यमुना से उसका हिस्सा क्यों छीन रहे हैं पांच राज्य ? 1994 के जल बंटवारे समझौते पर पुनर्विचार की सिफारिश
यमुना नदी को स्वच्छ और अविरल बनाने के प्रयास विफल रहे हैं, क्योंकि राज्य अपने हिस्से का पानी बांट लेते हैं, लेकिन नदी को उसका हिस्सा नहीं मिलता। औद्योगिक कचरा और गंदगी भी नदी में डाली जाती है। जल बंटवारे के समझौते पर पुनर्विचार करने की सिफारिश की गई है, और दिल्ली सरकार एसटीपी के पानी से प्रवाह बढ़ाने की तैयारी कर रही है।

राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। यमुना को स्वच्छ व अविरल बनाने के लिए पिछले 30 वर्षों से अधिक समय से प्रयास किए जा रहे हैं, परंतु स्थिति में सुधार नहीं है। इसका मुख्य कारण इसमें गिरने वाले बिना शोधित औद्योगिक अपशिष्ट व शहर की गंदगी के साथ ही नदी में पानी का अभाव।
हथनी कुंड से ही हरियाणा, दिल्ली व अन्य राज्य अपने हिस्से का पानी आपस में बांट लेते हैं। यमुना को उसके हिस्से का पानी मिले, इसका किसी को ध्यान नहीं है। इस कारण नदी को साफ करने की चुनौती बनी हुई है।
यमुना के जल के बंटवारे के लिए हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा और दिल्ली के बीच मई, 1994 में समझौता हुआ। इस समझौते के अनुसार यमुना को हथनी कुंड से यमुना को सिर्फ डेढ़ सौ क्यूसेक पानी निर्धारित किया गया।
बाद में एनजीटी ने इसे बढ़ाकर साढ़े तीन सौ क्यूसेक किया। यह भी अपर्याप्त है। समय के साथ यमुना किनारे स्थित शहरों की आबादी बढ़ने के साथ ही औद्योगिक इकाइयों की संख्या बढ़ गई। इनकी गंदी बिना शोधित किए नदी में डाला जा रहा है। पानी की कमी व गंदगी डाले जाने से यमुना की स्थिति दयनीय हो गई।
एनजीटी द्वारा गठित यमुना निगरानी समिति ने पूरे वर्ष नदी में पर्यावरणीय प्रवाह सुनिश्चित करने के लिए उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली के बीच 1994 के जल बंटवारे समझौते पर पुनर्विचार करने की सिफारिश की है।
वहीं, ऊर्जा एवं संसाधन संस्थान (टेरी) की भी यही सलाह है। टेरी द्वारा यमुना की सफाई को लेकर बनाई गई कार्य योजना में कहा गया है कि न्यूनतम पर्यावरणीय प्रवाह बनाए रखने के लिए यमुना नदी के दिल्ली में प्रवेश करने पर पानी की मात्रा के संबंध में यमुना नदी बेसिन राज्यों के बीच हुए जल बंटवारे के समझौते पर पुनर्विचार किए जाने की आवश्यकता है।
वर्ष 2019 में राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान रुड़की ने यमुना में छोड़े जाने वाले पानी की मात्रा को बढ़ाकर दोगुना से अधिक करने की सिफारिश की है। इस सिफारिश पर अमल नहीं किया गया। वहीं, पर्यावरणविदों का कहना है कि यमुना में अवैध खनन से भी परेशानी बढ रही है।
कई स्थानों पर अवैध खनन से नदी में गहरे गड्ढे हो गए हैं। एक तो कम पानी छोड़ा जा रहा है वह पानी भी अवैध खनन से बने गड्ढों में जमा हो जाता है। साउथ एशिया नेटवर्क आन डैम्स, रिवर एंड पिपुल (सैनड्राॅप) के सह संयोजक बीएस रावत का कहना है कि हथनी कुंड बैराज में आने वाले पानी का 50 प्रतिशत नदी में छोड़ा जाना चाहिए।
दिल्ली सहित अन्य शहरों को नदी के दोहन को कम करके पानी के फिर से उपयोग को बढ़ावा देना होगा। एसटीपी के शोधित पानी कै गैर पेयजल कार्यों में किया जाना चाहिए। जल बंटवारे को लेकर हुए समझौते की अवधि भी इस वर्ष समाप्त हो गई है। अब जल्द नए समझौते होने चाहिए।
एसटीपी के पानी से प्रवाह बढ़ाने की तैयारी
दिल्ली सरकार ने एसटीपी के पानी से यमुना में पर्यावरणीय प्रवाह (ई-फ्लो) बढ़ाने के लिए कोरोनेशन पिलर, यमुना विहार और ओखला एसटीपी से लगभग 1250 मिलियन लीटर प्रतिदिन (एमएलडी) पानी छोड़ने की तैयारी की है।
इस योजना के तहत, कोरोनेशन पिलर से 454 एमएलडी और यमुना विहार से 227 एमएलडी पानी वजीराबाद डाउनस्ट्रीम में छोड़ा जाएगा। इसके लिए अगले वर्ष सितंबर तक आवश्यक प्रणाली विकसित करने की तैयारी है
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