ED Raid: सौरभ भारद्वाज के पुश्तैनी घर पर 12 घंटे तक खंगाले घोटाले के सबूत, ईडी के हाथ क्या लगा?
दक्षिणी दिल्ली में ईडी ने एक हजार करोड़ के अस्पताल घोटाले में आप नेता सौरभ भारद्वाज के पैतृक घर पर छापा मारा। खबर फैलते ही आप कार्यकर्ता और नेता सौरभ के घर के बाहर जमा हो गए जिसके बाद पुलिस ने सुरक्षा कड़ी कर दी और किसी को भी अंदर जाने की अनुमति नहीं दी। ईडी की टीम ने शाम तक छानबीन की।

जागरण संवाददाता, दक्षिणी दिल्ली। दिल्ली में अस्पताल घोटाले के मामले में ईडी ने मंगलवार को आप के नेता सौरभ भारद्वाज के चिराग दिल्ली गांव स्थित पुश्तैनी घर पर भी छापामारी की।
वहीं, छापामारी की खबर का पता चलते ही आप के विधायक, नेता व कार्यकर्ता भी सौरभ के घर के बाहर पहुंच गए। सुरक्षा व्यवस्था के मद्देनजर भारी संख्या में पुलिस बल को मौके पर तैनात किया गया था।
इस दौरान किसी भी कार्यकर्ता को पुलिस ने सौरभ के घर के जाने की अनुमति नहीं दी। पुलिस ने कार्रवाई का विरोध कर रहे कार्यकर्ताओं को समझा बुझाकर शांत किया।
चिराग दिल्ली में सौरभ भारद्वाज का पुश्तैनी घर है। सुबह करीब सात बजे ईडी की टीम ने सौरभ भारद्वाज के घर पर छापामारी की। 10 से 15 अधिकारी उनके घर के अंदर गए। इसके बाद घर के दरवाजे अंदर से बंद कर दिए गए। सुरक्षा व्यवस्था के चलते भारी संख्या में पुलिस बल को मौके पर तैनात कर दिया गया था।
वहीं, कुछ देर में ही घर के बाहर मीडियाकर्मियों का जमावड़ा लग गया। जैसे ही छापामारी की खबर सोशल मीडिया व खबरों में आई तो आप नेता व कार्यकर्ता भी मौके पर पहुंचने लगे। कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए अतिरिक्त पुलिस बल को मौके पर बुलाया गया।
आप के विधायक अजय दत्त, प्रकाश जारवाल, पूर्व विधायक सोमनाथ भारती व रवि सहित अन्य कार्यकर्ता घर के बाहर पहुंच गए। कुछ नेताओं ने सौरभ के घर के अंदर जाने का प्रयास किया, लेकिन पुलिस ने उन्हें रोक दिया। किसी को घर के अंदर जाने की अनुमति नहीं दी गई।
ईडी की टीम ने शाम तक घर के अंदर छानबीन की। इस दौरान सौरभ भारद्वाज के पिता एक बार घर से बाहर आए। हालांकि, उन्होंने सिर्फ अपने परिजन से बात की।
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ईडी का कहना है कि घोटाले में शामिल पांच ठेकेदारों की पहचान कर ली गई है और पीडब्ल्यूडी व स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की पहचान की जा रही है। जांच में नियमों, निविदा शर्तों और वित्तीय प्रोटोकाल के गंभीर उल्लंघन का पता चला। इसमें जानबूझकर देरी, परियोजना की लागत में वृद्धि, व्यावहारिक विकल्पों को अस्वीकार करना और बेकार संपत्तियों का निर्माण शामिल है। इससे सरकारी खजाने को भारी नुकसान हुआ है।
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