Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    जागरण संवादी में अपने संघर्ष की कहानी बताते-बताते छलके एवरेस्ट गर्ल मेघा परमार के आंसू

    Updated: Fri, 12 Sep 2025 10:46 PM (IST)

    मध्य प्रदेश की पहली महिला एवरेस्ट विजेता मेघा परमार ने अपने संघर्ष की कहानी साझा की। मिरांडा हाउस कॉलेज में उन्होंने बताया कि कैसे वे एक छोटे से गांव से निकलकर एवरेस्ट की चोटी तक पहुंचीं। एवरेस्ट फतेह करने से 700 मीटर से चूकने के बाद उनके आंसू छलक पड़े। मेघा ने बताया कि उन्होंने शिखर तक पहुंचने के लिए सामाजिक आर्थिक और मानसिक कठिनाइयों का सामना किया।

    Hero Image
    जागरण संवादी दिल्ली में विचार रखने के दौरान भावुक हो गई एवरेस्ट विजेता मेघा परमार। चंद्र प्रकाश मिश्र

    धर्मेंद्र यादव, नई दिल्ली। ये कहानी महज सपनों की नहीं है, वरन उन्हें पूरा करने वाले उन संकल्पों की भी है, जो संघर्षों के पथरीले रास्तों से होकर अंततः दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर ले जाकर बैठा देते हैं।

    मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव से निकल कर माउंट एवरेस्ट की चोटी पर तिरंगा फहराने वालीं मेघा परमार की संघर्ष-कथा में कोई नाटकीय अतिश्योक्ति नहीं है। है तो, सिर्फ कड़ी मेहनत का वो पाठ, जिसकी गूंज अब बड़े मंचों तक पहुंच चुकी है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    शून्य से शीर्ष तक पहुंचने वाली मेघा परमार मध्य प्रदेश की पहली महिला एवरेस्ट विजेता हैं। शुक्रवार को मेघा ने जागरण संवादी में अपने संघर्ष की कहानी साझा की तो युवाओं से खचाखच भरे मिरांडा हाउस काॅलेज का हाॅल कभी तालियाें की गड़गड़ाहट से गूंजा तो कभी श्रोता खामोशी में डूबे नजर आए।

    एवरेस्ट की चोटी फतेह करने से महज 700 मीटर से चूकने के बाद जब गांव पहुंचकर माता-पिता से सामना हुआ... उस पल को बताते समय मेघा के आंसू छलक पड़े। मेघा के सामान्य होने तक श्रोता लगातार तालियां बजाकर साहस देते रहे।

    लगभग 35 मिनट के संबोधन में मेघा परमार ने अपने पैतृक गांव सिहोर (मध्य प्रदेश) जिले के भोजपुर गांव से लेकर एवरेस्ट फतेह तक की संघर्ष गाथा बताई। बताया कि शिखर तक पहुंचने के लिए कितने सामाजिक, आर्थिक और मानसिक झंझावातों व कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

    युवाओं से कहा, जीवन के सफर में सबके अलग-अलग पहाड़ होते हैं, मैंने बर्फ वाला पहाड़ चढ़ा। मेरे व्यक्तित्व में एक चीज है, मैं बहुत जिद्दी हूं। इसके अलावा मेरे में कुछ भी नहीं है।

    जीवन में आईं मुश्किलों व चुनौतियों का क्रमवार जिक्र किया और यह बताया कि समाज में लिंग भेद कितना गहरे तक पहुंचा है। बकौल मेघा, उनके परिवार में पांच बुआ और छह बहनें हैं।

    दादा ने कहा- घर में छोरियां ही छोरियां हो गईं। घर के लड़कों को कान्वेंट तो लड़कियों को सरकारी स्कूल में पढ़ाया गया। दो वर्ष की उम्र में सगाई हो गई।

    इस माहौल के बीच 12 वीं तक पढ़ाई की। भाइयों का खाना बनाने के लिए शहर भेजा तो संयोग से काॅलेज में पढ़ने का मौका मिला। इस दौरान वाटर पार्क में चिपके कपड़े पहनकर घुमने पर स्वजन पीटते हुए शहर से गांव लाए। ताई-चाची से पिटना पड़ा।

    यूं आया जीवन में बड़ा बदलाव

    शहर से गांव लौटने की इस घटना के बाद मेघा ने अपना सिम तोड़ दिया और फेसबुक अकाउंट बंद कर दिया। यहीं प्रण लिया कि ऐसा कुछ करुं कि मम्मी-पापा गर्व महसूस करें। इसी संकल्प के साथ नौकरी ज्वाइन की।

    एक दिन कहीं पढ़ा कि मध्य प्रदेश के दो लड़कों ने एवरेस्ट फतेह की। इसके बाद ठान लिया कि मुझे भी एवरेस्ट पर तिरंगा फहराना है। इस सपने के लिए कदम-दर-कदम मुश्किलें आती गईं और वह आगे बढ़ती गईं। एनसीसी में प्रवेश लिया।

    जिद के आगे जीत है

    एवरेस्ट के सफर के साथ ही मेघा ने अपने जीवन की सबसे मुश्किल यात्रा के लिए कदम बढ़ाए। माइनस 40 डिग्री तापमान और 180 किलो मीटर प्रति घंटे की हवाओं के बीच मेघा आगे बढ़ती गईं। ऊंचाई के साथ ही हर कदम मुश्किल बढ़ती गईं। सांसें थमने लगीं, शरीर की त्वचा काली पड़ने लगी।

    'एवरेस्ट गर्ल' मेघा के अनुसार, शेरपा की सलाह पर वापस लौटना पड़ा। काठमांडू पहुंची तो पता चला कि 700 मीटर की दूरी तय करनी ही बची थी। इसके बाद उसे और उनके परिवार को ताने व उलाहने सुनने को मिले। सभी निराशा में डूब गए।

    फिर तैयारी की, 2019 में मध्य प्रदेश सरकार ने एक बार फिर उन पर भरोसा जताया। आखिरकार 22 मई को दिन आ गया, जिसके लिए मेघा ने अपना सब कुछ दांव पर लगा रखा था।

    यह भी पढ़ें- राकेश सिन्हा ने पीएम मोदी तुलना चर्चिल और लिंकन से की, कहा- तीसरी अर्थव्यवस्था बनने से पश्चिम घबराया