Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    अंग्रेजी सरकार के तुगलकी फरमान के खिलाफ लिखा गया था 'वंदे मातरम', जानें इसके 150 साल के सफर की कहानी

    इस साल वंदे मातरम गीत की 150वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है। बकीम चंद्र चटर्जी ने साल 1876 में रचना की थी। यह गीत भारत माता की वंदना करता है और देशभक्ति का प्रतीक है। ब्रिटिश सरकार के एक फैसले के विरोध में इसकी रचना हुई थी। आइए जानते हैं इसके समृध्य और देशभक्ति से भरे इतिहास के बारे में।

    By Harshita Saxena Edited By: Harshita Saxena Updated: Fri, 15 Aug 2025 02:05 PM (IST)
    Hero Image
    वंदे मातरम देशभक्ति के गीत ने कैसे जगाई आजादी की अलख

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। आज का दिन कई महीनो में बेहद खास है। 15 अगस्त यानी स्वतंत्रता दिवस हमें अपनी आजादी और इस आजादी के लिए अपनी जान न्यौछावर करने वाले वीर सपूतों की याद दिलाता है। देश को आजाद करने में न सिर्फ वीर सैनानियों की देशभक्ति, बल्कि उनके दिए हुए नारे, कविताएं और गीतों ने भी अहम भूमिका निभाई थी।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    ‘इंकलाब जिंदाबाद’ से लेकर ‘भारत माता की जय’ तक यह कुछ ऐसे शब्द है, जिनको सुनते ही आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। इनमें से एक वंदे मातरम भी है, जो बकिम चंद्र चटर्जी द्वारा लिखी गई एक मशहूर कविता है, जिसे बाद में राष्ट्रगीत का स्थान भी दिया गया। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस गीत को बने 150 साल पूरे हो चुके हैं। इस मौके पर आज हम आपको बताएंगे कैसे हुई इस देशभक्ति से भरे इस गीत की रचना-

    यह भी पढ़ें- 15 अगस्त को आजाद हुए भारत का हिस्सा नहीं थे ये 5 शहर, कुछ का तो पाकिस्तान में मिलने का था प्लान

    कैसे हुई वंदे मातरम की रचना?

    बात उस दौर की है, जब भारत में ब्रिटिश राज हुआ करता था और इस दौरान बकिम चंद्र चटर्जी सरकारी नौकरी में थे। इसी समय ब्रिटिश सरकार ने एक तुगलकी फरमान जारी करते हुए कहा कि भारत में ‘गॉड सेव द क्वीन’ नामक विदेशी गीत गाया जाएगा। ब्रिटिश सरकार के इस फैसले से बकिम चंद्र काफी नाराज थे। उन्हें यह बिल्कुल भी मंजूर नहीं था कि भारत में विदेशी रानी का गाना गया जाए। बस यही वह पल था, जिसने बकिम चंद्र को वंदे मातरम गीत रचना की प्रेरणा दी।

    देशभक्ति का पर्याय बना गीत

    अंग्रेज सरकार के इस फरमान को सुन उन्होंने फैसला किया कि वह एक ऐसा गीत लिखेंगे, जिसमें भारत का गुणगान हो और अपने इसी फैसले पर आगे बढ़ते हुए उन्होंने साल 1876 में वंदे मातरम नामक कविता की रचना की। देश भक्ति से भरपूर उनकी इस कविता को उन्हीं के लोकप्रिय उपन्यास आनंद मठ में सबसे पहले प्रकाशित किया गया। उनकी इस रचना ने उसे दौर में भारत की आजादी की जंग लड़ रहे वीर सपूतों के लिए प्रेरणा स्रोत का काम किया।

    वंदे मातरम की खासियत

    बकिम चंद्र चटर्जी ने इस कविता की रचना साल 1876 में की थी। इसके दो पैरा संस्कृति और बाकी के शेष पैराग्राफ बंगाली भाषा में थे। वहीं, बात करें इसे स्वरबद्ध करने की, तो महान कवि और राष्ट्रगान के लेखक रविंद्र नाथ टैगोर ने इस गीत को स्वरबद्ध किया था और उन्होंने ही सबसे पहले कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में 1896 में इसे गया था। बाद में अरबिंदो घोष ने इस गीत का अंग्रेजी और आरिफ मोहम्मद खान ने इसका उर्दू में अनुवाद किया था।

    वहीं, आजादी के बाद 24 जनवरी, 1950 को राष्ट्रगान के साथ ही वंदे मातरम को भारत के राष्ट्रीय गीत का दर्जा दिया गया। भारत सरकार के ऑफिशियल वेबसाइट के मुताबिक इस गीत का स्थान राष्ट्रगान के बराबर ही है। ऐसा है बकिम चंद्र चटर्जी का लिखा पूरा वंदे मातरम गीत-

    वंदे मातरम्, वंदे मातरम्!

    सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम्

    सस्य श्यामलां मातरंम्.

    वंदे मातरम्, वंदे मातरम्!

    शुभ्र ज्योत्सनाम् पुलकित यामिनीम्

    फुल्ल कुसुमित द्रुमदलशोभिनीम्,

    सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीम् .

    सुखदां वरदां मातरम् ॥

    वंदे मातरम्, वंदे मातरम्!

    कोटि कोटि कन्ठ कलकल निनाद कराले

    द्विसप्त कोटि भुजैर्ध्रत खरकरवाले

    के बोले मा तुमी अबले

    बहुबल धारिणीम् नमामि तारिणीम्

    रिपुदलवारिणीम् मातरम् ॥

    वंदे मातरम्, वंदे मातरम्!

    तुमि विद्या तुमि धर्म, तुमि ह्रदि तुमि मर्म

    त्वं हि प्राणाः शरीरे

    बाहुते तुमि मा शक्ति,

    हृदये तुमि मा भक्ति,

    तोमारै प्रतिमा गडि मन्दिरे-मन्दिरे मातरम् ॥

    वंदे मातरम्, वंदे मातरम्!

    त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी

    कमला कमलदल विहारिणी

    वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम्

    नमामि कमलां अमलां अतुलाम्

    सुजलां सुफलां मातरम् ॥

    वंदे मातरम्, वंदे मातरम्!

    श्यामलां सरलां सुस्मितां भूषिताम्

    धरणीं भरणीं मातरम् ॥

    वंदे मातरम्, वंदे मातरम्!

    अरबिन्‍द घोष ने गद्य रूप इस गीत का भावानुवाद इस प्रकार किया है-

    ओ माता, मैं आपके सामने नतमस्‍तक होता हूं।

    ये धरती पानी से सींची, फलों से भरी, दक्षिण की वायु के साथ शांत है।

    हे धरती माता! आपकी रातें चांदनी की गरिमा में प्रफुल्लित हो रही हैं,

    आपकी जमीन खिलते फूलों वाले वृक्षों से बहुत सुंदर ढकी हुई है,

    हंसी की मिठास, वाणी की मिठास,

    माता, वरदान देने वाली, आनंद देने वाली।

    Source:

    • इस जानकारी को भारत सरकार के पोर्टल पर उपलब्ध सूचना के आधार पर बनाया गया है।
    • इंडिया बुक 2020 - एक संदर्भ वार्षिक
    • विश्वनाथ मुखर्जी द्वारा लिखित किताब 'वंदे मातरम का इतिहास' से भी साभार जानकारियां ली गई हैं।

    यह भी पढ़ें- डॉक्टरी से ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लड़ाई तक... कहानी स्‍वतंत्रता संग्राम के गुमनाम हीरोज की