125 साल पहले भी था इलेक्ट्रिक कारों का बोलबाला, एक बार बैटरी चार्ज होने पर 150 KM तक चलते थे वाहन
क्या आप जानते हैं कि 125 साल पहले इलेक्ट्रिक कारों का बोलबाला था? जी हां 1886 में पहली कार बनने के बाद विश्व में आरंभिक कार बाजार इलेक्ट्रिक कार का ही था लेकिन बाद में अमेरिकी आयल कंपनियों ने निजी लाभ के लिए पेट्रोल-डीजल की खपत बढ़ाने के लिए एक योजनाबद्ध तरीके से इलेक्ट्रिक कार के विश्व बाजार को खत्म कर दिया।

अनूप कुमार सिंह, नई दिल्ली। बढ़ते प्रदूषण के कारण आज भले ही पेट्रोल-डीजल के विकल्प तलाशे जा रहे हो, इलेक्ट्रिक व्हीकल और डीजल-पेट्रोल इंजन रहित वाहन को निर्माण को लेकर बड़ी-बड़ी बातें हो रही हों, दावे किए जा रहे हो। पर, यह सब नया या अनोखा नहीं है।
आज से 139 वर्ष पहले 1886 में पहली कार बनने के बाद विश्व में आरंभिक कार बाजार इलेक्ट्रिक कार का ही था। दुनिया की पहली कार भाप के इंजन की थी। इसके बाद 1907 तक इलेक्ट्रिक कार का ही बोलबाला रहा था। इनकी बड़ी मांग थी, जिसमें ‘वाल्टर ब्रेकर्स इलेक्ट्रिक ट्राप्ड’ प्रमुख थी।
आरंभिक दौर की इलेक्ट्रिक कार। सौजन्य: मदन मोहन
यह एक रेसिंग कार थी। इसी तरह स्टूडी बेकर और ट्रांसपोटेशन इलेक्ट्रिक कार भी चलन में थी। विद्युत बल्ब का अविष्कार करने वाले थामस अल्वा एडिसन निर्मित इलेक्ट्रिक कार ‘एडिसन इलेक्ट्रिक व्हीकल’ भी उन दिनों चलन में थी।
इतना ही नहीं उस समय यात्री वाहन भी इलेक्ट्रिक होते थे। अधिकांश वाहन को एक बार बैटरी चार्ज होने पर 150 किलोमीटर तक आसानी से चलाया जा सकता था। लंबी दूरी तय करने के लिए उन दिनों मार्ग में चार्ज बैटरी स्वाइप सेंटर की सुविधा भी थी, जिससे कार मालिक को बैटरी चार्ज करने के लिए रास्ते में अधिक समय नहीं देना पड़ता था।
विद्युत बल्ब आविष्कारक थामस अल्वा एडिसन निर्मित इलेक्ट्रिक कार। सौजन्य: मदन मोहन
इससे न तो पर्यावरण को नुकसान होता था और न ही प्रदूषण फैलता था। महंगा पेट्रोल-डीजल भी नहीं खरीदना पड़ता था। भारत में विंटेज कार शो के आयोजक 21 गन सैल्यूट कान्कोर्स डी’ एलीगेंस के संस्थापक अध्यक्ष व लक्जरी ट्रांसपोर्ट हास्पिटैलिटी और एविएशन के अध्यक्ष मदन मोहन भी इसकी पुष्टि करते हैं।
वह बताते हैं कि बाद के वर्षों में अमेरिकी आयल कंपनियों ने निजी लाभ के लिए पेट्रोल-डीजल की खपत बढ़ाने को पेट्रोल-डीजल कार निर्माता कंपनियों से मिल योजनाबद्ध तरीके से उस समय के इलेक्ट्रिक कार के विश्व बाजार को खत्म कर उसकी जगह पेट्रोल-डीजल चलित वाहनों के विश्व बाजार को खड़ा किया।
आरंभिक दौर की इलेक्ट्रिक कार। सौजन्य: मदन मोहन
बताया कि उस समय इलेक्ट्रिक कार बनाने वाली अधिकांश कंपनियों के आर्थिकस्थिति आज की कार निर्माताओं जैसे नहीं होती थीं। इसलिए उन्हें खरीद कर बंद कर दिया गया।
मदन मोहन कहते हैं कि अब जब पेट्रोल-डीजल चलित वाहन से पर्यावरण हो रहे नुकसान की बात सामने आई तो आज यही कार कंपनियां पेट्रोल-डीजल वाहन की जगह इलेक्ट्रिक व्हीकल को बढ़ावा देने की बात करने लगीं। यानी जहां से चले थे, वहीं पहुंच गए। पहले जिसे नकारा, अब उसे ही गले लगा रहे हैं।
आरंभिक दौर की इलेक्ट्रिक कार। सौजन्य: मदन मोहन
दिल्ली में हाल ही में संपन्न हुए भारत मोबिलिटी एक्सपो ‘आटो एक्सपो-2025’ में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के एडिशनल सेक्रेटरी राजेश अग्रवाल ने भी वाहनों से बढ़ते प्रदूषण को कम करने के लिए ईवी (इलेक्ट्रिक व्हीकल) दो, तीन, चार पहिया वाहनों के साथ-साथ बड़े यात्री ईवी वाहन बस और भारवाहक ट्रक व कार्गो के अधिक प्रयोग की आवश्यकता जताई थी।
उन्होंने कहा था कि सरकार का मानना है कि ईवी जितना अधिक प्रचलन में आएगा, पेट्रोल-डीजल और सीएनजी पर निर्भरता उतनी ही कम होती जाएगी, जिससे प्रदूषण कम होगा, पर्यावरण सुधरेगा।
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