Delhi Water Crisis: पीना तो दूर, नहाने लायक भी नहीं आ रहा पानी; लोगों ने बयां किया दर्द
पश्चिमी दिल्ली के अक्षरधाम अपार्टमेंट में दूषित जल की समस्या से लोग परेशान हैं। पीने का पानी तो मिल जाता है लेकिन नहाने और कपड़े धोने के लिए दूषित पानी का इस्तेमाल करना पड़ता है। लोग क्लोरीन और डिटॉल का उपयोग करके पानी को साफ करने की कोशिश कर रहे हैं। इस समस्या के कारण लोग बीमार हो रहे हैं और कई परिवार अपने रिश्तेदारों के घर जा रहे हैं।

गौतम कुमार मिश्रा, पश्चिमी दिल्ली। दिल्ली में पीने के लिए तो बोतलबंद पानी खरीदकर इंतजाम हो जाता है, लेकिन नहाने व कपड़े धोने के लिए पानी का इंतजाम कैसे किया जाए। जो पानी अभी नलों में आ रहा है, वह इस्तेमाल योग्य नहीं है।
अक्षरधाम अपार्टमेंट निवासी हर्षित गुप्ता ने एक उपाय निकाला। पानी की टंकी में क्लोरीन की कुछ गोलियां डाली जाती है। जब वह पानी नलों से बाहर निकलता है तो उसमें डिटाल की बूंदें डाली जाती हैं और अब इस पानी से लोग नहाते हैं। नहाते समय मुंह पूरा बंद रखा जाता है ताकि दूषित पानी मुंह में न चला जाए। लेकिन छोटे बच्चों का क्या किया जाए। तो उन्हें बोतलबंद पानी से ही कम पानी में नहला दिया जाता है। लेकिन कब तक... यह सवाल अक्षरधाम अपार्टमेंट में रहने वाले लोगों के सब्र की परीक्षा ले रहा है।
रविवार को सेक्टर-19 स्थित अक्षरधाम अपार्टमेंट के लोग मुख्य द्वार पर एकत्रित हुए। इनमें से कईयों के पास हास्पिटल की ओपीडी पर्ची थी। दूषित पानी से लोग यहां बीमार पड़ने लगे हैं। छोटे बच्चे पर इसका सबसे अधिक असर देखा जा रहा है। बुजुर्गों पर भी असर है।
लोगों का कहना है कि दूषित जलापूर्ति की समस्या के समाधान को लेकर दिल्ली जल बोर्ड गंभीरता नहीं दिखा रहा है। मटियाला क्षेत्र के विधायक यहां आए, लेकिन नतीजा सिफर है। जल बोर्ड के मुख्य अभियंता भी उनके साथ आए, लेकिन नतीजा सिफर ही है। दूषित जलापूर्ति जारी है।
लोग स्वजन को भेज रहे बाहर
सोसाइटी के कई लोगों ने अपने परिवार के कुछ सदस्यों को नजदीकी स्वजन के यहां भेज दिया है। लेकिन आखिर कब तक ऐसा किया जाता रहेगा। हर चीज की एक सीमा होती है। जिनके स्वजन आसपास नहीं हैं, वे कहां जाएंगे। वे तो इसी दूषित पानी का किसी तरह से सबकुछ जानते हुए भी इस्तेमाल करने को विवश हैं।
लग रहे नारे
दिल्ल जल बाेर्ड, नगर निगम, डीडीए, सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण विभाग, आखिर कौन इस समस्या के लिए जिम्मेदार है, यह किसी को नहीं पता है। लेकिन हर विभाग अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहा है। आक्रोशित लोग अब नारेबाजी कर रहे हैं।
लोगों का कहना है कि नारेबाजी का उद्देश्य जनप्रतिनिधियों व सक्षम विभागीय अधिकारियों तक अपनी आवाज उठाकर उन्हें संवेदनशील बनाना है। जब तक ये संवेदनशील नहीं होंगे, तब तक समस्या का समाधान नहीं होगा। हमें आश्वासन की खानापूर्ति नहीं जमीनी स्तर पर काम चाहिए। पानी हमारी बुनियादी जरुरत है और हमारा अधिकार भी।
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वहीं, साेसाइटी की एक महिला ने तो पानी की समस्या पर एक कविता तक लिख डाली। वे बताती हैं कि कविता की पंक्तियों को मैं तब सार्थक समझूंगी जब दूषित जलापूर्ति की समस्या से यहां के लोगों को निजात मिल जाएगी।
हाईकोर्ट तक जा चुका है मामला
सोसाइटी निवासी हरेंद्र मुदगिल बताते हैं कि दूषित जलापूर्ति की समस्या यहां समय समय पर सामने आती रही है। मामले को हमलोग हाई कोर्ट तक ले जा चुके हैं, जहां जल बोर्ड ने हलफनामा देकर कहा था कि यहां जलापूर्ति से जुड़ी व्यवस्था में सुधार किया जाएगा, लेकिन कुछ नहीं हुआ। कहा गया था कि एक करोड़ की लागत से पाइपलाइन में बदले जाएंगे, लेकिन कुछ नहीं हुआ। आज सीवर मिला पानी लोगों के नलों में आ रहा है।
बदल विभाग नहीं बदली दूषित जलापूर्ति की समस्या
सोसाइटी के लोगों का कहना है कि उपनगरी में जलापूर्ति की जिम्मेदारी पहले डीडीए की थी। लेकिन बाद में इसे जल बोर्ड को सौंप दिया गया। लोगों ने सोचा कि अब शायद पानी से जुड़ी किल्लत या दूषित जलापूर्ति की समस्या से निजात मिल जाएगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। जलापूर्ति के लिए विभाग जरुर बदले, लेकिन दूषित जलापूर्ति की समस्या यथावत है।
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