Delhi Pollution: दक्षिण एशिया में दिल्ली की हवा सबसे जहरीली, कई लोगों के फेफड़ों में पारे के कण भी मौजूद
दिल्ली में पारे का स्तर बढ़ने से लोगों को सांस लेने में तकलीफ हो रही है। जांच में पता चला है कि कई लोगों के फेफड़ों में पारे के बारीक कण मौजूद हैं। सरकारी अस्पतालों में जांच की सुविधाएं कम होने और निजी अस्पतालों में इलाज महंगा होने से समस्या बढ़ रही है। एक शोध में पाया गया कि दिल्ली में पारे का स्तर दक्षिण एशिया में सबसे ज्यादा है।

संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। बवाना की एक फैक्ट्री में सुपरवाइजर के पद पर कार्यरत 55 वर्षीय सोमप्रकाश को पिछले कुछ समय से सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। एक दिन वे रोहिणी स्थित डॉ. बाबा साहेब अंबेडकर अस्पताल की ओपीडी में इलाज के लिए गए। वहां उन्हें दवाइयां मिलीं, लेकिन कई दिनों तक लेने के बाद भी उन्हें आराम नहीं मिला। फिर उन्होंने एक निजी अस्पताल में जांच कराई।
डिजिटल एक्स-रे से पता चला कि फेफड़ों में पारे के बेहद बारीक कण फंसे हुए थे, जिनकी वजह से शरीर में ऑक्सीजन पहुंचने के रास्ते धीरे-धीरे बंद हो रहे थे। फिर उन्हें न सिर्फ कई दिनों तक दवाइयां लेनी पड़ीं, बल्कि उस फैक्ट्री से भी बाहर जाना पड़ा जहां से पारा उनके शरीर में प्रवेश कर रहा था।
यह सिर्फ़ सोमप्रकाश की कहानी नहीं है। दिल्ली-एनसीआर में अनगिनत लोगों को पारे के बारीक कणों के शरीर में प्रवेश करने से सांस लेने में तकलीफ हो रही है। लेकिन ज़्यादातर लोग इसका कारण भी नहीं जान पाते।
वजह यह है कि सरकारी अस्पतालों में जांच की बहुत आधुनिक तकनीकें नहीं हैं और अगर हैं भी, तो महीनों लंबा इंतजार करना पड़ता है। निजी अस्पतालों में इलाज बहुत महंगा है। हालांकि, इस बात पर कोई अध्ययन नहीं किया गया है कि पारे ने कितने मरीजों को कितना नुकसान पहुँचाया है या पहुँचा रहा है। न ही इसका कोई आँकड़ा उपलब्ध है।
दरअसल, पुणे स्थित भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IIITM) द्वारा छह साल तक किए गए एक शोध में यह बात सामने आई है कि राष्ट्रीय राजधानी की हवा न केवल प्रदूषित है, बल्कि उसमें स्वास्थ्य के लिए हानिकारक धातुएँ भी मौजूद हैं। ऐसी ही एक धातु है पारा।
दिल्ली की हवा में पारे का स्तर दक्षिण एशिया में सबसे ज़्यादा बना हुआ है। ज्ञातव्य है कि पारा एक ज़हरीली धातु है जो तंत्रिका तंत्र, गुर्दे और हृदय के लिए बेहद हानिकारक है।
इस अध्ययन में दिल्ली, अहमदाबाद और पुणे की हवा की तुलना भी की गई। इसके नतीजे और भी चौंकाने वाले हैं। अध्ययन में बताया गया है कि दिल्ली में पारे का स्तर 6.9 नैनोग्राम प्रति घन मीटर है, जबकि अहमदाबाद में यह 2.1 और पुणे में 1.5 नैनोग्राम प्रति घन मीटर है। यानी दिल्ली में पारे का स्तर वैश्विक स्तर से 13 गुना ज़्यादा पाया गया।
शोध से पता चला है कि इन शहरों में 72% से 92% पारा कोयला जलाने, यातायात और उद्योगों जैसी मानवीय गतिविधियों के कारण होता है। सर्दियों और रात में पारे की यह मात्रा बढ़ जाती है, जो कोयला या पराली जलाने और स्थिर मौसम के कारण होती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, पारा स्वास्थ्य के लिए 10 सबसे खतरनाक रसायनों में से एक है। अगर पाँच से दस साल तक सांस के ज़रिए इसकी थोड़ी सी भी मात्रा शरीर में रहे, तो यह खतरनाक हो सकता है। लंबे समय तक पारे के सांस लेने से तंत्रिका तंत्र, पाचन तंत्र, प्रतिरक्षा प्रणाली, गुर्दे और फेफड़ों को नुकसान पहुँचता है।
-डॉ. गुफरान बेग, चेयर प्रोफेसर, राष्ट्रीय उन्नत अध्ययन संस्थान, बैंगलोर
पारे के सूक्ष्म कण श्वसन मार्ग से फेफड़ों तक पहुंच जाते हैं और ऑक्सीजन के प्रवाह के छोटे-छोटे रास्तों को अवरुद्ध करने लगते हैं। इससे सांस लेने में तकलीफ होती है। कई बार अस्थमा भी हो जाता है। चिंताजनक बात यह है कि ऐसे मरीज़ों की पहचान करना इतना आसान नहीं है। न ही ऐसे मरीजों पर कोई अध्ययन किया गया है। ऐसी स्थिति में सतर्कता और जागरूकता से ही बचाव संभव है।
-डॉ. सुकृति आजाद, पूर्व सीनियर रेजिडेंट (मेडिसिन), डॉ. बाबा साहेब अंबेडकर अस्पताल।
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