GST दरों में बदलाव से चावड़ी बाजार में असमंजस का माहौल, इन सामानों की बिक्री में होगा भ्रष्टाचार!
चावड़ी बाजार में जीएसटी दरों में बदलाव के बाद थोक व्यापारी असमंजस में हैं। कागज़ पर जीएसटी दर 18% होने और किताबों पर 5% लगने से रिफंड में दिक्कतें आ रही हैं। व्यापारियों को डर है कि इससे भ्रष्टाचार बढ़ेगा और किताबों की कीमतें बढ़ जाएंगी। प्रकाशकों का कहना है कि यह मूल्य वृद्धि ज्ञान-समृद्ध भारत के सपने के खिलाफ है।

नेमिष हेमंत, नई दिल्ली। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) दरों में बड़े सुधार के बाद, चावड़ी बाज़ार के हज़ारों थोक पुस्तक, कॉपी और फ़ाइल निर्माता असमंजस की स्थिति में हैं, क्योंकि कागज़ पर जीएसटी की दर बढ़ाकर 18 प्रतिशत कर दी गई है, जबकि किताबों, कॉपी, फ़ाइल और कागज़ से बने अन्य उत्पादों पर जीएसटी की दर शून्य से घटाकर पाँच प्रतिशत कर दी गई है।
उनके अनुसार, जहाँ शून्य जीएसटी वाले उत्पादों पर रिफंड का दावा नहीं किया जा सकता, वहीं पाँच प्रतिशत जीएसटी वाले उत्पादों पर जीएसटी का दावा करने में बड़ी अड़चनें आती हैं, ऐसे में खरीदारों को अंततः कागज़ पर 18 प्रतिशत जीएसटी की कीमत चुकानी पड़ेगी। किताबों, कॉपी और अन्य उत्पादों की कीमतें घटने के बजाय बढ़ेंगी। इससे किताबों में घटती रुचि और बढ़ेगी।
प्रकाशकों और उत्पादकों ने इस संबंध में प्रधानमंत्री से हस्तक्षेप की अपील की है। चावड़ी बाज़ार में 1500 से ज़्यादा कागज़ बेचने वाले दुकानदार, 400 से ज़्यादा कॉपी विक्रेता और पाँच हज़ार से ज़्यादा पैकेजिंग बोर्ड हैं। जबकि, चावड़ी बाज़ार, दरियागंज और अन्य इलाकों में एक हज़ार से ज़्यादा प्रकाशक हैं।
पेपर मर्चेंट एसोसिएशन के उपाध्यक्ष संदीप गुप्ता के अनुसार, इस कर विसंगति से किताबों, कॉपियों और कागज़ से जुड़े अन्य उत्पादों की कीमतें बढ़ेंगी और साथ ही भ्रष्टाचार व कर चोरी भी बढ़ेगी। क्योंकि, जीएसटी विभाग से रिफंड मिलना बहुत मुश्किल है।
उनका कहना है कि चावड़ी बाज़ार के दुकानदार जीएसटी सुधार की घोषणा से बहुत उत्साहित थे, लेकिन अब उन्हें इस विसंगति से निकलने का रास्ता ढूँढ़ने में मुश्किल हो रही है। 80 प्रतिशत कागज़ किताबों, कॉपियों और उनसे जुड़े उत्पादों में इस्तेमाल होता है, जिस पर इसका सबसे ज़्यादा असर पड़ेगा।
अगर कोई 18 प्रतिशत जीएसटी की दर से कागज़ खरीदता है और उसे शून्य प्रतिशत जीएसटी पर बेचता है, तो उसे 18 प्रतिशत अपनी जेब से देना होगा, ऐसे में अगर वह किताब की कीमत नहीं बढ़ाएगा तो क्या करेगा?
वहीं, प्रभात प्रकाशन के मालिक प्रभात कुमार के अनुसार, वैट के समय कागज़ पर सिर्फ़ पाँच प्रतिशत वैट लगता था। जब जीएसटी आया था, तब यह 12 प्रतिशत तय किया गया था। अब इसे बढ़ाकर 18 प्रतिशत कर दिया गया है। जबकि, किताबें बिना जीएसटी के बेची जानी हैं।
इसलिए प्रकाशक काफी निराश हैं। इससे कागज़ की लागत बढ़ेगी। जबकि, पहले प्रकाशक न्यूनतम आयात मूल्य (एमआईपी) से नाराज़ थे। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के देश को ज्ञान-समृद्ध बनाने के सपने पर कुठाराघात है। उन्होंने कहा कि किताबों के प्रति अरुचि बढ़ रही है। कागज़ ज्ञान का सेतु है। इसे इस वृद्धि से दूर रखा जाना चाहिए था।
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