आज ही के दिन 1636 में रखी गई थी Harvard University की नींव, दिलचस्प है 389 साल पुराना इतिहास
दुनिया के हर छात्र का सपना होता है Harvard University में पढ़ना। जी हां, इसे सिर्फ एक शिक्षण संस्थान नहीं, बल्कि ज्ञान और सफलता का 'ड्रीम डेस्टिनेशन' माना जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह महान यूनिवर्सिटी कैसे शुरू हुई? दरअसल, इसका इतिहास प्रवासी किसानों और एक उदार पादरी से जुड़ा है। आइए, विस्तार से जानते हैं इससे जुड़ी कुछ रोचक बातें।

प्रवासी किसानों और कारीगरों के सपने ने दिया था दुनिया की मशहूर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी को जन्म (Image Source: Freepik)
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। आज जब कोई छात्र दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटीज का नाम लेता है, तो Harvard University सबसे ऊपर होती है। क्या आप जानते हैं कि ज्ञान, शोध और इनोवेशन का यह केंद्र कभी कुछ अंग्रेज प्रवासी किसानों और कारीगरों के एक छोटे से सपने से शुरू हुआ था? जी हां, उन्होंने शायद कभी नहीं सोचा होगा कि उनका बनाया छोटा-सा कॉलेज एक दिन पूरी दुनिया में शिक्षा की मिसाल बनेगा।

1636 में रखी गई थी नींव
सन् 1636 में 28 अक्टूबर को अमेरिका के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र न्यू इंग्लैंड में कुछ अंग्रेज प्रवासियों ने अपने बच्चों के लिए एक नया कॉलेज शुरू किया। उनका उद्देश्य था कि उनके बच्चे इंग्लैंड के ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज जैसी उच्च शिक्षा प्राप्त करें। आठ एकड़ जमीन पर बने इस छोटे संस्थान को पहले 'न्यू कॉलेज' कहा गया। शुरुआत में यहां मुख्य रूप से धर्म और पादरी बनने की शिक्षा दी जाती थी।
कैम्ब्रिज के छात्र बने पहले शिक्षक
कॉलेज के पहले मास्टर थे नाथानियल ईटन, जो इंग्लैंड के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पढ़े थे। हालांकिस उनका कार्यकाल ज्यादा लंबा नहीं चला। छात्रों के साथ दुर्व्यवहार के आरोपों के कारण उन्हें पद से हटा दिया गया। इसके बाद आए हेनरी डन्स्टर, जिन्होंने कॉलेज की दिशा ही बदल दी। उनके कार्यकाल में नई इमारतें बनीं, शिक्षण व्यवस्था बेहतर हुई और धीरे-धीरे यह संस्थान केवल धार्मिक शिक्षा का केंद्र न रहकर एक व्यापक शिक्षण संस्था बन गया।

पादरी जॉन हार्वर्ड ने बदली पहचान
इसी दौरान इंग्लैंड के एक युवा पादरी जॉन हार्वर्ड ने इस कॉलेज को अपनी निजी लाइब्रेरी और संपत्ति दान में दी। उनके सम्मान में 1639 में कॉलेज का नाम 'हार्वर्ड कॉलेज' रख दिया गया। यही छोटा-सा कदम आगे चलकर 'हार्वर्ड यूनिवर्सिटी' में बदल गया।
आज भी यूनिवर्सिटी के हार्वर्ड यार्ड में जॉन हार्वर्ड की एक प्रसिद्ध मूर्ति है, जिसके दाएं पैर को छूना शुभ माना जाता है। छात्रों का विश्वास है कि इससे सौभाग्य और सफलता मिलती है।
18वीं सदी में आया बड़ा बदलाव
18वीं सदी हार्वर्ड के इतिहास का निर्णायक दौर रही। उस समय जॉन लेवरेट की अगुवाई में विश्वविद्यालय ने कई सुधार देखे। पुराने भवनों का नवीनीकरण हुआ, फ्रेंच भाषा की पढ़ाई शुरू की गई और छात्र संख्या तेजी से बढ़ी। पहले जहां छात्रों को सामाजिक हैसियत के अनुसार बैठाया जाता था, वहीं बाद में नाम के क्रम से बैठाने की व्यवस्था की गई- यह कदम समानता की दिशा में बड़ा बदलाव था।

अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम में निभाई भूमिका
1775 में जब अमेरिकन रिवॉल्यूशन शुरू हुआ, तब हार्वर्ड सिर्फ एक शिक्षण संस्थान नहीं, बल्कि विचारों का केंद्र बन चुका था। यहां के छात्र और प्रोफेसर स्वतंत्रता की लड़ाई में सक्रिय रहे। कॉलेज की स्पीकिंग क्लब्स और सीक्रेट सोसायटीज़ ने जनमत को जागरूक करने में अहम भूमिका निभाई। युद्ध के कारण संसाधनों की कमी आई, लेकिन हार्वर्ड ने शिक्षा की मशाल बुझने नहीं दी।
आधुनिकता और महिलाओं की शिक्षा की ओर कदम
1782 में मेडिकल स्कूल की स्थापना के साथ हार्वर्ड ने विज्ञान और चिकित्सा के क्षेत्र में प्रवेश किया। प्रयोगशालाएं बनीं, प्रवेश परीक्षाएं शुरू हुईं और शिक्षा का स्तर और ऊंचा हुआ। 1900 के दशक में विश्वविद्यालय ने महिलाओं के लिए भी अपने दरवाजे खोले। उस समय की सामाजिक सीमाओं के कारण, महिलाओं के लिए रैडक्लिफ कॉलेज नाम से एक अलग संस्थान बनाया गया, जो बाद में हार्वर्ड का ही हिस्सा बन गया। यह निर्णय हार्वर्ड की उस प्रगतिशील सोच का प्रतीक था, जिसने उसे समय के साथ आगे बढ़ने की ताकत दी।

आज की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी
आज हार्वर्ड सिर्फ एक विश्वविद्यालय नहीं, बल्कि एक ग्लोबल ब्रांड है। यहां लगभग 25,000 छात्र अध्ययन करते हैं और 20,000 से अधिक शिक्षक व कर्मचारी कार्यरत हैं। शिक्षा, शोध, नवाचार और समानता के मूल्यों पर टिकी यह संस्था 389 वर्षों से ज्ञान की रोशनी फैलाती आ रही है।
हार्वर्ड की कहानी सिर्फ एक विश्वविद्यालय की नहीं, बल्कि एक दृष्टिकोण की कहानी है कि सीमित साधनों से भी अगर नीयत शिक्षा को समर्पित हो, तो एक छोटा कॉलेज भी इतिहास बन सकता है। आज जब कोई छात्र हार्वर्ड में दाखिला लेता है, तो वह सिर्फ एक विश्वविद्यालय में नहीं, बल्कि सदियों पुराने ज्ञान, साहस और परिवर्तन के प्रतीक का हिस्सा बनता है।

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