुए एडिशनल सालिसिटर जनरल एसवी राजू ने याचिका की विचारणीयता पर आपत्ति जताते हुए कहा कि यूएपीए ट्रिब्यूनल का नेतृत्व हाई कोर्ट के एक वर्तमान न्यायाधीश कर रहे थे और इसलिए इस आदेश को भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत चुनौती नहीं दी जा सकती। उन्होेंने तर्क दिया कि हाई कोर्ट के न्यायाधीश इस न्यायालय के अधीनस्थ नहीं होते हैं और अनुच्छेद 227 अधीनस्थ न्यायालयों पर लागू होता है।
अधिकार क्षेत्र की कोई सीमा नहीं
वहीं, पीएफआई की तरफ से पेश हुए अधिवक्ता सत्यकाम ने तर्क दिया कि ट्रिब्यूनल की शक्तियां यूएपीए कानून के विभिन्न प्रविधानों के तहत भी विशेष रूप से प्रदान की गई हैं।जब हाई कोर्ट के न्यायाधीश न्यायाधिकरण के रूप में कार्य कर रहे हैं तो वह ट्रिब्यूनल के हैं न कि हाई कोर्ट के न्यायाधीश।
ऐसे में ट्रिब्यूनल द्वारा पारित आदेश इस न्यायालय के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं। उन्होंने कहा कि पीएफआई ट्रिब्यूनल पूरे भारत को देख रहा है और इस हाई कोर्ट के अधिकार क्षेत्र सीमित है, जबकि ट्रिब्यूनल के पास अधिकार क्षेत्र की कोई सीमा नहीं है। दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने मामले पर निर्णय सुरक्षित रख लिया।
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