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    HC का पाक्सो केस में सख्त रुख: बच्चियों के बयान को माना विश्वसनीय, दाेषियों की सजा बरकरार, एक में राहत

    Updated: Tue, 07 Oct 2025 10:03 PM (IST)

    दिल्ली हाई कोर्ट ने नाबालिग लड़कियों से दुष्कर्म के तीन मामलों में फैसला सुनाया। दो मामलों में ट्रायल कोर्ट के निर्णय को बरकरार रखा गया जबकि एक मामले में सजा कम कर दी गई। नांगलोई मामले में दोषी को तुरंत आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया गया। जैतपुर मामले में भी फैसला बरकरार रहा जिसमें 12 साल की सजा सुनाई गई थी। एक अन्य मामले में सजा कम की गई।

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    पोक्सो के दो मामले में दाेषियों की सजा को हाई कोर्ट ने रखा बरकरार, एक में कम की सजा

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। नाबालिग लड़कियों से दुष्कर्म के तीन अलग-अलग मामलों में दिल्ली हाई कोर्ट ने निर्णय सुनाते हुए ट्रायल कोर्ट द्वारा दोषी करार देने के निर्णय को बरकरार रखा है। न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी की पीठ ने दो अलग-अलग मामलों में अपीलकर्ताओं को दोषी करार देने के ट्रायल काेर्ट के निर्णय को रद करने से इन्कार कर दिया। वहीं, एक अन्य मामले में अपीलकर्ता की सजा को तथ्यों के अभाव में कम कर दिया।

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    बयान को समझने में गलती की

    वर्ष 2016 में नांगलोई थाने में पाक्सो अधिनियम के तहत दर्ज मामले में पांच साल की सजा को चुनौती देने वाली याचिका न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी की पीठ ने खारिज कर दी। साथ ही दोषी राजेंद्र सिंह को तुरंत तिहाड़ जेल प्रशासन के समक्ष आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया। इससे पहले अदालत ने आरोपित को सुनाई गई सजा को वर्ष 2019 में निलंबित कर दिया था। अदालत ने कहा कि पीड़िता अपने बयान पर कायम रही और ट्रायल कोर्ट ने उसके बयान को समझने में गलती की है।

    बच्ची का बयान स्पष्ट, ठोस और विश्वसनीय

    वर्ष 2016 में जैतपुर थाने में दर्ज मामले में भी न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी की पीठ ने ट्रायल कोर्ट के निर्णय को बरकरार रखा। ट्रायल कोर्ट ने दाेषी बनिया उर्फ राजू को दोषी करार देते हुए नाबालिग से दुष्कर्म करने के लिए 12 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई थी।

    दाेषी की अपील याचिका खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि बौद्धिक अक्षमता से पीड़ित होने के बावजूद पीड़ित बच्ची का बयान स्पष्ट, ठोस और विश्वसनीय रहा।

    पीठ ने कहा कि पीड़िता ने न सिर्फ अपीलकर्ता की सही पहचान की, बल्कि यह भी बताया कि उसकी वहां मौजूद थी, जिसने उसे बचाया था। पीठ ने कहा कि उक्त तथ्यों को देखते हुए ट्रायल कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं है और अपील याचिका खारिज की जाती है।

    सजा में कर दी कमी

    वर्ष 2023 में दर्ज एक अन्य दुष्कर्म के मामले में पाक्सो की धारा-छह के तहत दोषी करार देकर 10 साल की सजा सुनाने के एक मामले में अपीलकर्ता की याचिका को न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी की पीठ ने आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया।

    पीठ ने पाक्सो अधिनियम की धारा-छह (गंभीर यौन उत्पीड़न) के बजाय अपीलकर्ता को पाक्सो अधिनियम की धारा-10 (छेड़कानी) के लिए दोषी पाया। साथ ही उसी सजा को दस साल से घटाकर पांच साल कर दिया।

    धारा-छह के तहत कम से 20 साल की सजा या उम्र कैद या फांसी की सजा का प्रविधान है जबकि धारा-10 के तहत कम से कम पांच साल और अधिकतम सात साल की सजा का प्रविधान है।

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