पुल और सुरंग से पहले क्यों धीमी हो जाती है ट्रेन? 5 वजहें जानकर चौंक जाएंगे आप
कभी सोचा है ट्रेन अपनी पूरी रफ्तार में दौड़ रही हो और अचानक किसी बड़े पुल या लंबी सुरंग के मुहाने पर पहुंचते ही उसकी रफ्तार धीमी क्यों हो जाती है? बता ...और पढ़ें

पुल और सुरंग से पहले क्यों घटाई जाती है ट्रेन की स्पीड? (Image Source: Freepik)
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। क्या आपने कभी ध्यान दिया है कि जैसे ही ट्रेन किसी सुरंग में प्रवेश करने वाली होती है या पुल पार करने लगती है, उसकी रफ्तार अचानक धीमी हो जाती है? पटरियों की आवाज कम हो जाती है, खिड़की के बाहर झांकते यात्री कुछ उत्सुक, तो कुछ सतर्क हो जाते हैं। बता दें, यह सिर्फ इत्तेफाक नहीं है बल्कि रेलवे सुरक्षा का एक सोचा-समझा नियम है।
भारत जैसे विशाल रेलवे नेटवर्क वाले देश में हर रोज लाखों ट्रेनें सैकड़ों पुलों और सुरंगों से गुजरती हैं। ऐसे में यह 'धीमी चाल' कई इंजीनियरिंग और सुरक्षा कारणों से बेहद जरूरी होती है। आइए जानें वो 5 बड़े कारण, जिनकी वजह से ट्रेनें इन इलाकों में रफ्तार कम कर देती हैं।

ड्राइवर को बेहतर नियंत्रण देने के लिए
सुरंगों और पुलों पर अक्सर मोड़, ढलान या रोशनी की कमी होती है, जिससे आगे का रास्ता साफ नहीं दिखता। ट्रेन धीमी करने से लोको पायलट को सिग्नल, पटरियों की स्थिति या किसी अवरोध को देखने और प्रतिक्रिया देने का पर्याप्त समय मिलता है। भारत में बरसात, कोहरा या धूल भरी हवाओं के मौसम में यह सावधानी और भी अहम हो जाती है। आधुनिक ट्रेनें भले ही ऑटोमेटेड सुरक्षा सिस्टम से लैस हों, लेकिन मानव नियंत्रण के लिए गति कम करना आज भी सबसे विश्वसनीय उपाय है।
पुलों को बचाती है ट्रेन की धीमी गति
हर पुल और सुरंग की एक निर्धारित भार क्षमता होती है। जब ट्रेन धीरे चलती है, तो उसका वजन ढांचे पर समान रूप से वितरित होता है। इससे पुल के स्तंभों, जोड़ों और ढालों पर अतिरिक्त दबाव नहीं पड़ता। अगर ट्रेन बहुत तेज गति से गुजरे, तो उसका कंपन और बल पुराने पुलों पर नुकसान पहुंचा सकता है। इसलिए इंजीनियरिंग मानकों के अनुसार इन जगहों पर सीमित गति बनाए रखना बेहद जरूरी है।
'एक्सपैंशन गैप' का सही इस्तेमाल
धातु के बने पुल और रेल की पटरियां तापमान के अनुसार फैलती और सिकुड़ती हैं। इसीलिए उनमें 'एक्सपैंशन गैप' यानी फैलाव की जगह छोड़ी जाती है। अगर ट्रेन तेजी से गुजरे, तो पहियों का दबाव उन जोड़ों पर अधिक पड़ता है, जिससे पटरियों का संरेखण बिगड़ सकता है। धीमी गति से चलने पर ट्रेन इन गैप्स को आसानी से पार करती है और ट्रैक को स्थिर बनाए रखती है, खासकर दिन और रात के तापमान में बड़े अंतर वाले इलाकों में।
यात्रियों की सुविधा और ऑनबोर्ड सुरक्षा
सुरंग या पुल से तेज रफ्तार में गुजरने पर झटके, हवा का दबाव या अचानक हिलावट यात्रियों को महसूस होती है। धीरे चलने से सफर अधिक आरामदायक और स्थिर रहता है। साथ ही, ट्रेन के ब्रेक, सेंसर और अन्य सुरक्षा उपकरणों को भी किसी समस्या पर प्रतिक्रिया देने का पर्याप्त समय मिलता है। यानी धीमी रफ्तार न सिर्फ सुरक्षा बढ़ाती है, बल्कि सफर को सुखद भी बनाती है।
हवा का दबाव और कंपन
जब ट्रेन सुरंग से गुज़रती है या खुले पुल पर चलती है, तो उसके आसपास की हवा अचानक दबाव बदलती है। तेज रफ्तार में यह बदलाव और तीव्र हो जाता है, जिससे कंपन, आवाज और अस्थिरता पैदा हो सकती है। गति कम करने से हवा का दबाव धीरे-धीरे संतुलित होता है, जिससे ट्रेन की स्थिरता बनी रहती है और संरचना पर भी अनावश्यक तनाव नहीं पड़ता। यह खास तौर पर लंबी या संकरी सुरंगों में बेहद जरूरी होता है।
ट्रेन का सुरंग या पुल से पहले धीमा होना सिर्फ़ एक तकनीकी प्रक्रिया नहीं, बल्कि यात्रियों की सुरक्षा, आराम और संरचनात्मक स्थिरता से जुड़ा हुआ एहतियात है। हर बार जब आपकी ट्रेन ऐसे किसी मोड़ पर गति कम करती है, समझ लीजिए कि यह 'धीमी चाल' आपकी यात्रा को और ज्यादा सुरक्षित बना रही है।

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