“पल भर के लिए कोई हमें प्यार कर ले…” इंडिया हैबिटेट सेंटर में गीतों से सजी स्वर्णिम शाम
दक्षिणी दिल्ली में कात्यायनी और थ्री आर्ट्स क्लब ने इंडिया हैबिटेट सेंटर में गीतों के सफर नामक एक संगीतमय कार्यक्रम का आयोजन किया। इस कार्यक्रम में 1931 से 1987 तक के हिंदी सिनेमा के स्वर्णिम काल के प्रसिद्ध गीत प्रस्तुत किए गए जिसने श्रोताओं को पुरानी यादों में डुबो दिया। देवानंद झा और अंजिला गुगनानी ने अपनी गायकी से समां बांधा। निधिकांत पाण्डेय ने कार्यक्रम का लेखन एवं प्रस्तुतिकरण किया।

कार्यालय संवाददाता, दक्षिणी दिल्ली: “पल भर के लिए कोई हमें प्यार कर ले…”, “अभी न जाओ छोड़कर के दिल अभी भरा नहीं…” और “है अपना दिल तो आवारा…”जैसे ये गीत सभागार में गूंजे, श्रोता संगीत के उस दौर में लौट गए, जब शब्द और सुर दोनों आत्मा को छूते थे।
हर गीत पर माहौल कुछ ऐसा बना मानो समय ठहर गया हो और पूरा सभागार यादों की दुनिया में खो गया। मौका था कात्यायनी और थ्री आर्ट्स क्लब की ओर से इंडिया हैबिटेट सेंटर में आयोजित एक संगीतमय यात्रा “गीतों के सफर का”।
यह कार्यक्रम श्रोताओं को 1931 से 1987 तक के उस दौर में ले गया, जिसे हिंदी सिनेमा का स्वर्णिम काल कहा जाता है। ग्रामोफोन पर बजते पहले गीत से लेकर आज की प्लेलिस्ट तक- इन मधुर धुनों ने पीढ़ियों को जोड़ा। कार्यक्रम में पेश हुए गीतों ने न सिर्फ श्रोताओं को पुरानी यादों में डुबोया बल्कि यह भी साबित किया कि खूबसूरत गीत कभी पुराने नहीं होते।
इस दौरान जब “ प्यार हुआ इकरार हुआ है...” और “ऐ मेरी जोहरा जबीं तुझे मालूम नहीं…” जैसे अमर गीत सुनाए तो श्रोता खुद को थिरकने से नहीं रोक सके। कई दर्शक सीटों से उठकर गीतों की ताल पर झूमने लगे। “जिंदगी की यही रीत है हार के बाद ही जीत है...” गीत के साथ संगीतमय सफर का समापन हुआ।
कार्यक्रम का लेखन एवं प्रस्तुतिकरण निधिकान्त पाण्डेय ने किया और गीतों को गुनगुनाया गायक देवानंद झा और अंजिला गुगनानी ने। कार्यक्रम की परिकल्पना एवं निर्माण में सहयोग दिया अनुराधा दर और सोहेला कपूर ने।
निर्माता सोहेला कपूर और अनुराधा दर ने कहा कि, “यह केवल गीतों का कार्यक्रम नहीं, बल्कि उस संगीत का उत्सव है जिसने हमारी जिंदगी और सिनेमा दोनों को नई धड़कन दी।”निधिकांत पाण्डेय ने बताया कि इसका अगला भाग अक्टूबर में पेश होगा, जिसमें 1987 से 2025 तक के गीतों की प्रस्तुति होगी।
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