Explainer: दिल्ली-NCR में खुले नाले दे रहे हादसों को न्योता, विभागों से सवाल- कब रुकेगा मौतों का सिलसिला?
यह लेख दिल्ली-एनसीआर में खुले नालों में गिरने से होने वाली मौतों पर प्रकाश डालता है। लापरवाही और उचित सुरक्षा उपायों की कमी के कारण ऐसी घटनाएं बार-बार होती हैं। लेख में नालों को ढकने अतिक्रमण हटाने और नियमित निरीक्षण करने जैसे ठोस उपाय करने की आवश्यकता पर बल दिया गया है। यह नागरिकों की सुरक्षा के प्रति अधिकारियों की जवाबदेही और दृढ़ इच्छाशक्ति पर भी जोर देता है।
कोई भी घटना, हादसा सबक लेने और सुधार से ही दोबारा घटित नहीं होता। बशर्ते हम सबक लें तो भविष्य में किसी भी दुर्घटना को रोक सकते हैं। लेकिन जिम्मेदारी एजेंसियां और निकाय इस सोच से सरोकार नहीं रखते।
इसीलिए वो हमेशा बार-बार हादसों का इंतजार करते हैं, इससे यह भी परिलक्षित होता है कि जिम्मेदार अधिकारियों के लिए किसी की जिंदगी कोई मायने नहीं रखती। आए दिन नालों में गिरने से लोगों की मौत होती है और इन हादसों का सबसे बड़ा कारण उनका खुला होना होता है। अभी हाल में ही नरेला में नाली में गिरकर ढाई साल के बच्चे की मौत हो गई।
पिछले माह भी ऐसे दो मामले गुरुग्राम और फरीदाबाद में आए थे। गुरुग्राम में जहां सुशांत लोक-1 स्थित हैमिल्टन रोड के नाले में गिरने से 22 वर्षीय युवक की मौत हो गई थी, वहीं फरीदाबाद में नवीन नगर पुलिस चौकी के सामने नाले में कार गिरने से कार सवार व्यक्ति की मौत हो गई थी।
ये घटनाएं दर्शाती हैं कि दिल्ली समेत एनसीआर में सड़क किनारे बने छोटे-बड़े नाले संबंधित विभाग, एजेंसियों की लापरवाही के कारण वहां से गुजरने वालों के लिए सुरक्षित नहीं हैं। सवाल ये उठता है कि आखिर एनसीआर में सड़कों के किनारे बने इन सभी नालों में सुरक्षा उपाय करने में कहां है होती है लापरवाही और इनके खतरनाक बने रहने के लिए कौन है जिम्मेदार?
साथ ही एनसीआर में सड़कों के किनारे बने इन छोटे-बड़े नालों को वाहन चालकों और राहगीरों के लिए सुरक्षित बनाने को लेकर क्या किए जाने चाहिए ठोस उपाय...
प्रश्नः क्या आप मानते हैं कि दिल्ली समेत एनसीआर की सड़कों के किनारे बने अधिकतर नालों में सुरक्षा के उचित प्रबंध नहीं हैं?
हां : 95%
नहीं : 5%
प्रश्नः क्या दिल्ली समेत एनसीआर की सड़कों के साथ लगते नाले सुरक्षित न होने की वजह इसके लिए ठोस नियमों की कमी है?
हां : 92%
नहीं : 8%
नालों को अंडरग्राउंड करने से हादसों पर लगेगी रोक
देश की राजधानी दिल्ली हो या अपने एनसीआर के शहर कहीं भी नाले में किसी के गिरने की मौत की सूचना अखबारों की सुर्खी बनती है तो यह घटनाएं मन को कचोटती हैं। इन हादसों के लिए कहीं न कहीं सिस्टम का समय के साथ अपग्रेड न होना भी जिम्मेदार है और लोग भी।
पूर्व में शहर में जो नाले थे उनमें कुछ प्राकृतिक थे और कुछ आज से 50 साल पहले जब नाले बनाए गए थे, उस समय शहर की आबादी इतनी नहीं थी। अब नाली हों, नाले या फिर नहर यह तो खुले रूप में ही रहते हैं। जो खुले नाले गहरे होते हैं, उनमें ही सुरक्षा की दृष्टि से उपाय किए जाने की जरूरत महसूस की जाती है, पर कम गहरे होते हैं।
उनमें ऐसी सुरक्षा की जरूरत नहीं होती थी, पर जैसा पहले बताया कि अब आबादी कई गुना बढ़ गई है। दूसरा यह है कि पहले बड़े नालों व नहरों के किनारे पट्टी होती थी। यह पट्टी इसलिए बनाई जाती थी कि जब नालों की सफाई करवानी हो तो वहां पर से निकल कर समय-समय पर निरीक्षण किया जाए और सफाई के लिए संसाधनों का इस्तेमाल किया जाए, पर इन पटरियों पर ही अतिक्रमण हो गया।
कहीं पर इन्हें वाहन चालकों ने आम आवागमन के लिए सड़क के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। शासन-प्रशासन के तौर पर इन पर संज्ञान नहीं लिया गया कि अगर यूं ही अतिक्रमण होता रहा तो आने वाले समय में यह कहीं न कहीं परेशानी का सबब बनेंगे।
उदाहरण के रूप में औद्योगिक नगरी फरीदाबाद में एसी नगर का नाला है। यह इतना बड़ा व लंबा नाला है कि राष्ट्रीय राजमार्ग के दोनों तरफ बसे आवासीय क्षेत्र की वर्षा में जल निकासी इसी नाले के जरिए होती थी, पर रेलवे ट्रैक किनारे इस नाले के अतिक्रमण होता चला गया।
सरकार ने, प्रशासनिक अधिकारियों ने ध्यान नहीं दिया। आज 20 हजार से अधिक लोगों की आबादी वाला पूरा एसी नगर ही स्थापित हो चुका है। दो दशक तो यहां से पुलिस बल के साथ मिलकर अतिक्रमण हटवाया गया था, अब वही हाल हो गया।
यही हाल बल्लभगढ़ में गुड़गांव नहर के किनारे का है। नहर की जो पटरी थी, उस पर पूरी बसावट हो चुकी है। इसलिए नहर गंदी भी है। यहां छिटपुट हादसे होते ही रहते हैं। समय रहते सरकार के जनप्रतिनिधियों को यह सोचना चाहिए था कि ऐसी स्थिति बनना बसावट सुरक्षा मानकों के लिए खतरा साबित होगा। इनका समाधान बहुत जरूरी है, पर नहीं किया गया।
अब जहां तक हादसों को रोकने के लिए सुरक्षा उपाय करने की बात है तो सख्त कार्रवाई करने के लिहाज से कठोर निर्णय लिए जाएं। इसके लिए वहां से अतिक्रमण हटवाया जाए और पटरी से जो सामान्य यातायात निकलता है उस पर रोक लगाई जाए, पर यह निर्णय अब तक नहीं लिए गए।
इसका एक ही समाधान है कि खुले नालों में छह फीट के पाइप डाल कर इन्हें कवर किया जा सकता है अथवा साथ अगर सड़क जा रही है तो नालों के दोनों ओर सड़क से ऊंची तीन फीट तक की दीवार बनवाई जा सकती है। या जाली लगानी चाहिए।
फरीदाबाद में एनआइटी नंबर दो में पंचकुईया रोड पर बड़ा नाला था, वहां छह-छह फीट के पाइप डाल दिए गए हैं। गुरुग्राम में भी यह पाइप डाले गए हैं। कहीं पर गहराई कम है और नाले छोटे हैं तो वहां चार-चार फीट के पाइप डाले गए हैं। पंचकुईया रोड के नाले आज पूरी तरह से कवर हो गए हैं और हादसे जो पहले होते थे, उन पर रोक लग गई है।
पाइप डालने के साथ-साथ लाइन में यह प्रविधान भी हो कि जब वर्षा हो तो पानी उसके जरिए नालों में चला जाए। ऐसा करने से जलभराव भी नहीं होगा और नाले कवर करने के बाद हादसों की आशंका भी खत्म हो जाएगी।
-रवि सिंगला, पूर्व वरिष्ठ नगर योजनाकार, फरीदाबाद नगर निगम (जैसा सुशील भाटिया को बातचीत में बताया)
दृढ़ इच्छाशक्ति और जिम्मेदारी से ही ठीक होगा मर्ज
सड़कों के किनारे बने छोटे-बड़े नाले, जो वर्षा के मौसम में और भी खतरनाक हो जाते हैं, उनके लिए सुरक्षा उपाय करने में हमेशा किसी न किसी स्तर पर गतिरोध बना रहता है। यह समस्या नई नहीं है। पर, इसकी अनदेखी लगातार जानलेवा हादसों को न्योता देती है। नालों में गिरकर घटना होना इंजीनियरिंग की नाकामी ही नहीं, हमारी सामूहिक संवेदनहीनता पर भी दाग है।
ऐसी घटनाओं के पीछे तीन बड़े कारण हैं। पहला, बजट की गलत प्राथमिकताएं। दूसरा, विभागों में तालमेल की कमी। तीसरा, ठेकेदार की लापरवाही। बजट में नालों की मरम्मत और सुरक्षा संरचनाओं के लिए अलग से पर्याप्त धनराशि का प्रविधान अक्सर नहीं होता। जब भी बजट तैयार होता है, प्राथमिकता सड़कों की मरम्मत, नई सड़क निर्माण या सुंदरीकरण को दी जाती है।
नालों की सुरक्षा को ‘कम दृश्य’ और ‘कम राजनीतिक लाभ’ वाला काम माना जाता है, इसलिए इस पर धन कम खर्च किया जाता है। दूसरा, तालमेल की कमी। दिल्ली-एनसीआर में नालों का प्रबंधन एमसीडी, पीडब्ल्यूडी, डीडीए, सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण विभाग और नगर निगम व ग्राम पंचायतों के अधीन आता है। जब जिम्मेदारी बंटी हो, तो यह तय करना मुश्किल हो जाता है कि आखिर किसकी क्या जिम्मेदारी है।
हमेशा विभाग एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डाल देते हैं, यह नाला मेरे दायरे में नहीं आता। अक्सर हादसों के समय विभागों का ऐसा हीलाहवाली, टालमटोल रवैया सबने देखा भी है। तीसरा, ठेकेदारी प्रणाली की खामियां। इसमें कई बार नालों पर लगाए जाने वाले ढक्कन, रेलिंग या जालियां घटिया गुणवत्ता की होती हैं।
ठेकेदार तय समय पर काम पूरा नहीं करते और प्रभावी निरीक्षण के अभाव में अधूरा काम भी भुगतान पाकर फाइलों में ‘पूरा’ दिखा भुगतान कर दिया जाता है। अधिकांश मामलों में यह पहली बरसात में ही ध्वस्त हो जाते हैं और समस्या जस की तस बन रहती है। मैं मानता हूं कि जिम्मेदारी तय करने में सबसे बड़ी भूमिका प्रशासन और स्थानीय निकायों की है।
अगर विभाग प्रमुख और क्षेत्रीय अभियंता नियमित निरीक्षण करें, सार्वजनिक शिकायतों पर तुरंत कार्रवाई करें तो हादसों की संख्या काफी घट सकती है।
नालों को सुरक्षित करना कोई जटिल विज्ञान नहीं है। सुरक्षा उपायों में आवश्यक है नालों के किनारे मजबूत रेलिंग लगाना, जरूरत पड़ने पर कंक्रीट कवर देना और पानी के बहाव वाले हिस्सों को नियमित साफ रखना। जहां नाले गहरे और चौड़े हैं, वहां चेतावनी बोर्ड और रात में रिफ्लेक्टिव टेप या लाइटें लगाना अनिवार्य होना चाहिए।
वर्ष 2011 में पश्चिमी दिल्ली के एक इलाके में नालों के ऊपर प्रीकास्ट कवर लगाने का प्रोजेक्ट तैयार किया था। शुरुआत में स्थानीय नेताओं को इसमें कोई रुचि नहीं थी, लेकिन जब दो बार दुर्घटनाएं हुईं, तब इसे प्राथमिकता दी गई। प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद उस इलाके में नाले से जुड़े हादसे लगभग समाप्त हो गए।
यह साबित करता है कि जब दृढ़ इच्छाशक्ति हो, तो समस्या का समाधान संभव है। हमें समझना होगा कि बुनियादी सुरक्षा उपाय कोई ‘विकास का अतिरिक्त हिस्सा’ नहीं, बल्कि सबसे पहली आवश्यकता हैं।
सबसे जरूरी है, नियमित सफाई और निरीक्षण तथा जवाबदेही। अगर हर शिकायत पर तुरंत कार्रवाई हो और दोषी को चिन्हित कर उसकी सख्त जवाबदेही तय की जाए तो हादसे कम हो सकते हैं, नालों को सुरक्षित बनाया जा सकता है।
अगर हमें दिल्ली-एनसीआर के नालों को सुरक्षित बनाना चाहते हैं, तो हमें राजनीति से ऊपर उठकर, विभागीय खींचतान खत्म कर और पारदर्शी ठेकेदारी व्यवस्था लागू करके ही काम करना होगा।
जेपी वर्मा, पूर्व अधिशासी अभियंता, दिल्ली नगर निगम (जैसा अनूप कुमार सिंह को बातचीत में बताया)
खुले नाले, यानी मौत बुला रही है : खुले नालों में बार-बार घटनाएं होती हैं, बावजूद इसके उन्हें ढका नहीं जाता। जब घटना होती है तब जरूर अधिकारियों में कुछ हरकत सी होती है उसके बाद फिर वही निल बटे सन्नाटा। यही कारण है पूरे दिल्ली-एनसीआर में हर माह दो-तीन लोग इस कारण जान गंवाते हैं। कहा जाता है नाले ढके जाएंगे लेकिन खुले आम नालों से मौत न्यौता देती रहती है। इनमें भी अधिकतर बच्चे होते हैं।
आखिर विभाग कब चेतेंगे :
- नगर निगम : कुल नाले : 20,159
- चार फीट से अधिक चौड़े/गहरे नाले : 721
- चार फुट से कम चौड़े/गहरे : 19,438
- सिंचाई व बाढ़ नियंत्रण विभाग के अंतर्गत : 57 नाले, कुल लंबाई 295 किलोमीटर
- सिंचाई व बाढ़ नियंत्रण विभाग के सभी नाले यमुना में गिरते हैं। अधिकतर भाग में इनके दोनों ओर ऊंची दीवारें बनी हुई हैं।
- तेहखंड नाला, महारानी बाग, बारापुला, नजफगढ़ नाला आदि शामिल।
- लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) के नालों की लंबाई : 2,518 किलोमीटर
- 90% नालों के दोनों तरफ ग्रिल नहीं है।
एजेंसी, किसकी जिम्मेदारी : कितने किलोमीटर
- पीडब्ल्यूडी : 2064.08
- एमसीडी : 521.87
- बाढ़ एवं सिंचाई विभाग : 426.55
- एनडीएमसी: 335.29
- डीएसआइआइडीसी : 98.12
- डीडीए : 251.30
- दिल्ली कैंट बोर्ड़: 39.88
- एनटीपीसी : 3.42
जोन : खुले नाले : ढके नाले
- मध्य : 6,420-2,630
- दक्षिणी : 9,210 : 5,610
- पश्चिमी : 19,627 : 900
- नजफगढ़ : 46,755 : 5,540
- शाहदरा नाॅर्थ : 8,217: 4,258
- शाहदरा साउथ : 18,190 : 1,345
- सिटी एसपी जोन : 3,899 : 1418
- करोल बाग : 5,605 : 2,360
- सिविल लाइंस जोन : 2,634 : 2,087
- केशवपुरम- : 5,954 : 521
- रोहिणी : 11487 : 915
- नजफगढ़ : 10, 588 : 5,802
नोटः नालों का माप मीटर में है।
कितने नाले खुले : उनके किनारों पर सुरक्षा के क्या उपाय
- किसी भी नाले को स्थायी रूप से ढका नहीं जा सकता है।
- नाला खुला है तो उसमें यह व्यवस्था करनी होगी कि उसमें कोई व्यक्ति जाने अनजाने में भी न जा सके।
- छोटे नालों को स्लैब से ढकना होता है।
- सीवर के मैनहाल खुले न रहे इसके लिए दिल्ली जल बोर्ड को काम करना चाहिए।
- गाजीपुर में जहां पिछले वर्ष हादसा हुआ था वहां पर जाली लगा दी गई है
नालों में गिरने के होते रहे हादसे
- 09 अगस्त 2025 : नरेला के खेड़ाखुर्द गांव में ढाई साल का बच्चा खेलते समय खुली नाली में गिर गया और सीवर लाइन में बह गया। पांच घंटे के सर्च आपरेशन के बाद उसे निकाला गया लेकिन डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।
- 12 जलुाई 2025 : गुरुग्राम के सेक्टर 29 में खुले नाले में गिरने से युवक की मौत हो गई थी।
- 08 जुलाई 2025 : फरीदाबाद के पल्ला स्थित नाले में गिरकर सिक्योरिटी सुपरवाइजर योगेश की मौत
- 06 जुलाई 2025 : रामगढ़ गांव में पीडब्ल्यूडी के खुले नाले में गिरने से 04 वर्षीय रिजवान की मौत हो गई। स्थानीय लोगों ने बचाने की कोशिश की लेकिन बच्चे को बचाया नहीं जा सका।
- 21 मार्च 2025 : खजूरी खास में खेलते हुए नाले में गिरने से तीन वर्षीय बच्चे की मौत हो गई थी।
- 5 मार्च 2025 : गाजियाबाद के महामाया स्टेडियम के पास से गुजर रहे नाले में गिरकर सात साल के बच्चे की मौत हो गई थी।
- 31 जुलाई 2024 : गाजीपुर इलाके में निर्माणधीन नाले डूबने से मां बेटे की मौत हो गई
- 11 अगस्त 2024 : नंगली विहार स्थित छठ घाट में डूबकर नौ वर्ष के बच्चे की मौत।
- 18 अगस्त 2024 : वजीरपुर औद्योगिक क्षेत्र स्थित ए ब्लाक नाले में डूबने से सात वर्षीय बच्चा प्रिंस की हो गई मौत।
फरीदाबाद
- छोटे बड़े नालों की संख्या : 65
- ढके नाले : 20
- खुले नाले : 45
गुरुग्राम
- बड़े नाले : 3
- तीन बड़े नाले : नाम और क्षमता (क्यूसिक)
- लेग-1 : 541
- लेग-2 : 1,305
- लेग-3 : 3,702
- छोटे नाले : 125
- कितने नाले किसके पास :
- नगर निगम: 65
- एचएसवीपी : 25
- जीएमडीए : 30
- सिंचाई विभाग : 1
- एनएचएआइ: 4
बाक्स टाइप ड्रेन ढके : 50 से ज्यादा
- खुले ड्रेन : 35
गाजियाबाद
- शहर में कितने बड़े और छोटे नाले :
- कुल बड़े व छोटे नालों की संख्या : 109
- 1 फीट की दीवार बनी हुई है 70 नालों के किनारे, लगभग सभी नाले खुले हैं।
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