भू-ऊर्जा तनाव वाले क्षेत्रों में रहने वाले 62.8% लोग थकान, अनिद्रा और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित : सिद्धार्थ एस कुमार
उच्च भू-ऊर्जा तनाव वाले क्षेत्रों में रहने वाले 62.8% लोग थकान अनिद्रा और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित थे जिससे इन क्षेत्रों की रहने योग्य क्षमता प्रभावित हुई। वहीं श्रमिकों में अनुपस्थिति और उत्पादकता की कमी देखी गई। वास्तु अनुरूप इमारतों में बेहतर प्राकृतिक वेंटिलेशन सही स्थानिक संरेखण और उच्च संपत्ति मूल्य देखे गए। इन इमारतों के रखरखाव की लागत कम थी

शैक्षिक फाउंडेशन, शिवाजी कॉलेज (दिल्ली विश्वविद्यालय) और एनसीपीएसएल द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन - स्वदेशी ज्ञान प्रणाली और सतत विकास का उद्घाटन केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने किया।इस सम्मेलन में नुमरोवाणी के संस्थापक और प्रमुख ज्योतिषाचार्य सिद्धार्थ एस कुमार ने अपने शोध "प्राचीन ज्ञान और आधुनिक शहरी नियोजन का समन्वय: दिल्ली-एनसीआर में भू-ऊर्जा और वास्तु शास्त्र के माध्यम से सतत शहरी विकास" को प्रस्तुत किया। इस अध्ययन में भू-ऊर्जा तनाव (Geopathic Stress) और वास्तु के पालन न होने से शहरी विकास पर पड़ने वाले प्रभावों को विस्तार से समझाया गया।82% अटके हुए रियल एस्टेट प्रोजेक्ट भू-ऊर्जा तनाव वाले उच्च जोखिम क्षेत्रों में स्थित थे, जिससे निर्माण में देरी और भारी वित्तीय नुकसान हुआ। इन इलाकों में परियोजनाओं की औसत देरी 18 महीने थी, जबकि कम भू-ऊर्जा तनाव वाले क्षेत्रों में यह सिर्फ 7 महीने थी। देरी के कारण प्रत्येक परियोजना को ₹150 करोड़ का नुकसान हुआ, जिसमें श्रम लागत, निवेशकों की वापसी और अन्य खर्च शामिल थे।
उच्च भू-ऊर्जा तनाव वाले क्षेत्रों में रहने वाले 62.8% लोग थकान, अनिद्रा और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित थे, जिससे इन क्षेत्रों की रहने योग्य क्षमता प्रभावित हुई। वहीं, श्रमिकों में अनुपस्थिति और उत्पादकता की कमी देखी गई। वास्तु अनुरूप इमारतों में बेहतर प्राकृतिक वेंटिलेशन, सही स्थानिक संरेखण (spatial alignment) और उच्च संपत्ति मूल्य देखे गए। इन इमारतों के रखरखाव की लागत कम थी और खरीदारों की अधिक मांग ने इनके आर्थिक लाभ को भी सिद्ध किया।
शहरी नियोजन में भू-ऊर्जा और वास्तु का महत्व
यह शोध भू-ऊर्जा तनाव के आकलन और वास्तु सिद्धांतों को शहरी नियोजन में शामिल करने की आवश्यकता को उजागर करता है। भारत के स्मार्ट सिटी मिशन के तहत, तकनीक और स्वदेशी ज्ञान प्रणाली का संतुलित उपयोग ही स्थायी और सफल शहरी विकास का आधार बन सकता है।
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